By Sidharth Shankar
July 03, 2023
समान नागरिक संहिता (UCC) की अवधारणा का उल्लेख पहली बार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य के डिरेक्टिव प्रिन्सिपल के रूप में किया गया था। इसे लेकर बहस आजादी के तुरंत बाद शुरू हुई, जहां एकीकृत नागरिक क़ानून पर चर्चा हुई।
यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड भारत में सभी धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत मामलों के लिए सामान कानूनों के सेट का प्रस्ताव करती है। हालाँकि इसका उद्देश्य एकरूपता को बढ़ावा देना है, लेकिन इसने भारत के विविधतापूर्ण समाज पर इसके संभावित प्रभाव के कारण बहस पैदा कर दी है।
भारत में धार्मिक प्रथाओं और रीति-रिवाजों पर आधारित हर समुदाय के व्यक्तिगत मसलों के लिए अलग क़ानून है जिसे पर्सनल लॉ कहा जाता है। हिंदू सहित बाक़ी समुदाय व्यक्तिगत जीवन के मामलों में अलग-अलग कानूनों का पालन करते हैं।
UCC के समर्थकों का तर्क है कि यह असमानताओं को खत्म करेगा, लैंगिक समानता सुनिश्चित करेगा और विविध समुदायों के बीच एकता की भावना को बढ़ावा देगा। हालाँकि यह देखा गया है कि दक्षिणपंथी राजनीति इसकी सबसे बड़ी पैरोकार रही है।
UCC के विरोध में यह कहा जाता है कि इसके कारण धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन और सांस्कृतिक एवं धार्मिक विविधता को ख़तरा पहुँचने की सम्भावना है। अल्पसंख्यक समुदायों और सेक्युलर राजनीति में भरोसा रखने वालों को इससे ख़तरा महसूस हो रहा है।
अभी मौजूद सत्ता पक्ष UCC को लागू कराना चाहता है। फ़िलहाल असम और उत्तराखंड में ये क़ानून लाए जा रहे हैं। यह आशंका जताई जा रही है कि केंद्र सरकार भी देश स्तर पर समान नागरिक संहिता लागू करेगी।
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