Site icon Youth Ki Awaaz

व्यक्तिगत स्तर पर पर्यावरण सुरक्षा के लिए क्या करें

– डा. अनामिका सिंह

स्वच्छ पर्यावरण हमारे जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है वह पर्यावरण जिसमें हम रहते हैं सांस लेते हैं विकास करते हैं उसी को हमने पिछले 300 वर्षों में काफी नुकसान पहुंचा है वर्तमान में विकास के नाम पर हमने अपने पर्यावरण को बड़े पैमाने पर प्रदूषित किया है। यही विनाशकारी विकास जिसे हम औ‌द्योगिक क्रांति के बाद से आवश्यक विकास के रूप में परिभाषित करते चले आए हैं हमारे पर्यावरण के लिए आज बहुत बड़ा खतरा बन गया विनाश की यह प्रक्रिया 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विनिर्माण, खनन, परिवहन, कृषि क्षेत्र में विकास के साथ प्रारंभ हुई और 21वीं शताब्दी के पूर्वाध में इस विकास की कीमत पर्यावरणीय क्षति के रूप में भयंकर दुष्परिणाम के साथ हमारे सामने प्रकट हुई ।

आज आधुनिक विश्व विकास के जिस चरम पर है वहां पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचना और और उसका परिवर्तित होना कोई आश्चर्य की बात नहीं। 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से हमने औ‌द्योगिक क्रांति के फल स्वरुप विकास को रफ्तार दी इसमें आर्थिक विकास के साथ साथ पर्यावरण में भारी मात्रा में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन शुरू हो गया। यह प्रदूषक गैसें कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन आदि है जिन्हें हरित गृह गैसों के नाम से भी जाना जाता है। वायु में इन्हीं गैसों की अधिकता या सांद्रण (मात्रा) बढ़ने से वातावरण गर्म होना शुरू हुआ इसी को वैश्विक उष्मन कहते हैं। और इसका परिणाम जलवायु परिवर्तन है। प्रकृति ने बढ़ते प्रदूषण के साथ सामंजस्य एक सीमा तक बैठाया और वातावरण को सामान्य रखने का प्रयास किया लेकिन वर्तमान में प्रदूषण ने इतनी विकट परिस्थितियां उत्पन्न कर दी की अब यह प्रक्रिती के स्वतः भरण पुरण की क्षमता के बाहर हो गया। जिसका परिणाम मौसमी चरम घटनाओं, जिसमें अतिवृष्टि, बाढ़, सूखा, अंटार्कटिका की बर्फ का पिघलना, शीतोष्ण कटिबंधीय देशों में भी भीषण गर्मी पड़ना, जंगल की आग, हिम नदियों का तीव्र पिघलना, सागर जल स्तर बड़ा परिवर्तन प्राकृतिक प्रकोप एवं आपदाओं के रूप में सामने है।
देखा जाय तो सन् 1880 से अब तक तापमान में एक डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की बढ़त दर्ज हो चुकी है यह 2050 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस और सदी के अंत तक 4-6 डिग्री सेल्सियस सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान हैं ऐसा IPCC के अध्ययन कहते है। यह आंकड़े देखने में जितने छोटे प्रतीत होते हैं इनके परिणाम वैश्विक स्तर पर बड़े जलवायु परिवर्तन लाने की क्षमता रखते हैं। वर्ष 2024 में फरवरी का तापमान अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ गया अर्थात फरवरी इतनी गरम कभी नहीं रही
इसके साथ ही फरवरी से जून 2024 तक का ऊचा तापमान इस परिवर्तन का बड़ा उदाहरण है। यदि अब भी हमने समझदारी दिखाते हुए प्रकृति के साथ सहयोग करना प्रारंभ कर दिया तो जल्दी ही वह इसके सकारात्मक परिणाम देना शुरू कर देगी। ऐसा नहीं है कि इस तरफ राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय प्रयास नहीं किए गए लेकिन बस इतना ही परयाप्त नहीं इसमे प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा
प्रश्न यह है कि जब प्रकृति के जल वायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव सभी को झेलने हैं तो प्रयास केवल 10% सरकार स्तर पर ही क्यों? क्या इस धरती पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं की वह अगर प्रकृति
से 100% ले रहा है तो उसे 50% ही वापस करें। यह 50% वापसी का प्रयास व्यक्ति अपने कार्बन फुटप्रिंट (कार्बन पद चिन्ह कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन सहित ग्रीन हाउस गैसों की कुल मात्रा है जो हमारे दिन प्रतिदिन के कार्यों से प्रति वर्ष उत्सर्जित होती है) को काम करके कर सकते हैं। कार्बन फुटप्रिंट भारत में लोगों के लिए औसतन 1.6 तन प्रति वर्ष है। इसे ही कम से कम स्तर पर लाना हमारा प्रकृति के लिए सबसे बड़ा योगदान होगा।
