जिस घर में बेटी होती है,
उस घर की रौनक कभी कम नही होती है,
जहां पड़े बेटी के कदम,
उस घर में खुशियां आए झूम-झूम कर,
बेटी बिना घर का क्या मतलब?
बिन तेल जले जलता हो दीपक,
जिस घर में हो बेटी का मान सम्मान,
उस घर का भविष्य सूर्य के समान,
बेटी तो होती है घर की जान है,
अपने माता पिता और भाई की शान,
बेटी बिना सुना है सब आंगन,
कैसे बने बिना बेटी तीज-त्योहार,
फिर क्यों करते हो उसका तिरस्कार,
सुनो, बेटी बिना सूना है यह संसार
यह कविता उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित कपकोट ब्लॉक के पोथिंग से दिशा सखी रौशनी गड़िया ने चरखा फीचर के लिए लिखा है