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हिन्दी कविता : क्यों चलु मैं तेरी राह पर !

क्यों चलु मैं तेरी राह पर ,

राही हूँ मैं मेरी राह की,

पथ भी अपना बनाऊँगी,

नहीं चलु मैं तेरी लीक पर,

मैं पंछी नहीं किसी बसेरे की। 

मैं स्वछंद अपनी सृजनता की,

राह मेरी है, पथ मेरा है,

कठिनाईयाँ भी मेरी है,

नहीं करूँगी मलाल काँटो का, 

क्योंकि राह मेरी है।

क्यों चलु मैं तेरी राह पर,

मैं राही अपनी राह की ।। 

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