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कौन कहता है प्रकृति बोलती नहीं (कविता)

कौन कहता है कि प्रकृति बोलती नहीं,

मैं देखा है उसे बोलते हुए,

उन वादियों के बीच,

पहाड़ों की उन ऊँचाइयों पर,

वो दोहरा रही थी मेरी बातों को,

बिलकुल एक छोटे बच्चे की तरह,

मैंने देखा उसे नाराज होते हुए,

इंसानों की गलतियों पर,

धरती के सर्वश्रेष्ठ प्राणी की हरकत पर,

वह आई थी आपने काले घने रूप में,

और चली गई बिना प्यार लड़ाए,

धरती को बूंद-बूंद के लिए तरसाए,

मैंने सुनी थी उसकी वह आवाज़,

मैंने देखा था उसे रोते हुए,

अपने दर्द को बयां करते हुए,

मैंने देखा उसे रूठ कर जाते हुए,

कौन कहता है कि प्रकृति बोलती नहीं,

मैंने देखा उसे बोलते हुए।।

यह कविता उत्तराखंड के कपकोट ब्लॉक स्थित कर्मी गांव से दिशा सखी डॉली ने चरखा फीचर के लिए लिखा है

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