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“बे-तहाशा गर्मी”

“बे-तहाशा गर्मी”

डॉ लक्ष्मण झा परिमल

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बे-तहाशा

गर्मी पड़ रही है

लोग बे-तहाशा हो रहे हैं

तालाब सूख ग

नहर अपने मुँह को फाड़े बैठा है

नदियाँ सूख चलीं

प्यासी धरती बिलख रही है

बरखा रानी रूठ गयी है

किसान आकाश की ओर

निहार रहे हैं

पनघट और कुएं वीरान

ड़े हैं

चापाकल की खटर -खटर

कहाँ सुनने को मिलती है ?

जंगल बाग़ बगीचे

उजड़ने लगे हैं

शहरीकरण बुल्डोज चला रहे हैं

कल कारखाने

कार्बन उत्सर्जन

हवा में ज़हर घोल रहा है

ग्लोबल वार्मिं

की बातें बहुत होती रहतीं हैं

पर कोई ठोस कदम

लेने से कतराते हैं

अपने- अपने देश लौटकर

चले आते हैं

और AC के बंद कमरे में

अपनी उपलब्धियों का

राग अलापते हैं !!

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डॉ लक्ष्मण झा परिमल

साउंड हैल्थ क्लीनिक

एस0 पी0 कॉलेज रो

दुमका

झारखंड

14.06.2024

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