Site icon Youth Ki Awaaz

मानव मंगल में, मानवता जंगल में

आजकल अखबार में आए दिन ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती है जिससे मानवता शर्मसार हो जाए। कहीं बच्चों के द्वारा माता-पिता की उपेक्षा की खबर मिलती है तो कहीं छोटे बच्चों पर होने वाले अत्याचार की खबर समाचार पत्रों में प्रकाशित होती हैं। आश्चर्य की सड़क दुर्घटना में घायल इंसान की सहायता के लिए कोई हाथ आगे नहीं बढ़ता। अपनी खुशी और लालच के लिए इंसान ने पर्यावरण एवं पशु पक्षियों को भी नहीं छोड़ा। पर्यावरण का अनुचित दोहन कर प्रकृति को बीमार कर दिया है।

आदिम युग से देखे तो आज मानव ने बहुत उन्नति कर ली है। आज मानव पृथ्वी से परे दूसरे ग्रहों में जीवन तलाश रहा है। असाध्य रोगों पर मानव ने विजय प्राप्त कर ली है। भूमि ही नहीं समुद्र और आकाश तक मानव ने अपनी पहुंच बना ली है। रोज नए-नए आविष्कार मानवता की भलाई के नाम पर किए जाते हैं इसके बावजूद इंसानी लोभ के कारण होने वाली ऐसी घटनाएं हमें सोचने को मजबूर कर देती है कि क्या मानव अपने मूल गुण मानवता को भुला चुका है।

सुख, समृद्धि एवं शांति से पूर्ण जीवन के लिए सच्चरित्र तथा सदाचारी होना अति आवश्यक है जो उच्च विचारों के बिना संभव नहीं है। हमें यह दुर्लभ मानव जीवन किसी भी कीमत पर निरर्थक नहीं जाने देना चाहिए। दूसरे मनुष्य का मंगल ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए जो सिर्फ नए-नए वैज्ञानिक आविष्कार, महंगी गाड़ियां, भौतिक संसाधन को बढ़ाकर नहीं मिल सकती। हमें अपने मन में मानव के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना बढ़ानी चाहिए। केवल अपने सुख की चाह हमें मानव होने के अर्थ से पृथक करती है। मानव होने के नाते जब तक दूसरे के दु:ख-दर्द हम नहीं समझते तब तक हमारा जीवन व्यर्थ है और इस जीवन का कोई मूल्य नहीं। सिर्फ अपने परिवार और अपने आत्मीय जनों का ध्यान रखना सामाजिक उद्देश्य नहीं होता। अपने परिवार से आगे बढ़कर प्रत्येक मनुष्य और जीव जंतु के भलाई और उनके विकास के लिए कार्य करने से ही हमारी सामाजिक उद्देश्य पूरी होगी। जब हमारा परिवार हमारी प्राथमिकता ना होकर हमारा समाज हमारा परिवार बन जाए तब समझ जाएं कि हममें मानवता के गुण और सदाचार आने लगे हैं। मनुष्य की यही पूंजी उसका मंगल करती है। आज मनुष्य भौतिक संसाधनों में अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करता दिखता है अनावश्यक रूप से बढ़ते हुए भौतिक संसाधनों का मुख्य उद्देश्य अपनी जरूरतें पूरी करना है जिसके लिए वह नैतिक और अनैतिक कामों से भी पीछे नहीं होता। लालच से वशीभूत हो मनुष्य अपने स्वार्थवश मानवता जैसी पूंजी को नजरअंदाज करता है।

अनेकों भौतिक संसाधनों के उपलब्धि के बावजूद यदि हम में मानवता जैसे मूल गुण ही ना रहे तो हमारी सारी उपलब्धियां और सारे आविष्कार निरर्थक है मानव जीवन की सार्थकता तो इसी में है कि हम अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा ईमानदारी से करें। मनुष्य मनुष्य के काम आए मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है। दूसरों को की सहायता करके जो वास्तविक सुख मिलता है वह इन भौतिक सुखों में नहीं है जिस दिन मानव को यह समझ में आ जाएगा उस दिन यह धरती स्वर्ग बन जाएगी।

Exit mobile version