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मेरी माँ कर्मा फ़िल्म समीक्षा

साहू समाज की आराध्य भक्त माता कर्मा पर आधारित फ़िल्म मेरी माँ कर्मा 5 अप्रैल को रिलीज हुई। फ़िल्म के क्रिएटर्स आरुषी बगेश्वर, कौशटेन साहू और मृत्युंजय सिंह को शानदार विसुअल्स के साथ भक्ति फ़िल्म बनाने के लिए बधाई मिलनी चाहिए। इनकी पिछली छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘ले चलहूँ अपन दुवारी’ बढ़िया फ़िल्म थी। फ़िल्म की घोषणा करते हुए मेकर्स ने बताया था कि यह छत्तीसगढ़ी में भी रिलीज होगी लेकिन ऐसा हुआ नही। इसी कारण फ़िल्म में कजरेरी नैना और गुलाबी कली गाना को नही शामिल किया गया।

डेढ़ घंटे की फ़िल्म 

फ़िल्म की शुरुआत एक भक्ति गीत के साथ होती है और पहला सीन देखकर ही समझ आ गया कि फ़िल्म बेहद स्लो होने वाली है। सभी कलाकारों का काम ठीक ठाक लगता है। सिनेमाटोग्राफी कमाल की है, आर्ट टीम ने भी बढ़िया काम किया है। ड्रेस डिज़ाइन पर ध्यान दिया गया है तो वहीं कई जगहों पर ज़ोरदार एडिटिंग भी है। लगभग डेढ़ घंटे की इस फ़िल्म को दो सेट पर फिल्माया गया है जिसमें आउटडोर लोकेशन बेहद कम हैं।

तालाब में तेल दिखाना कितना मुश्किल?

कर्मा माता की कहानी में तेल और तालाब का ज़िक्र आता है। इस फ़िल्म में भी उस तालाब का ज़िक्र होता है लेकिन उसे नही दिखाया जाता। जिस समाज की वे आराध्य हैं, उस समाज का कहीं नाम तक उपयोग नही हुआ है। कहानी के अनुसार अभिनेता हिमांशु यादव और उनकी गर्भवती पत्नी अच्छे ईलाज के लिए शहर जाते हैं और फ़्रॉड लुटेरे डॉक्टर के चंगुल में फंस कर बच्चे का महँगा ईलाज करवाते हैं। हिमांशु का किरदार कृष्णा नही पता कौन सा जुआँ सट्टा लगाता है कि दिन भर घर में घरघुसरा बनकर रहता है लेकिन जेब में पांच हज़ार पांच सौ रुपया यूँ ही रखा रहता है। ये बताया तक नही गया है कि वह क्या काम करता है।

फ़िल्म में नर्स का मजबूत किरदार

मेरे साथ फ़िल्म देख रहे लोग इसे टीवी सीरियल कह रहे थे। कृष्णा और माधवी का बच्चा हो जाने के बाद 3 महीने तक वे रायपुर में ही फ्लैट लेकर रहते हैं। इन तीन महीनों में ओंकारदास और अल्का अमीन अपने पोते को देखने रायपुर नही आते। अरे भई! रायपुर आने के लिए कोई वीसा बनवाना पड़ता है क्या? सानंद वर्मा ने डॉक्टर की भूमिका में निराश किया है, जबकि उन्हीं का किरदार सबसे मज़ेदार हो सकता था। उनके पास खेलने के लिए बहुत स्कोप था। नर्स डायना का किरदार भी अहम है और इसे प्ले करने वाली एक्ट्रेस सबसे निखर कर सामने आई है।

माता कर्मा की खिचड़ी का चित्रण

कुकीज सवैन (Cookies Swain) ने माता कर्मा की भूमिका निभाई है। फ़िल्म में माता की खिचड़ी और कृष्ण की भक्ति को दर्शाया गया है। फ़िल्म के क्रिएटर्स को माता कर्मा की कहानी पर फ़िल्म बनानी तो थी लेकिन वे पूरी फ़िल्म इसी पर नही बना सकते थे। तब उन्होंने एक दूसरी कहानी बनाई जिसमें एक सास अपनी ओड़िया बहु को माता कर्मा की कहानी बताती है। बच्चे की तबीयत बिगड़ने पर उसकी माँ देखती है कि माता कर्मा उसके बच्चे को ठीक कर रही है तब वह माता कर्मा पर विश्वास करना शुरू करती है।

फ़िल्म का लेखन

लेकिन इस कहानी में भी कुछ खटक रहा है। अगर आप अस्वस्थ्य बच्चे पर माता कर्मा की महिमा दिखाना चाह रहे थे तो याद हो कि बच्चे की तबीयत उस लुटेरे डॉक्टर के कारण ख़राब हुई थी। ऐसे में बच्चे की तबीयत तो सहीं डॉक्टर के पास जाने से यूँ ही ठीक हो जाएगी। अगर बच्चा लुटेरे डॉक्टर की वजह से अस्वस्थ्य ना हुआ हो तो भी, माता की महिमा दिखाने के लिए और भी अच्छे लॉजिक उपयोग में लाये जा सकते थे। ले चलहूँ अपन दुवारी देखने के बाद इस टीम से बहुत उम्मीदें थी लेकिन इन्हें फिर भी बधाई मिलनी चाहिए क्योंकि इस फ़िल्म का लेखन भी अन्य छत्तीसगढ़ी फिल्मों की तरह है।

फ़िल्म में कई बारीकीयां हैं जो पसंद आई। जैसे महिलाओं को ‘बड़ी’ बनाते हुए और ‘ढूड़ही लड्डू’ की समग्रियाँ तैयार करते हुए दिखाना स्क्रीन पर नया था। इतने बड़े स्केल पर माता कर्मा के ऊपर फ़िल्म पहली बार बनी है। निर्माता, क्रिएटर्स और सह-निर्माताओं के इस साहस को समाज के लोगों का समर्थन तो मिलना ही चाहिए। 

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