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भारतीय न्याय संहिता: क्या है भारत की नई दंड संहिता में पहले से अलग?

एक जुलाई से भारत में तीन नए आपराधिक नियम लागू हो गए। जिनमें भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम शामिल हैं। ये तीन नियम भारत की पुलिस और न्याय व्यवस्था की धुरी है। अपराध संबंधी विवेचना से लेकर कानूनी प्रक्रिया तक इनका उपयोग होता है। सामान्य नागरिक भी इन कानूनों की धाराओं से परिचित है और प्रमुख अपराधों से संबंधित धाराओं के बारे में जागरूक है लेकिन इस बड़े बदलाव के बाद पूरी न्यायिक प्रक्रिया में बड़ा बदलाव देखने मिलेगा।

इन तीन प्रमुख नियमों में बदलाव कुछ इस तरह होगा।

नए नियम में ऐसे कई प्रविधान किए गए हैं जो न्याय की अवधारणा को मजबूत करते हैं। आधुनिक न्याय प्रणाली को अमली जामा पहनाने के लिए डिजिटल प्लेटफार्म और एप तैयार हो गया है। ये एक जुलाई से काम करने लगेंगे। इस नई व्यवस्था से न्याय न केवल सुगम होगा बल्कि तेज गति से जांच होने से मुकद्मों का फैसला जल्द हो सकेगा। अब न्यायालय में लंबित आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए पीड़ित को कोर्ट में अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिलेगा। न्यायालय पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना मुकदमा वापस लेने की सहमति नहीं देगा। अब देशभर में कहीं भी एफआईआर दर्ज हो सकती है।

ये हैं नए प्रावधान

नए नियमों में ऐसे कई प्रविधान किए गए हैं, जो न्याय की अवधारणा को मजबूत करते हैं। समयबद्ध न्याय के लिए पुलिस व कोर्ट के लिए सीमाएं भी निर्धारित की गई हैं। अंग्रेजों के बनाए नियम खत्म हुए तो पहली बार छोटे अपराधों में सजा के तौर सामुदायिक सेवा का भी प्रविधान किया गया है। पुलिस विवेचना में अब तकनीक का उपयोग अधिक से अधिक होगा। इसके लिए डिजिटल साक्ष्यों को पारंपरिक साक्ष्यों के रूप में मान्यता दी गई है। ई-एफआइआर व जीरो एफआइआर की भी व्यवस्था की गई है। आतंकवाद व संगठित अपराध जैसे नए विषय भी जोड़े गए हैं। नए कानूनों की मूल भावना तकनीक का अधिक से अधिक प्रयोग कर यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी स्थित में वादी (शिकायतकर्ता) का उत्पीडन न हो तथा कोई भी निर्दोष व्यक्ति दंडित न हो। विवेचक व इस प्रक्रिया से जुड़े किसी व्यक्ति के विवेक के बजाए किसी निष्कर्म पर पहुंचने की प्रक्रिया तकनीक पर आधारित हो। इसके लिए फारेंसिक साक्ष्यों का उपयोग भी अधिक से अधिक सुनिश्चित कराया जाएगा। एनआइसी ने ई-साक्ष्य एप बनाया है, जिससे घटनास्थल की वीडियोग्राफी की जा सकेगी तथा उसे डिजी लॉकर में सुरक्षित किया जा सकता है। इससे कोर्ट में साक्ष्य पेश करने में किसी भी प्रकार की तकनीकी बाधा नहीं होगी।

गवाही के लिए नहीं जाना होगा कोर्ट

इस नई व्यवस्था के लागू होने के बाद किसी को गवाही देने के लिए अदालत या पुलिस थाने जाने की जरूरत नहीं है। लोग अपने स्थान से ही गवाही दे सकेंगे। पुलिस को भी बयान के लिए कोर्ट में घंटों इंतजार नहीं करना पड़ेगा। गवाही के दि उन्हें इसका लिंक भेजा जाएगा। पुलिस अपराध से जुड़े सभी सुबूत ई-साक्ष्य पर अनिवार्य रूप से अपलोड करेगी। इसी तरह आरोपितों और गवाहों को बुलाने के लिए उनके घर सम्मन भेजने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्हें एसएमएस, व्हाट्सएप या ई-मेल से ई-सम्मन भेजकर बुलाया जाएगा। जैसे ही गवाह इस सम्मन को देखेगा, सम्मन डिलिवरी की रिपोर्ट अपने आप जनरेट हो जाएगी और वह रिपोर्ट संबंधित जांच अधिकारी के साथ साथ अदालत के पास भी ई-कोर्ट पोर्टल पर पहुंच जाएगी। यानी गवाह सम्मन नहीं मिलने का बहाना नहीं बना सकेगा।