ऐसा नहीं है कि पर्यावरण समस्याओं का समाधान नहीं है जरूरत है इसके लिए आगे आने की और पर्यावरण के लिए अपनी जिम्मेदारियां को समझने की। हर व्यक्ति अपने पर्यावरण को अपनी तरफ से बहुत कुछ दे सकता है। अपना कार्बन फुटप्रिंट काम करके । हम अपने दिन प्रतिदिन के व्यवहार में यदि थोड़ा परिवर्तन करेंगे तो पर्यावरण इसे बड़े स्तर पर स्वीकार करेगा और उसका परिणाम भी जल्द से जल्द सकारात्मक रूप में सामने आएगा
ज्यादा पीछे नहीं जाते हैं जब कोरोना काल में लॉकडाउन लगा था तब अप्रैल और मई के तापमान में भारी गिरावट देखी गई थी क्योंकि परिवहन साधनों को उ‌द्योगों को बिल्कुल रोक देने से इन गैसों का वायु में उत्सर्जन पूर्ण तया रुक गया और तापमान में भारी गिरावट देखी गई। वायुमंडल स्वच्छ हो गया और यह हानिकारक गैसें जो सूर्य की किरणों को सोखती है वही वायुमंडल में कम हो गई यह थोड़ी अवधि का बदलाव ही एक बड़ा उदाहरण दे गया क्योंकि इस समय प्रदूषण स्तर बिल्कुल कम हो गया था हमें क्या करना चाहिए की हमारा पर्यावरण इन गैसों को अपने आप कम कर दे।
एयर कंडीशनर का उपयोग ना करें (इससे निकलने वाली CFC गैस का ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल कार्बन की तुलना में 10000 गुना है एक बार उत्सर्जित होने के बाद यह अगले 200 वर्षों तक वातावरण में उपस्थिति रहती है और उसे गर्म करती रहती है) इसे पेड़ पौधे भी नही कम कर सकते
• विद्युत ऊर्जा की खपत कम करें और सौर ऊर्जा को विकल्प के रूप में अपनाये
जीवाश्म ईंधन के स्थान पर जैव ईंधन को विकल्प के रूप में प्रयोग करें थोड़ी दूरी के लिए वाहनों का प्रयोग ना करें
कार्बन व मीथेन के स्रोतों कोयला, लकड़ी, उपला, पराली को कम या ना जलाएं
ग्रामीण क्षेत्रों में बायोगैस व अन्य ईंधन स्रोतों का प्रयोग करें जो कार्बन ना उत्सर्जित करते हैं
ग्रामीण अपने धान के खेतों में सूखी पराली बिल्कुल ना जलाएं क्योंकि जलने पर मेथेन वायु में चली जाएगी और दूसरी तरफ मिट्टी के अपघटक बैक्टीरिया जल के मर जाएंगे जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति घट जाएगी मिट्टी में सड़ने गलने पर यही पराली नाइट्रोजन का बड़ा स्रोत हो जाएगी और जैविक खाद के रूप में बेहतर परिणाम देगी
आग जलने पर घुए के साथ किसी ना किसी प्रकार की जहरीली गैस वायुमंडल में मिलती है वही ये हमारी जीवनरक्षक गैस आक्सीजन को भी जलने के लिए उपयोग करती है, इसलिए किसी भी प्रकार की आग आवश्यकता पड़ने पर ही जलाये
पेड़ों के पत्तियों को जलाने की बजाय उससे सड़ा गला कर कंपोस्ट तैयार करें जलने पर यह कार्बन के रूप में धुएं के साथ हवा में मिल जाएगी और मिट्टी में सड़ने गलने पर यह जैविक खाद के रूप में परिवर्तित होकर बेहतर परिणाम देगी
कार्बन फुटप्रिंट को समझें और उसे काम करने का स्वयं भी प्रयास करें एवं औरों को भी इसके फायदे बताएं
अधिक से अधिक पेड़ लगाए क्योंकि यह प्राकृतिक रूप से हवा को स्वच्छ करते हैं आक्सीजन मुक्त करते है और कार्बन को अवशोषित करते हैं इसलिए इन्हें प्रकृति के फेफड़े के नाम से भी जाना जाता है।
सूचना क्रांति के इस युग में अधिकांश लोगों के पास स्मार्टफोन है एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाएं जिसमें अपने परिचितों को जोड़े और उन्हें उनके जन्मदिन पर कोई भी पौधा गिफ्ट करें और उन्हें भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। अपने जन्मदिन पर स्वयं एक पौधा अवश्य लगाये और वर्ष पर उसके देखभाल का संकल्प करें। निश्चित ही यह छोटा सा कदम पर्यावरण के प्रति आपको आपकी जिम्मेदारियां की याद दिलाएगा। यह पौधे फल फूल सब्जियां या फिर किसी बड़े पेड़ के हो सकते हैं
प्लास्टिक आपके रक्त नलिकाओं तक पहुंच चुका है इसलिए प्लास्टिक का उपयोग वंदे करे
प्लास्टिक को एक निश्चित तापमान पर गलाने व ईसे सड़क वनाने में प्रयोग की तकनीक विकसित हो और पयोग भी हो
प्रत्येक संसाधन वन, जल मिट्टी वायु को स्वच्छ रखने का संकल्प ले विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को पूरे वर्ष व्यक्तिगत रूप से मनाने का संकल्प ले की संकल्पना को अपने व्यवहार में लाएं.प्राकृति को थोड़ा ही दे वह आपको कही ज्यदा देगी निर्णय आपका।
“लेख में लिखे गए विचार लेखिका के स्वयं के हैं “
डा. अनामिका सिंह (असिस्टेंट प्रोफेसर, भूगोल विभाग) वसंत महिला महाविद्यालय, राजघाट, वाराणसी।
Exit mobile version