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डिजिटल भीड़तंत्र और ट्रोलिंग

डिजिटल भीड़तंत्र और ट्रोलिंग: भारत और दुनिया में सार्वजनिक विमर्श पर मंडराता ख़तरा

जब विचारों की दुनिया में तर्क की जगह डर ले ले, और असहमति को चुप्पी में बदल देने की योजनाबद्ध कोशिशें की जाएँ, तब यह समझ लेना चाहिए कि हम एक नई किस्म की सत्ता–व्यवस्था में प्रवेश कर चुके हैं। भारत का डिजिटल परिदृश्य इस समय इसी व्यवस्था की चपेट में है, जहाँ ट्रोलिंग केवल ऑनलाइन हिंसा नहीं, बल्कि सार्वजनिक विवेक पर सुनियोजित आक्रमण बन चुकी है। #OnlineHarassment #DigitalIndia

भारत में ट्रोलिंग ने एक अलग ही रंग ले लिया है—यहाँ यह वैचारिक अभियान का हथियार बन चुकी है। पत्रकारों, लेखकों, कलाकारों, शिक्षकों और यहां तक कि छात्रों को गाली, धमकी, और चरित्र-हनन जैसी रणनीतियों से निशाना बनाया जाता है। #FreeSpeech #TrollingInIndia

गौरतलब है कि यह परिघटना वैश्विक है। ब्रिटेन में The Guardian की पत्रकार कैथी न्यूमैन, अमेरिका में #BlackLivesMatter से जुड़े एक्टिविस्ट, ब्राज़ील की पत्रकार पेट्रीसिया कैंपोस मेलो—सभी को एक जैसी रणनीतियों का शिकार होना पड़ा। #DigitalAbuse #MediaFreedom

इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि ट्रोलिंग अब स्वतःस्फूर्त प्रतिक्रिया नहीं रही—यह रणनीतिक और राजनीतिक औजार बन चुकी है। इसके ज़रिए विमर्श की सीमाएँ तय की जाती हैं, और डर का एक सांस्कृतिक ढाँचा रचा जाता है। #WeaponizedTrolling #SilencingVoices

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म—फेसबुक, ट्विटर (X), यूट्यूब—इस प्रक्रिया में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। भारत में कई भाषाओं में हो रही ट्रोलिंग पर इनकी प्रतिक्रिया अक्सर ढीली, भेदभावपूर्ण और सतही होती है। #BigTech #ContentModeration

भारत में दलित, आदिवासी, मुस्लिम और LGBTQ+ समुदायों के कार्यकर्ताओं को गाली देना, धमकाना, या उन्हें “देशद्रोही” कहना आज एक सामान्य ट्रोलिंग रणनीति बन चुकी है। लेकिन यही कहानी दुनिया के अन्य हिस्सों में भी दोहराई जा रही है। #DigitalCasteism #OnlineIslamophobia #LGBTQRights

प्रश्न यह नहीं है कि ट्रोलिंग क्यों हो रही है—बल्कि यह कि इसे संस्कृति में सामान्य क्यों बना दिया गया है। जब हम कहते हैं “ट्रोल्स तो होते रहते हैं” या “ये ट्विटर की आदत है,” तब हम उत्पीड़न को मनोरंजन बना देते हैं। #NormalizeNoMore #CallOutTrolling

यह चुप्पी सिर्फ व्यक्ति की नहीं—समाज की चुप्पी होती है। और जब असहमति को ‘राष्ट्रविरोध’ या ‘असभ्यता’ की श्रेणी में डाल दिया जाता है, तो लोकतंत्र का ढांचा ढहने लगता है। #DemocracyUnderThreat

समाधान आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं। हमें मीडिया संस्थानों में जवाबदेही को बढ़ाना होगा, शिक्षण संस्थानों में डिजिटल नागरिकता, संवाद के मूल्यों और असहमति के सम्मान की शिक्षा देनी होगी, और सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी नीतियाँ वैश्विक न्याय और भाषाई–सांस्कृतिक विविधता के आधार पर तैयार करनी होंगी। #DigitalLiteracy #MediaAccountability #InclusiveTech

ट्रोलिंग केवल शब्दों का खेल नहीं—it is a deeply political act of silencing. भारत और दुनिया भर में, यह लड़ाई अब केवल सोशल मीडिया की नहीं रही—यह लोकतंत्र की बुनियाद के लिए लड़ाई बन चुकी है।

#SpeakUp #AgainstTrolling #ProtectDemocracy #OnlineSafety #HateSpeech

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