मुकदमे की प्रगति जानने का अधिकार

नए कानूनों में महिलाओं व बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गई है। दुष्कर्म व पाक्सो एक्ट के मामलों में जांच दो माह के भीतर पूरी करने की व्यवस्था की गई है। नए नियम के तहत पीड़ित को 90 दिन के भीतर अपने मामले की प्रगति पर नियमित रूप से जानकारी पाने का अधिकार होगा। इसके अलावा तलाशी अथवा जब्ती की प्रक्रिया के दौरान वीडियोग्राफी कराना अनिवार्य होगा। सात वर्ष अथवा उससे अधिक की सजा वाले अपराधों में वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाने के लिए फारेंसिक विशेषज्ञ को घटनास्थल पर जाना अनिवार्य होगा। हालांकि इस व्यवस्था को लागू करने के लिए पांच वर्ष की सीमा निर्धारित की गई है।

ये हैं महत्वपूर्ण बदलाव

1. विदेश में रहकर अथवा रहने वाला कोई व्यक्ति यदि कोई घटना कराता है तो वह भी आरोपित बनेगा।

2. अपराध में किसी बालक को शामिल कराने वाले को तीन से 10 वर्ष तक की सजा की व्यवस्था की गई है।

3. पांच व उससे अधिक व्यक्तियों की भीड़ द्वारा मूल वंश, जाति, समुदाय, लिंग व अन्य आधार पर किसी व्यक्ति की हत्या पर आजीवन कारावास से

मृत्युदंड तक की सजा।

4. राजद्रोह के स्थान पर भारत की संप्रभुता, एकता व अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य को धारा 152 के तहत दंडनीय बनाया गया है।

5. चोरी एक से अधिक बार करने वाले को पांच वर्ष तक के कारावास की सजा।

6. छोटे अपराध जिनमें तीन वर्ष से कम की सजा है, उनमें आरोपित यदि 60 वर्ष से अधिक आयु का है अथवा गंभीर बीमार/आशक्त है तो उसकी गिरफ्तारी के

लिए पुलिस उपाधीक्षक या उससे वरिष्ठ अधिकारी की अनुमति लेना अनिवार्य।

7. निजी व्यक्ति द्वारा किसी आरोपित को पकड़ने पर उसे छह घंटे के भीतर पुलिस के हवाले करना होगा।

8. गंभीर अपराध की सूचना पर घटनास्थल पर बिना विचार करे शून्य पर एफआइआर दर्ज होगी। ई-एफआइआर की दशा में सूचना देने वाले व्यक्ति को तीन दिन के भीतर हस्ताक्षर करने होंगे।

9. एफआइआर की प्रति अब सूचनादाता के साथ-साथ पीड़ित को भी मुफ्त दी जाएगी।

10. तीन से सात वर्ष से कम की सजा वाले अपराध में थानाध्यक्ष, पुलिस उपाधीक्षक अथवा उससे वरिष्ठ अधिकारी की अनुमति लेकर एफआइआर दर्ज करने से पहले 14 दिन के भीतर प्रारंभिक जांच कर सकेंगे।

11. दुष्कर्म व एसिड अटैक के मामले में विवेचना के दौरान पीड़िता का बयान महिला मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा। महिला मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति में पुरुष मजिस्ट्रेट महिला अधिकारी की मौजूदगी में बयान दर्ज करेंगे।

