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बिहार के नियोजित शिक्षकों की दशा और दिशा के ऊपर बात कौन करेगा?

जिस देश में शिक्षकों को राष्ट्र निर्माता की उपाधि दी जाती हो उसी देश के एक राज्य बिहार में दो दशक से अनवरत रूप से शिक्षकों को राज्य सरकार के द्वारा यातना दी जा रही है । यातना देकर भी बिहार सरकार का मन नहीं भरता है तो हर साल एक नई व्यवस्था के साथ यातना की शुरूआत की जाती है । इतना ही नहीं यातना तो छोटा शब्द है इसे शिक्षकों का मानसिक/शारिरिक/आर्थिक/भावनात्मक/मनोवैज्ञानिक रूप से प्रताड़ित किया जाना कहना सही होगा ।

बिहार में शिक्षकों की यातना की कहानी वर्ष 2005 से प्रारंभ होती है

वर्ष 2005 में जब एनडीए सरकार का गठन हुआ और सुशासन बाबू श्री नीतीश कुमार जी के अगुआई वाली सरकार ने शिक्षकों को बहाली करने के लिए जो शिक्षक नियमावली बनाई उसे नियमित सेवा को हटाकर उसके जगह संविदा में बदल दिया जिसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2022 तक बिहार में संविदा शिक्षक नियमावली के तहत बहाली हुई । याद कदा जब शिक्षकों के द्वारा आंदोलन किया गया तो सरकार ने लॉलीपॉप के रूप में कुछ राशि मानदेय में और सुविधा बढ़ा दिया लेकिन राज्यकर्मी जैसे सुविधा से वंचित रखा गया है।

जब शिक्षकों ने संविदा शिक्षक नियमावली का विरोध करते हुए “समान कार्य समान वेतन”मांगा

जब संविदा शिक्षक नियमावली की समझ बिहार के शिक्षकों को आया तब वह न्यायालय का रुख किया और समान कार्य समान वेतन मांगा लेकीन माननीय उच्च न्यायालय पटना के द्वारा खारिज़ कर दिया गया उसके बाद शिक्षकों ने माननीय उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली का रुख किया लेकीन माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस संविदा शिक्षक नियमावली के तहत आप राज्यकर्मी जैसी सुविधा की मांग नहीं कर सकते हैं।

जब केंद्र सरकार के एक स्कीम ईपीएफओ से संविदा शिक्षक लाभान्वित हुए

केंद्र सरकार ने 2020 से सभी गैर सरकारी संगठन में कार्य करने वाले कर्मी को ईपीएफओ का लाभ दिया जिसमें 1800 रूपए कर्मचारियों से और 1800 रूपए संगठनों के द्वारा देय होगा जो इस कर्मचारी के भविष्य निधि के रूप में संचित होगा। इस योजना से बिहार के सभी संविदा शिक्षक लाभान्वित हुए।

नई शिक्षक नियमावली से निराश हुए संविदा शिक्षक 

जब महागठबंधन सरकार नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के अगुआई वाली सरकार ने शिक्षकों के भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के लिए जो नई शिक्षक नियमावली बनाई उससे पहले से कार्यरत संविदा शिक्षक में घोर निराशा हाथ लगी क्योंकी उसमें संविदा शिक्षक के लिए कुछ भी नहीं था। और इस नियमावली में नए जो शिक्षक भर्ती होंगे वो राज्यकर्मी कहलाएंगे और उन्हें न्यू पैंशन योजना का लाभ मिलेगा। वे सभी शिक्षक जिला संवर्ग के होंगे। उनके कक्षा वार पे ग्रेड भी फिक्स किया गया है। कक्षा 1-5 तक के 2500 ग्रेड पे,6-8 तक के लिए 2800 ग्रेड पे, कक्षा 9-10 तक के लिए 3100, कक्षा 11-12 तक के लिए 3200 ग्रेड पे निर्धारण किया गया है। जबकि संविदा शिक्षक नियमावली में राज्यकर्मी के लिए प्रावधान है और न ही न्यू पेंशन योजना है।

जब संविदा शिक्षकों के आंदोलन को कुचलने के लिए कड़क आईएएस अधिकारी के के पाठक को अवर मुख्य सचिव शिक्षा विभाग बनकर लाया गया।

जब संविदा शिक्षकों में सरकार के प्रति रोष व्याप्त हो गया तो उन्होंने सरकार को अल्टीमेटम दिया कि हमारे बारे में सोचिए या आंदोलन को झेलिए। इस परेशानी से निबटने के लिए सुशासन बाबू नीतीश कुमार ने एक कड़क आईएएस अधिकारी के के पाठक को शिक्षा विभाग का अवर मुख्य सचिव बनाकर बिठा दिया। उसके बाद शिक्षकों के ऊपर यातना का दौर शुरू हो गया। कभी विद्यालय ससमय पहुंचने के नाम पर तो कभी प्रशिक्षण के नाम शिक्षकों की हाज़िरी काटने जाने लगा और उनके वेतन को काटा जाने लगा। ऑनलाइन मीटिंग बुलाई गई और नोटकैम से तस्वीर मांगी गई। अनावश्यक रूप से शिक्षकों के ऊपर मानसिक रूप से दबाव बनाया गया। जिससे कई शिक्षकों ने अपनी जान गंवा दिया और कई शिक्षकों की मानसिक स्थिति बिगड़ गई। कई शिक्षकों का विद्यालय जाने के क्रम में दुर्घटना हो गया। लोकतंत्र में आंदोलन क्या होता है और लोकतांत्रिक मूल्य क्या होता है इससे संविदा शिक्षकों को दूर कर दिया गया उनको विद्यालय के चारदीवारी में कैद कर दिया गया।

