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बचपन की मुंडेर पर

बचपन की मुंडेर पर

रात गुनागुना कर निकल गई

सन्नाटे से संगीत चुरा

सुबह के पास बैठ गई,

लगता है ये अन्तर्मन

अभी गूंजना चाहता है

चहूं ओर आवाजों में

खामोशी से गीत गाता है,

गीत मन के किसी किस्से पर

तिनका ले घोंसला बनाता है

एक नन्हा सा पंछी फिर से

बैठने मुंडेर पर आता है।

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