अब बदल जाएंगे सारे नियम

तीनों नए आपराधिक नियम लागू होने के बाद आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता, सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य संहिता ले लेंगे। तीनों नए कानूनों को लागू करने का मकसद साफ है कि अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे नियमों-कायदों को हटाना और उनकी जगह नए कानूनों को लागू करना है। तीनों नए कानूनों के लागू होने के बाद क्रिमिनल लॉ सिस्टम में बदलाव आ जाएगा। अब पुलिस कुछ मामलों में आरोपी को हथकड़ी लगाकर भी गिरफ्तार कर सकती है।

जीरो एफआईआर में जोड़ी जाएंगी धाराएं

नए नियम लागू होने के बाद से एफआईआर देश भर में कहीं भी दर्ज हो सकती है। इसमें धाराएं भी जुड़ सकती हैं। अब तक जीरो एफआईआर में धाराएं नहीं जुड़ती थी। जीरो एफआईआर 15 दिन के अंदर एफआईआर संबंधित थाने को भेजनी होगी। नियम के चलते पुलिस की जवाबदेही भी बढ़ गई है। राज्य सरकार को अब हर पुलिस थाने में ऐसे पुलिस अफसर नियुक्त करने होंगे, जिनके ऊपर हर व्यक्ति के गिरफ्तारी की जिम्मेदारी होगी। पुलिस को अब 90 दिन के भीतर पीड़ित को प्रोग्रेस रिपोर्ट देनी होगी। 90 दिन में पुलिस को चार्जशीट दाखिल करनी होगी। 180 दिन यानी छह महीने में जांच पूरी करके ट्रायल शुरू करना होगा। अदालत को भी 60 दिन के भीतर आरोप तय करने होंगे। 30 दिन के अंदर सुनवाई पूरी करके फैसला सुनाना होगा। फैसला सुनाने और सजा का ऐलान 7 दिन में करना होगा।

गिरफ्तारी के यह हैं नियम ?

गिरफ्तारी के नियमों में अधिक बदलाव नहीं हुआ है. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35 में एक नया सब सेक्शन 7 जोड़ा गया है. इसमें छोटे-मोटे आरोपियों और बुजुर्गों की गिरफ्तारी को लेकर नियम बनाए गए हैं। इसमें तीन साल और इससे कम सजा की प्रावधान हैं। मामले में गिरफ्तारी के लिए डीएसपी और इससे ऊपर के अधिकारियों की अनुमति आवश्यक है।

हथकड़ी लगाने को लेकर बदले नियम

1980 में सुप्रीम कोर्ट ने हथकड़ी के इस्तेमाल को असंवैधानिक करार दिया था. कोर्ट ने उस वक्त कहा था कि अगर किसी व्यक्ति को हथकड़ी लगाई जाती है तो उसका कारण बताना होगा और इसके लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति आवश्यक है। हालांकि, अब नए नियम के तहत धारा 43 (3) के तहत गिरफ्तारी या अदालत में पेश करते समय कैदी को हथकड़ी लगाई जा सकती है।

भगोड़े आरोपियों पर भी चलेगा मुकदमा

नए नियम के तहत फरार अपराधियों पर भी मुकदमा चल सकता है, इससे पहले सिर्फ आरोपी के अदालत में मौजूद होने पर ट्रायल शुरू हो पाता था. आरोप तय होने के 90 दिन बाद भी अगर आरोपी कोर्ट में पेश नहीं हुआ तो ट्रायल शुरू हो जाएगा क्योंकि कोर्ट मान लेगी की आरोपी ने निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार छोड़ दिए हैं।

दया याचिका के नियम बदले

दया के लिए आरोपी सभी कानूनी रास्ते खत्म होने के बाद कभी भी याचिका दायर की जा सकती है. पर अब 30 दिन के भीतर दया याचिका राष्ट्रपति के समक्ष दायर करनी होगी। राष्ट्रपति के फैसले की सूचना 48 घंटे के भीतर केंद्र सरकार को राज्य, गृह विभाग और जेल सुपरिटेंडेंट को देनी होगी। भारतीय न्याय संहिता की धारा 99 के तहत, वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से बच्चे को खरीदने पर कम से कम सात साल की कैद होगी और इसे 14 साल तक बढ़ाया जा सकता है।

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