नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अजेय बीजेपी
यहां मोदी से पहले बीजेपी और उनकी लीडरशिप वाली बीजेपी में अंतर बहाली के प्रयास के साथ ही वे भी घूमे हुए हैं, जहां पीएम मोदी से पहले बीजेपी और उनकी लीडरशिप वाली बीजेपी को ना बस उत्तर से दक्षिण तक राष्ट्रभाई जनसमर्थन प्राप्त हुआ, बल्कि दो-दो बार केंद्र में सरकार बनाने का मौका मिला और अब तीसरी बार जब देश में चुनाव होने जा रहा है, तब भी मोदीनीत बीजेपी का कोई पीछा नहीं कर पा रहा है. शुरुआत एक ऐतिहासिक तथ्य से होती है ताकि तुलना करना आसान हो सके। जिस तरह के भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में “गांधी से पूर्व की कांग्रेस” और “गांधी के बाद की कांग्रेस” में अंतर सर्वविदित है, उसी तरह के कुछ अंतर “मोदी से पूर्व की भाजपा” और “मोदी के बाद की भाजपा” में भी देखें जा सकते हैं. . जिस तरह से गांधी से पूर्व कांग्रेस में एक क्रांतिकारी जातिवादी पार्टी का उदय हुआ था, वहीं गांधी के संदेश के बाद पूरे देश में कांग्रेस जन-भावना का उदय हुआ, जिसका उद्देश्य भारत माता की मुक्ति के लिए संघर्ष करना है, अनेकोनेक शक्तियों का एक ध्वज के साथ हैं. अनमोलं असंबद्ध और भारत माता को अंग्रेजी बेगारी से मुक्ति मिली। इसी तरह आजाद भारत में भाजपा की राजनीतिक यात्रा का भी आकलन किया जा सकता है। हालाँकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि मोदी से पूर्व की भाजपा किसी भी जाति या वर्ग की विरोधी थी, वह तब भी बैक वर्ग के लिए मंडल आयोग लागू करने के पक्ष में थे, लेकिन पार्टी में शामिल नहीं थे। सिंह सरकार को उनका समर्थन था और इतना ही नहीं 1989 के आम चुनाव में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू हो जैसी घोषणा की गई थी कि जनता पार्टी के बाद भाजपा ही कर रही थी। इसके साथ ही नरेंद्र मोदी से लेकर कल्याण सिंह, बाबू लाल भगवान, उमा भारती जैसे शरद वर्ग के लोगों को राज्यों में सीएम बनाया गया और यहां तक दलित समाज से आने वाले बूथ को भी सीएम बनाने वाली बीजेपी के योगदान की घोषणा नहीं की जा सकी हो सकता है। देश के विशाल जाति समूह में भाजपा पहले भी ईसाइयों के साथ लेकर ही चलती थी, लेकिन इसके बावजूद भी भाजपा ने कभी व्यापक समर्थन नहीं दिया, देश के विशाल जाति समूह में भाजपा के प्रति विश्वास ही रहा, एक बड़ी आबादी भाजपा को अलग कर दी गई अलग से रखी गई से तैयारी रही जिसका नतीजा यह रहा कि भाजपा किसी भी तरह से राज्य में सरकार बनाने में सफल रही लेकिन कभी-कभी केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं पाई।
अब आइए जानते हैं कि 2013 में मोदी के नेतृत्व वाली बैठक के बाद क्या हुआ था? या मोदी ने ऐसा क्या किया? बीजेपी को गठबंधन में शामिल नहीं किया गया बल्कि केंद्र में दो बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का मौका मिला और अब तीसरी बार भी मोदी का पीछा नहीं किया जा रहा है। इसके पीछे प्रमुख कारण या यूं कहें कि सक्रिय भाजपा शहरीकरण, फ्लोरिडा के साथ-साथ पुजारियों, पिछड़ों, अति पिछड़ों का व्यापक जनसमर्थन प्राप्त हुआ, जिसे मोदी ने अजेय व्लादिका बनाया। आगे इन्ही प्रमुख प्रौद्योगिकियों का सूक्ष्मता से विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है। जिसका पहला कारण है “हिंदुत्व का सबल्टर्निकरण”। मोदी के नेतृत्व में गांव-गांव तक दलित पिछड़ों, अतिपिछड़ों, महिलाओं और अन्य मध्यम वर्ग तथा गरीब तबकों में हिंदू देवी-देवताओं की स्थापना पूजा पाठ को शामिल किया गया, जिसमें युवाओं के नेतृत्व में अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े लोगों को शामिल किया गया। गया। वर्कशॉप वर्ग धार्मिक कार्य से दूरी