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पृथ्वी दिवस

नमस्ते

आज पृथ्वी दिवस है और इस मौके पर एक बार हम अपनी धरती माता के बारे में बात करते हैं । धरती माता की जितनी बात करें कम है क्योंकि हमारे जन्म से लेकर पालन पोषण तक तथा मरने के बाद भी धरती माता ही साथ रहती है । यह हमें खाने के लिए अन्न प्रदान करती है , पीने के लिए पानी ,सांस लेने के लिए हवा तथा इस विज्ञान की दुनिया में जितने भी नए नए उपकरण का निर्माण किया जा रहा है वो भी धरती माता के द्वारा प्रदान की गई संसाधनों से ही बना है । खनिज पदार्थों से लेकर ईंधन तक सब धरती माता की ही देन है । या एक वाक्य में हम कहें तो जल , जंगल , जमीन , जन , जानवर सभी धरती माता की ही देन है । इस जीवन में हमें हर एक मोड़ पर धरती माता ,मां की तरह हमारी देखभाल करती है । इसलिए तो हम इन्हें अपनी माता कहते हैं । जिस तरह सूर्य हमारे पिता हैं , धरती हमारी माता है ।

हैं पौराणिक काल में धरती माता को धरती मां के तरह ही माना जाता था लेकिन आज की दुनिया बदल गई है । जिस तरह चोर लुटेरे नशे में किसी धनवान व्यक्ति को तब तक लूटता है जब तक की वह मर न जाए उसी प्रकार आज इंसान धरती माता को चीरकर उनके शरीर का एक एक हिस्सा को अपने लिए उपयोग करता है । वो आज एक दूसरे से लड़ाई करने के लिए हथियार बना रहे हैं जिसमें यूरेनियम जैसे तत्वों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसका उपयोग दूरी तरफ बिजली तैयार करने में भी किया जा सकता है ।इन हथियारों से ना केवल धरती मां परेशान हो रही बल्कि इंसान आपसेन लड़ाई करके पूरी मनुष्य जाति को बर्बाद कर रही । हमारे देश में नदी को भी मां कहते हैं लेकिन आज नदियों को इस तरह छोड़ दिया जा रहा है जैसे कुछ दुष्ट अपनी मां को वृद्धाश्रम में छोड़ देते है। नदियों में उद्योगों से आया हुआ कचरा और मालवा मिलता है । पहले के समय इंसान कहीं जाता था तो उसे पीने के लिए जलाशय ढूंढना परता था लेकिन आज तो जलाशय में जहर है । नदी को जहां पवित्र स्थानों की तरह मानते थे आज उन्हें कचरा उठाने वाला गाड़ी समझ लिया गया है । जिस जंगल से इस पर्यावरण को ठंडी हवा मिलती है , आदिवासियों। का घर है , जानवरों का आश्रय है , पक्षियों को जान है , आज उन्हीं जंगलों को काटा जा रहा है , उजारा जा रहा है । पहाड़ों पर ऋषि मुनि तपस्या करते थे क्योंकि पहाड़ों को एकांत और पवित्र माना जाता था आज उन्हीं पहाड़ों पर औद्योगिक प्रशिक्षण की शुरुआत की गई है जो न केवल पहाड़ को बल्कि वहां रहने वाले इंसान के आश्रय को भी बरबाद कर रहे । खेतों में अच्छे फसल के लिए इंसेक्टिसाइड्स और पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल किया जा रहा है जो न केवल वहां रहने वाले पशु , पक्षियों, इंसानों तथा खेतों को चोट कर रही है बल्कि पानी में मिलकर जलाशय में रहने वाले मछलियों को भी मारने का काम कर रही है । प्लास्टिक सामानों को ज्यादा ज्यादा इस्तेमाल कर रहे जो न केवल आज के समय में कचरों मलवा बन रहे बल्कि प्रदूषणों का भी महत्वपूर्ण श्रोत है।

ग्लोबल वार्मिंग , ग्रीन हाउस गैस, ये सब हम किताबों में क्यों पढ़ रहे जब हम समझने को तैयार ही नहीं है। ये कुछ और नहीं धरती माता का प्रकोप है । जिस तरह इंसानों ने अपनी सहोलियत के लिए धरती माता को चीर चीरकर काम किया है उसी प्रकार सभी मनुष्य समाज घुट घुट कर मरेगी । बड़े बड़े महलों में , ऐसी कमरों में बैठकर मीटिंग करने से इन सभी समस्या का समाधान नहीं होगा क्योंकि इन समस्याओं का जड़ वही हैं । एक तरफ अमेरिका , रसिया , चीन जैसे बड़े देश UNO के जरिए बड़ी बड़ी मीटिंग्स रखते हैं इस दुनिया को बचाने के लिए दूसरी तरफ इन सभी में सबसे बड़ी भागीदारी भी उनकी है । वो लुटेरे हैं जो धरती माता को तब तक लूटेंगे जब तक की इनकी संसाधन खतम न हो जाए ।

लेकिन आज मैं आप सभी से अनुरोध करता हूं की हम बड़ी मीटिंग्स न करके अपनी तरफ से इन सारी चीजों को खत्म कर दें । मुझे वो सारी सुविधा नहीं चाहिए जो धरती मां को बर्बाद करके दिया जा रहा है । हम ये संकल्प लें की हम दूसरों की तरफ उंगली न उठाकर खुद इस समस्या का समाधान निकालेंगे। हम पेड़ नहीं काटेंगे बल्कि पेड़ लगाएंगे । हम नदी में कूड़ा कचरा नहीं डालेंगे बल्कि उसे साफ करेंगे । हम बिजली बचाएंगे । हम जल बचाएंगे । हम जंगल बचाएंगे । हम आदिवासी परिवार को बचाएंगे । हम जानवरों को बचाएंगे। हम पशु पक्षियों को बचाएंगे । हम इंसान को बचाएंगे । हम धरती मां को बचाएंगे , हम धरती मां को बचाएंगे ।।

आशीष प्रकाश

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