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विश्व जनसँख्या दिवस

                                                               विश्व जनसँख्या दिवस

विश्व जनसंख्या दिवस: हर वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है (World Population Day)l 1989 में पहली बार इस दिवस की घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की गई थीl लक्ष्य है जनसंख्या को नियंत्रित करनाl

विश्व की जनसंख्या को 1 अरब तक पहुँचने में हज़ारों साल लगे थे लेकिन इसके बाद सिर्फ़ 200 साल में ही आबादी 7 गुना तक बढ़ गईl विश्व की आबादी 8 अरब को भी पार कर गई हैl अनुमान के मुताबिक़ 2030 तक विश्व की आबादी 8.5 अरब और 2050 तक 9 अरब और 2100 तक 10.9 अरब होगीl दूसरे अनुमान के हिसाब से 2050 तक विश्व आबादी का बढ़ना बंद हो जाएगा और आबादी का घटना शुरू हो जाएगाl यह अनुमान आज की घटती जन्म दर और कुल आबादी बढ़ने की कम होती दर के अनुमान पर आधारित है जो साधारण बीजगणित पर आधारित हैl आबादी बढ़ने की दर घट रही है और यह असर हर धर्म और देशों में दिख रहा है, थोड़े-बहुत अंतर के साथl विकसित देशों में जन-संख्या करीब-करीब स्थिर है या कम भी हो रहा है| यहाँ यह भी समझाना होगा कि यदि वैज्ञानिक शिक्षा सामान्य हो जाती है आम जनता में, तो आबादी पर अंकुश लग सकता है, बढ़ने और घटने की प्रक्रिया को मानव समाज अपनी ज़रुरत के हिसाब से करेगा और फिर 2050 का अनुमान हो या 2100 का, हमें चिंतित होने की ज़रुरत नहीं होगीl समाजवादी व्यवस्था और सोच भविष्य पर काफ़ी हद तक आज की तुलना में अपने वश में कर लेगी , हर क्षेत्र में, आबादी हो, उत्पादन हो या फिर पर्यावरण हो या प्राकृतिक आपदाl

पृथ्वी पर मानव समाज की आबादी क्यों बढ़ी? क्या किसी अज्ञात शक्ति के कारण या फिर हमारी ही भौतिक परिस्थितियों के कारण? जब जीवन के साधन बढ़ते हैं, उत्पादन की क्षमता बढ़ती है तो आबादी भी बढ़ती हैl विज्ञान और तकनीकी के कारण मृत्यु दर घटती है और जीवनकाल भी बढ़ता है और इसमें चिकित्सा विज्ञान का भारी सहयोग हैl यही कारण है विश्व आबादी के बढ़ने काl सभी प्राकृतिक आपदाओं और सैकड़ों युद्ध (2 विश्व युद्ध भी शामिल हैं) के बावजूद आबादी का विस्फोट हुआ है जो मुख्यतः औद्योगिक क्रांति के बाद हुआl

आज जबकि पूँजीवाद, एकाधिकार पूँजीवाद (monopoly capitalism) में परिवर्तित हो चुका है और अपने जीवनकाल को पूरा कर बहुत गहरे अंतर्द्वंद से गुज़र रहा है, तब पूँजी के चाटुकार कई तरह के बहाने बना रहे हैं ताकि पूँजीवादी व्यवस्था (या पूँजीवादी ‘प्रजातंत्र’, या एक ही बात है, मिहनतकश जनता के खिलाफ तानाशाही) की असफलता को छुपाया जा सकेl इनमें से बढ़ती आबादी का रोना भी एक बहाना हैl पूरे विश्व में उत्पादन क्षमता का मात्र 65-70% ही इस्तेमाल हो रहा है क्योंकि बाज़ार अर्थ-व्यवस्था में उत्पादित माल का ख़रीददार नहीं हैl इस घटे हुए कृत्रिम उत्पादन में भी एक हिस्सा वैसे उत्पाद का है जो मनुष्य के द्वारा खपत के लिए नहीं बल्कि मुनाफा और विध्वंस के लिए है, उदहारण के लिए अस्त्र-शास्त्र या युद्ध उद्योग| रूस-युक्रेन, हमास-इजराइल और अन्य युद्धों को देखें|

विश्व पूँजीवाद ‘अति उत्पादन और कम खपत’ से प्रताड़ित है और इस अंतरद्वन्द का पूँजीवादी सत्ता, आर्थिक विद्वानों और चाटुकारों के पास कोई भी हल नहीं हैl नतीजा मज़दूर वर्ग और प्रताड़ित जनता भुगत रहे हैंl सिर्फ़ खाने, पहनने और रहने के ही लाले नहीं पड़ रहे हैं बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की भी भारी किल्लत हैl साथ ही अज्ञानता और अंधविश्वास भी आम हैं जो यह पूँजीपति वर्ग लगातार बढ़े हुए स्तर पर पुनरुत्पादित कर रहा हैl भारत इसका जीता-जागता उदहारण है|

बढ़ी हुई आबादी का रोना वैसे ही है जैसे कि दूसरे धर्मों और देशों को कोसना और मिहनतकश आवाम को पहचान के आधार पर गोलबंद करना और उनके क्रांतिकारी विचार और एकता को कुंद करना, तथा समाजवादी क्रांति से दूर रखना हैl हमें इतना समझना आवश्यक है कि किसी भी समाज या देश या पूरे देश की आबादी जीवन के साधन के पीछे चलती है और यदि पूँजीवादी व्यवस्था के कारण उन्हें रोज़गार और जीने के साधन नहीं मिल रहे हैं और साथ ही उन्हें ‘उत्पादन और वितरण’ से बाहर कर दिया गया है तो ख़ामी पूँजीवाद में है न कि मेहनतकश आवाम मेंl

हमारा संघर्ष पूँजीवादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ होगा और समाजवाद की स्थापना के लिए होगा और ना कि जन संख्या को नियंत्रण करने के लिए|

(यह लेख लोकपक्ष में भी प्रकाशित हो चूका है| कुछ सुधारों और संपादन के बाद पुनः प्रकाशित किया जा रहा है|)

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