जब संविदा शिक्षकों की सक्षमता परीक्षा ली गई 

जब संविदा शिक्षकों के आंतरिक विरोध का पता सरकार को लगा और साथ ही साथ लोकसभा चुनाव 2024 नजदीक पाया तो सुशासन बाबू ने शिक्षकों को राज्यकर्मी जैसी सुविधा और विशिष्ट शिक्षक नियमावली बनाकर उन्हें पुनः अपनी क्षमता को सिद्ध करने के लिए बिहार सक्षमता परीक्षा 2024 लिया गया ताकि उन्हें सारी सुविधा उपलब्ध कराई जा सके लेकिन संविदा शिक्षकों को बिहार सक्षमता परीक्षा परिणाम घोषित हुए आज करीब सात महीने से अधिक हो चुके हैं लेकिन राज्यकर्मी जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं हो सका है । बिहार सरकार ने संविदा शिक्षकों को बिहार सक्षमता परीक्षा कुल पांच अवसर प्रदान किया है जिसमें पहली तीन अवसर में ऑनलाइन परीक्षा देना है और अंतिम दो अवसर में ऑफलाइन परीक्षा देना है।

निष्कर्ष: जो राष्ट्र/राज्य/प्रांत/क्षेत्र/समाज अपने शिक्षकों का सम्मान नहीं करता हो वह राष्ट्र/राज्य/प्रांत/क्षेत्र/समाज का पतन हो जाता है । जिस राज्य में शिक्षा सर्वोपरी होता था और शिक्षक राष्ट्र निर्माता उसी राज्य में निरकुंश शासन ने शिक्षकों की दशा दिशा भयावह बनाकर रख दिया है। क्योंकि इस राज्य में शिक्षा प्राथमिकता की सूची से बाहर है। जिस राज्य में वैश्विक स्तर पर शिक्षकों का सम्मान होता था आज उस राज्य में शिक्षक अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। बिहार सरकार ने शिक्षकों को यातना देकर यह साबित किया है कि लोकतंत्र में पांच साल में अगर नेतृत्व परिवर्तन नहीं होता है तो सत्ता निरंकुश हो जाता है। बिहार में 2005 से निरंतर और आज तक अनवरत रूप से तथाकथित रूप से सुशासन बाबू नीतीश कुमार सत्ता पर काबिज है और अलोकतांत्रिक तरीके से संविदा शिक्षकों के ऊपर यातना जारी है। जो निरंतर जारी है पता नहीं यह कितने दिनों तक अनवरत रूप से चलेगा। अभी हाल में अवर मुख्य सचिव के रुप में के के पाठक को हटाकर एस सिद्धार्थ को लाया गया है। आईएएस अधिकारी कोई भी हो वह निरकुंश सत्ता के लिए ही कार्य कर रही है क्योंकि इस अवर मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ ने शिक्षकों को ई शिक्षाकोष ऐप पर अपनी दैनिक उपस्तिथि दर्ज़ करने को कहा है और यह ऐप विद्यालय के 500 मीटर की परिधि में कार्य करता है। अन्यथा इस ऐप में शिक्षकों को अनुपस्थित मान लिया जाता है। अंत्यंत दुर्भाग्य है। क्योंकि बिहार की जो भूगौलिक स्थिति है उसमें उत्तर बिहार के विद्यालय 4-6 महीनों बाढ़ से प्रभावित रहता है जबकि दक्षिण बिहार के विद्यालय सुखाड़/भीषण गर्मी/दुर्गम क्षेत्र से प्रभावित रहता है। ऐसी दुखद स्थिति में शिक्षकों की हाज़िरी ई शिक्षाकोश ऐप पर बनना अपने आप में चुनौतीपूर्ण है। हालांकि उत्तर प्रदेश में इसी तरह की प्रक्रिया को वहां के शिक्षको के विरोध के बाद वापस ले लिया गया है लेकिन बिहार में इस विषय के ऊपर कोई बात ही नहीं करता है। बिहार सरकार की सुशासन बाबू नीतीश कुमार जी की सरकार अगर अविलंब संविदा शिक्षकों की लंबित/बहुप्रतीक्षित मांगों को निराकरण नहीं करती है तो बिहार राज्य में शिक्षा व्यवस्था रसातल में चली जायेगी।


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