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“ ……… क्यूँ सताते हो ?”

“ ……… क्यूँ सताते हो ?”

डॉ लक्ष्मण झा परिमल

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कभी तुम

पास आते हो

कभी तुम

दूर जाते हो

मुझे तुम

रोज ऐसे ही

कहो फिर क्यूँ

सताते हो ?

कभी सपनों में

तुझे देखूँ

तेरी आहट

मैं सुनती हूँ

पता होता

नहीं मुझको

कब तक

साथ रहती हूँ

कभी कानों में

कहते हो

कभी इशारों से

कहते हो

मुझे तुम

रोज ऐसे ही

कहो फिर क्यूँ

सताते हो ?

करूँ क्या कुछ

नहीं सूझे

तुम्हारे बिन

तड़पती हूँ

कहूँ किसको

भला अपनी

सदा चुपचाप

रहती हूँ

कभी तो कुछ

समझते हो

कभी नादान

बनते हो

मुझे तुम

रोज ऐसे ही

कहो फिर क्यूँ

सताते हो ?

तुम्हारी याद में

सब दिन

बुरा यह

हाल है मेरा

चले आओ

जरा सा तुम

करो उपकार

तुम मेरा

कभी आने की

कहते हो

कभी जाने की

कहते हो

मुझे तुम

रोज ऐसे ही

कहो फिर क्यूँ

सताते हो ?

कभी तुम

पास आते हो

कभी तुम

दूर जाते हो

मुझे तुम

रोज ऐसे ही

कहो फिर क्यूँ

सताते हो ?

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डॉ लक्ष्मण झा परिमल

साउन्ड हेल्थ क्लिनिक

एस 0 पी 0 कॉलेज रोड

दुमका

झारखंड

भारत

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