By mohini singh
May 02 2022
दिल्ली विश्वविद्यालय ने हाल ही में 100 साल पूरे किए हैं और ऐसा लग रहा है कि बाकी लोगों की तरह मैं विश्वविद्यालय से जुड़ी अच्छी स्मृतियां साझा कर पाती तो कितना अच्छा होता।
कॉलेज में साफ तौर पर दो धड़े थे, एक सवर्ण, उच्च वर्ग के बच्चों का धड़ा, जिनके बच्चे हर ईवेंट में दिखते थे, ज़्यादातर वे प्रोफेसर से बात करते हुए पाए जाते थे।
उसके बाद निम्न वर्ग के बच्चों का धड़ा था, जिसके लोग अगर किसी सांस्कृतिक सोसाइटी का हिस्सा बनना चाहते तो पढ़ाई का नुकसान और भविष्य की चिंता उन्हें ऐसा करने नहीं देती।
साल 2021 में इसमें संशोधन करके 24 सप्ताह तक की समय अवधि को रखा गया अब इसमें अविवाहित महिलाओं को भी शामिल किया गया है।
हमें पूंजीवादी प्रोपेगंडा की घुट्टी पिलाई गई यह अराजनैतिक माहौल बॉटनी को भी अराजनैतिक बना कर देखता था।
कोर्स और कैंपस लाइफस्टाइल से तालमेल बैठाते और पारिवारिक उलझनों को सुलझाते बीते तीन साल में बहुत कुछ सीखा।
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