ब्लॉक या सहयोगी के रूप में दिखाई दिया। धार्मिक कार्यकलापों में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़े सदस्य एवं धार्मिक कार्यकर्ताओं का प्रत्यक्ष वा समर्थन प्राप्त हुआ। दूसरी वजह मोदी की “रिकॉग्निशन, रिप्रजेंटेशन और रिडिस्ट्रीव्यूशन” की स्थिरता पर विचार हो सकता है। वेल्थ द्वारा उनका पुनर्निमाण किया गया। तीसरा कारण “पिछड़ा-अतिपिछड़ा गौरव” है। मोदी के नेतृत्व में उन्होंने पिछड़ी अतिपिछड़ी सेना में गौरव का भाव भरा, कि उनके बीच के आदमी देश में शासन के तीन शीर्ष पद पर पदसीन हो रहे हैं। चौथा कारण “संस्थाओं का व्यापक लोकतंत्र” है। मोदी ने “सबका साथ-सबका विकास-सबका प्रयास” के सूत्र के तहत छोटे-छोटे युवाओं का साथ दिया, परिवारवाद और जातिवाद से हटकर कम संख्या में डाक टिकट दिए। स्वयं एकमुश्त प्रधानमंत्री के बावजूद भी पहली बार सत्याईस के एकल मंत्री बने, तृतीय होने वाले वर्ग आयोग को शामिल किया गया, नीट के अखिल भारतीय कोट में असंतोष लागू किया गया, नवोदय एवं सैनिकों के सैनिकों का गठबंधन बनाया गया, नीट के अखिल भारतीय कोट में संयुक्त राष्ट्र संघ की नियुक्ति की गई। की घोषणा की, प्रोफेसर- एसोसिएट प्रोफेसर-मोकेलिक प्रोफेसर ने भी इन कलाकारों से बड़ी संख्या में बनाए गए कार्टून को अब तक बनाया-कांग्रेसी बुद्धिजीविज एन फॉक्स द्वारा तैयार किया गया था, अतिपिछड़ा कलाकारों को रोहिणी कमीशन के लिए तैयार किया गया था, जिससे मोदी को बनाया गया था. एक मजबूत आधार मिला। पाँचवाँ कारण “राष्ट्रवाद का विस्तार” है। मोदी से पूर्व राष्ट्रवाद के विचार और शहर में भी एक कथित कथित बुद्धिजीवी वर्ग तक ही सीमित था मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रवाद की भावना बनी हुई है। छठावाँ कारण “ग्रेज़ुअल धार्मिक सुधार” है। जहां भाजपा के कट्टरधार्मिक कट्टरपंथियों और दकियानूसी पर आरोप लगते रहे हैं, वहीं सारा सामान दल खुद राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर कट्टरधार्मिक कट्टरपंथियों के समर्थन में बने रहे और मोदी ने धार्मिक सुधार का रास्ता जुबां और भारतीय राज्य के फैसले को बताया। अस्वीकार कर दिया। डेमोसेट के साथ बने रहें.वैसे ही नरेंद्र मोदी हमेशा अपने धार्मिक सुधार के पक्ष में वेंड ढोंग-पाखंड-अडंबर का भी कई बार सहयोगी बने रहते हैं और उन्हें धार्मिक मामलों में दुनिया भर के लोग भी समर्थन मिलाते रहते हैं। अभी हाल में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री मोदी और चारे के प्रचारक प्रसाद यादव ने भी अपनी मां के देहांत के बाद सर मुंडन न खोयानूसी प्रधान को लेकर सवाल उठाया, मोदी ने वापसी कर इस पर कोई स्वच्छता नहीं देना समझाया जो नरेंद्र मोदी के धार्मिक मामलों में प्रगतिशीलता का परिचय है। इसके साथ ही कम उम्र के धार्मिक लोगों के पैर आदि न छुकर और धार्मिक अनुष्ठानों में पुरोहितों से ऊपर के बेदी पर दिए गए सुझावों में मोदी के संवैधानिक धार्मिक सुधार और धर्म और राज्य के बीच राज्य के सर्वोच्चता के पक्ष में निवास के संकल्प को शामिल किया गया है। गया है. चाहत है. अंतिम और सातवां कारण “मोदी का चरित्र और दैवीय चरित्र” है। मोदी के परिवार में न ही दैवीय सद्गुणों का दर्शन होता है और न ही मोदी के बाकी नेताओं के लिए अलग-अलग तरह की अद्भुत और अलौकिक पोशाकें धारण की जाती हैं और उनमें से दैवीय सद्गुणों का दर्शन होता है, जिनका भारतीय जनमानस व्यापक रूप से दिखता है। है. इन श्लोकों में मोदी को भाजपा का गांधी माना जा रहा है, जिनके नेतृत्व में पूरे देश में अमित छाप छोड़ रहे हैं और लगातार अजय बने हुए हैं।
कुमार अमित यादव
नेहरू नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
9415608772