“बोधगम्य”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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भावनाओं को
उकेरना
हृदय के उद्गारों
को समेटना
व्यथाओं को
उजागर करना
प्रसन्नता को बिखेरना
किसी भाषा के बंधनों की
परिसीमाओं में
नहीं सिमट सकती है
मुखाकृतियों ,भंगिमाओं ,
पलकों और नयनों के
गतिविधिओं से
चाल ,ढाल
और व्यवहार से
लेखनी स्वयं
निकल सकती है !
सही बातें ,
सकारात्मक
अभिव्यक्ति
उचित संदेश
सदैव जनमानस के
प्राण होते हैं
प्रिय लेखनी ,
स्पष्ट कथा ,सुंदर चरित्र
साधारण “बोधगम्य” से
अलंकृत होकर ही
मानस के रामायण होते हैं !!
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस0 पी0 कॉलेज रोड
दुमका ,
झारखंड
03.03.2024