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“ सेला टॉप के बिना अरुणांचलप्रदेश की अधूरी है कहानी “ ( संस्मरण )

“ सेला टॉप के बिना अरुणांचलप्रदेश की अधूरी है कहानी “

( संस्मरण )

डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “

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पर्यटकों का आकर्षण केंद्र और अरुणांचलप्रदेश की उच्चतम चोटी ,सेला दर्रा और वहाँ की सेला झील को देखे बिना अरुणांचल प्रदेश की यात्रा सफल नहीं मानी जाती है ! यह तवांग और वेस्ट कामेंग के सीमा पर स्थित है ! इसकी ऊँचाई 13,714 फीट समुद्रतल से ऊपर है ! यहाँ के दर्रे ,और ऊँची पर्वत शृंखलायें बर्फ से अक्षादीत रहतीं हैं ! सारा प्रकृति बर्फ के चादर में लिपटा हुआ रहता है ! वहाँ की झील बर्फ से जम जाती है !

1962 के भारत -चीन युद्ध में सिपाही जसवंत सिंह ने दर्रे के पास चीनियों के दाँत खट्टे किए थे ! इस युद्ध के दौरान शीला नाम की आदिवासी लड़की सिपाही जसवंत सिंह को भोजन की आपूर्ति करती थी ! जसवंत सिंह के शव को देख उसने भी अपनी आत्म हत्या कर ली ! उसी शीला के नाम पर इसका नाम सेला टॉप रखा गया !

मुझे यह सुनहरा अवसर मिला ! कुछ दिन ही हुए थे मैं सेंगे आया था ! अचानक आदेश आया कि अबिलंब अड्वान्स ड्रेसिंग स्टेशन मेडिकल टीम वहाँ स्थापित किया जाय ! सेला टॉप के आस -पास तो अधिक सैनिक नहीं थे पर कुछ दूर हटकर नूरानाँग और जसवंतगढ़ में कुछ सैनिकों की टुकड़ियाँ रहतीं थीं !

एक एंबुलेंस ,एक फौजी ट्रक , दस मेडिकल कर्मचारी और सब समान लेकर दिनांक 10 नवंबर 1984 को वहाँ चल पड़े ! दूरी कोई 14 किलोमीटर थी पर पहाड़ी रास्ते बड़े दुर्गम होते हैं ! समय 3 घण्टे लग गए वहाँ पहुँचने में !बर्फ के तमाम कपड़ों को पहने के बाबजूद हाथ -पॉव ठंडे पड़ गए थे ! ऑक्सीजन की कमी महसूस हो रही थी !

परंतु कुछ क्षणों के बाद अनोखे दृश्यों को देखकर मन झूमने लगा ! सेला झील के पास पूर्वी छोर में ही हमारे मुख्य तीन टेंट लग गए ! एक मुख्य टेंट में मेडिकल इग्ज़ैमनैशन रूम बने ! दूसरा टेंट रहने के लिए और तीसरा कूक हाउस ! और भी छोटे -छोटे टेंट भी जरूरत के मुताबिक लगाए गए !

देखते -देखते युद्ध स्तर पर काम शुरू हुआ और हमारा M I Room तैयार हो गया ! सिंगनल वालों ने घूमने वला टेलीफोन लगा दिया ! 11 नवंबर 1984 से हमारा M I Room काम करने लगा !यहाँ पर्वतों और बरफ़ों के चादरों का सानिध्य प्राप्त होने लगे ! यहाँ हरियाली नहीं थी ! पेड़ -पौधे बहुत कम ,घास कहीं -कहीं और जो थे वे काले पड़ गये थे !

सड़क के किनारे एक दो झोपड़ियाँ दिखाई देतीं थीं ! दूर- दूर तक लोग दिखाई नहीं देते थे ! स्नो टेंटों के भीतर बैठ हमलोग सिकड़ी सेंकते थे ! सर में वल्कलवा ,शरीर में गर्म कपड़े ,मोटा जैकिट और कोर्ट ,गर्म लोअर ,ऊनी पेंट ,ऊनी सॉक्स ,गम बूट और हाथ में दास्तान 24/7 बदन से चिपके रहते थे !इतने करीब से बादल और बर्फीली पर्वतों को देखने का सौभाग्य मुझे पहली बार मिला !

शाम को कुछ दूर तक घूमने निकल जाते थे पर ऑक्सीजन की कमी मुझे किसी टील्हे पर बैठने को मजबूर कर देती थी ! शाम में भोजन के बाद कुछ संगीत का प्रोग्राम होता था ! वाध्य-यंत्र के आभाव में हम अपने- अपने मग -प्लेट ,कुर्सी और टेबल बजते थे ! लालटेन जलाए जाते थे ! उसी रोशनी में हम अपने सगे संबंधी को फौजी अन्तर्देशीय लिफाफे में चिठ्ठी लिखते थे !

कुछ दिनों के बाद यह युद्ध अभ्यास खत्म हुए और मैं सबलोगों के साथ सेंगे उतर आया ! धीरे धीरे क्रमशः गुवाहाटी लौट आया ! पर सेला टॉप का अनुभव ,प्राकृतिक दृश्य ,परिवेश ,दिव्य स्वर्ग की अनुभूति को नहीं भूल पाया ! आज भी वहाँ की स्मृतियों को मैं याद करता हूँ तो रोमांचित हो उठता हूँ !

पर्यटक बनके जाना आज के युग में और भी रोमांचक प्रतीत होता है ! पर सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी सैनिकों के कँधे पर है ! इसलिए आज मैं हूँ कल किसी और को वहाँ जा के सीमा की सुरक्षा करनी ही होगी ! आज मैं शहीद जसवंत सिंह और शीला के सेला टॉप और दर्रे को नमन करता हूँ !

यहिंद !

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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “

साउंड हेल्थ क्लिनिक

एस ० पी ० कॉलेज रोड

दुमका

झारखण्ड

भारत

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