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लड़कियों के आंखों में सपने हैं (कविता)

लड़कियों के आंखों में सपने हैं,

जिसने तोड़े वे भी अपने हैं,

उमंग, चाहत और थी आस,

मगर हिम्मत न थी उनके पास,

एक उम्मीद जरूर की थी,

छीनी समाज ने जरूरत को ही,

तोड़े उनके हौसले को ही,

एक उंगली उठी उनकी ओर,

तू याद रख उस उंगली को ही,

जुटा हिम्मत खुद से खुद पर,

न कोई सहारा न कोई जरूरत,

उठ खड़ी हो अपने पैरो पे ही,

जो उठी उंगली थी तेरी ओर,

आज वही मुठ्ठी बन जाएगा,

वही समाज फिर आएगा,

मुट्ठी बंद जब खुल जाएगा,

फिर पाएगी तू सम्मान,

होगी तू अब सबका अभिमान,

जो लोग तुझे देख गुस्साते थे,

वही अब देख तुझे मुस्कुराएगा,

तुझे जरूरत है बस हिम्मत की,

उठ खड़े हो भिड़ जाने की,

लड़ने की और लड़ जाने की,

हिम्मत उन सभी लड़कियों की,

तोड़ बेड़िया निकल बाहर आने की,

तू चाहत रख, तू हिम्मत रख,

बस अपनी आंखों में तू सपने रख

यह कविता मुजफ्फरपुर, बिहार से प्रियंका साहू ने चरखा फीचर के लिए लिखा है

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