मुझे भी किताबें दो न मां,
भैया को स्कूल भेजती हो,
मुझे भी स्कूल भेजो न,
मां, फिर भी कर लुंगी,
मैं घर के सारे काम,
नहीं करूंगी तेरा सर नीचे,
परीक्षा में अच्छे अंक आये हैं,
हर जगह मेरा नाम छाया है,
फिर भी आगे की पढ़ाई,
मुझसे पहले भैया को क्यों?
मुझे पीछे क्यों रखा है मां?
क्या प्रशंसा लड़कों केवल लड़कों का,
और ज़ुल्म सहना लड़की की तकदीर है?
एक बेटी तो पिता की तकदीर होती है,
फिर कैसे लड़की अभिशाप हो जाती है?
सब सच्चाई समाज को मां बताओ न,
मुझे भी किताबें लाकर दो न मां
यह कविता उत्तराखंड के कपकोट स्थित उतरौड़ा से दिशा सखी शिवानी पाठक ने चरखा फीचर के लिए लिखा है