“मेरी शादी 30 साल पहले हुई थी. शादी के कुछ दिन तो अच्छे रहे लेकिन उसके बाद मारपीट और घरेलू हिंसा का कहर इस कदर मेरे उपर बरपा कि मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया. पहले दिन जब मेरे पति ने मेरे ऊपर हाथ उठाया तो मुझे नहीं पता था कि अब ये रोज़ का सिलसिला बन जायेगा और मैं इसका शिकार हुआ करुंगी. कुछ दिनों बाद मैं गर्भवती हो गई, तो लगा कि अब यह सब कुछ बंद हो जायेगा. लेकिन उसने इस दौरान भी मारना नहीं छोड़ा, एक दिन उसने मुझे इतना मारा कि मेरा मिसकैरेज होने की नौबत आ गई थी. आज मैं दो बच्चो का मां हूं और पति से अलग रहती हूँ. मुझे नहीं मालूम कि घरेलू हिंसा के खिलाफ सरकार के क्या कानून हैं? अन्यथा जब पहली बार उसने हाथ उठाया था, उसी दिन उसे पुलिस के हवाले कर देती.”यह कहना है राजस्थान के लूणकरणसर स्थित घड़सीसर गांव की 42 वर्षीय पूजा (बदला हुआ नाम) का.
यह बहुत बड़ी विडंबना है कि हमारे देश में महिलाएं सबसे अधिक घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं. घर की चारदीवारी के अंदर न केवल उन्हें शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी प्रताड़ित किया जाता है और फिर घर की इज़्ज़त के नाम पर महिला को ही चुप रहने की नसीहत दी जाती है. हालांकि महिलाओं, किशोरियों और बच्चों पर किसी भी प्रकार की हिंसा करने वालों के खिलाफ कई प्रकार के सख्त कानून बने हुए है. आईपीसी की धारा के तहत जहां पहले से इस संबंध में कानून थे, वहीं 1 जुलाई से पूरे देश में तीन नए आपराधिक कानून – भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो गए हैं जो क्रमशः भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे. इन नए आपराधिक कानून में महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार की हिंसा करने वालों के विरुद्ध कानून को और भी अधिक सख्त बनाया गया है.
घरेलू हिंसा के ज़्यादातर मामले शहरों की अपेक्षा घड़सीसर जैसे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में नज़र आते हैं. यह गांव राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 254 किमी दूर और चुरु जिला के सरदारशहर ब्लॉक से 50 किमी की दूरी पर है. 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी करीब 3900 है. गांव की एक अन्य महिला 40 वर्षीय कमला (नाम परिवर्तित) बताती है कि “मेरी शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी. मेरा पति किसान है. जितनी मेहनत वो खेतों में करता था, उतना ही मेरे साथ घर आकर मारपीट करता था.
यह उसकी रोज़ की आदत हो गई थी. ऐसा करने में उसने बच्चों को भी नहीं छोड़ा. घर के सारे फैसले भी वह खुद लेता था. यहां तक कि उसने कम उम्र में ही बेटी की शादी करवा दी. हालांकि मैंने इसका काफी विरोध किया.” कमला कहती है कि हर बार उसके द्वारा की गई हिंसा के बाद ससुराल वाले मुझे घर की इज़्ज़त का हवाला देकर चुप रहने को कहते रहे. लेकिन अब मैं चुप नहीं रहती हूं और खुलकर उसके गलत फैसले का विरोध करती हूं. यदि मैं पढ़ी लिखी होती तो पहले दिन ही उसकी हिंसा का जवाब पुलिस बुला कर देती.
राजपूत बहुल इस घड़सीसर गांव में महिला और पुरुषों के बीच साक्षरता की दर में बहुत बड़ा अंतर नज़र आता है. जहां पुरुषों में साक्षरता की दर 62.73 प्रतिशत के करीब है वहीं महिलाओं में यह मात्र 38.8 प्रतिशत दर्ज की गई है. यहां लड़कियों को पढ़ाने की सोच बहुत कम है. अधिकतर लड़कियों की शिक्षा आठवीं के बाद छुड़ा दी जाती है. साक्षरता दर में यही कमी यहां महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर देता है. ज़्यादातर घरों में पति द्वारा शराब पीकर मारपीट करना आम बात है.
इस संबंध में ललिता (बदला हुआ नाम) का कहना है कि “मेरी शादी 23 साल पहले हुई थी. मेरे पति जूता बनाने का काम करते हैं. इसी से ही हमारे घर का गुज़ारा हुआ करता था. परंतु ज़्यादातर वह कमाए हुए पैसों को शराब में खर्च कर दिया करता था. जब मैं घर खर्च के लिए उससे पैसे मांगती तो वह मेरे साथ मारपीट किया करता था. एक दिन वो नशे में धुत होकर मुझे मार रहा था तो मेरी बेटी बीच बचाव में आ गई, लेकिन इस पर भी वह नहीं रुका और हिंसा जारी रखा. उसने बेटी को इतना मारा कि उसका हाथ ही तोड़ डाला और उसके सिर में गहरी चोट भी आई. मैं अब घर खर्च और बच्चों की पढ़ाई के लिए पापड़ बेल कर घर खर्च चलाती हूँ.
इस संबंध में स्थानीय समाजसेवी हीरा शर्मा का कहना है कि “इस गांव में महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा होने के कई कारण हैं. एक ओर जहां समाज महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा पर चुप है तो वहीं नशा भी एक बड़ा फैक्टर बन चुका है. शराब पीने के बाद पुरुष घरेलू हिंसा करते हैं और परिवार इसके खिलाफ बोलने की जगह महिला पर ही चुप रहने का दबाब डालता है, जो पूरी तरह से गलत है. शराब के बढ़ते ज़ोर के कारण गांव में सामाजिक कुरीतियों को भी बढ़ावा मिल रहा है. इससे, यहां के पुरुष और युवा न केवल अपनी पत्नी के साथ हिंसा करते हैं बल्कि रास्ते में आती जाती महिलाओं के साथ छेड़खानी करते है और अपशब्दों का इस्तेमाल भी करते हैं.”
वह कहती हैं कि एनसीआरबी के आंकड़े भी बताते हैं कि राजस्थान में महिलाओं के साथ हिंसा बहुत अधिक होती है. मेरे अनुभव के अनुसार जितने केस घरेलू हिंसा के दर्ज होते हैं उससे कहीं अधिक घर की चारदीवारियों में दबा दिए जाते हैं. यही कारण है कि महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले ख़त्म नहीं हो रहे हैं. इसके लिए समाज को पहल करनी होगी, उसे महिलाओं के खिलाफ होने वाली किसी भी हिंसा के विरुद्ध सशक्त आवाज़ उठानी होगी और पीड़िता के साथ खड़ा होना होगा. महिलाओं को जागरूक करने से पहले समाज की चेतना को जगाना आवश्यक है.
यह आलेख राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर से ग्रामीण लेखिका भावना ने चरखा फीचर के लिए लिखा है