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कॉपीराइट के कार्यों की श्रेणियां और विभाग की अनभिज्ञता

* वी पी श्रीवास्तव एवं ** गरिमा अजेय

बौद्धिक संपदा (आईपी) मानव बुद्धि के किसी भी बुनियादी निर्माण जैसे कलात्मक, साहित्यिक, तकनीकी या वैज्ञानिक निर्माण से संबंधित है। बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) अविष्कारक या निर्माता को उनके आविष्कार या निर्माण उत्पाद की सुरक्षा के लिए दिए गए कानूनी अधिकारों को संदर्भित करता है। आईपी अधिकारों में व्यापार रहस्य, उपयोगिता मॉडल, पेटेंट, ट्रेडमार्क, भौगोलिक संकेत, औद्योगिक डिजाइन, एकीकृत सर्किट के लेआउट डिजाइन, कॉपीराइट और संबंधित अधिकार और पौधों की नई किस्में शामिल हैं। विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) बौद्धिक संपदा अधिकारों को “बौद्धिक रचनाओं ” के रूप में, अविष्कार ; वाणिज्य में प्रयुक्त साहित्यिक और कलात्मक कार्य और प्रतीक, नाम और चित्र” के रूप में परिभाषित करता है।

यहाँ यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत का बौद्धिक सम्पदा कार्यालय देश के विभिन्न भागों में अपने कार्यालय के माध्यम से ट्रेडमार्क, पेटेंट, डिज़ाइन, भौगोलिक संकेत, एकीकृत सर्किट के लेआउट डिजाइन, कॉपीराइट और संबंधित अधिकार का संज्ञान लेता है और सुरक्षा प्रदान करता है। पूर्व में कॉपीराइट और एकीकृत सर्किट के लेआउट डिजाइन बौद्धिक सम्पदा कार्यालय का हिस्सा नहीं था लेकिन २०१६ में भारत सरकार के बिज़नेस एलोकेशन में परिवर्तन के परिणामस्वरूप ये विषय उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय के उद्योग संवर्धन एवं आतंरिक व्यापार विभाग (DPIIT) में समाहित हुए।

उद्योग संवर्धन एवं आतंरिक व्यापार विभाग (DPIIT), जिसके अधीन बौद्धिक सम्पदा कार्यालय है, अपने साथ कॉपीराइट विभाग के अधिकारियों को साथ लायी परन्तु दुर्भाग्यवश कॉपीराइट में कार्यरत अधिकारियों के दो -चार सालों में सेवा निर्वृति होने के बाद इस विभाग में एक शून्य ( vacume ) सा बन गया। अब ट्रेडमार्क और पेटेंट के अधिकारी अपनी ट्रेडमार्क की चिर परिचित स्टाइल में कॉपीराइट और एकीकृत सर्किट के लेआउट डिजाइन जैसे विषयों को डील कर रहे हैं। इनको न तो वस्तुतः विषय से सम्बंधित कोई प्रोफेशनल ट्रेनिंग दी गयी है और न ही समय रहते कॉपीराइट के पूर्व अधिकारियों से इनका इंटरेक्शन हुआ और नॉलेज ट्रांसफर भी हुआ। वर्तमान में इनकी कार्यशैली ऐसी है जैसे ऑपरेशन थिएटर में किसी नए डॉक्टर ट्रेनी को ऑपरेशन का पूर्ण सञ्चालन उसके हाथों में सौंप दिया जाये ।

यहाँ जिस तरह डॉक्टर और मरीज़ दोनों के हाथ-पाँव फूले हैं उसी तरह इस समय हालात कॉपीराइट विभाग में अधिकारियों और आवेदनकर्ता की है। कब किस कारण से कॉपीराइट का आवेदन पेंडिंग हो जायेगा या ऑब्जेक्शन सहित निरस्त हो जायेगा कुछ नहीं कहा जा सकता। कॉपीराइट के आवेदन पर अनावश्यक आपत्तियों की तो भरमार है ही । कमोबेश यही हालत एकीकृत सर्किट के लेआउट डिजाइन की है जहाँ ये फैसला करना कठिन है कि कॉपीराइट के डिज़ाइन रुपी कलात्मक कार्य से यह किस रूप में अलग है ।

इस लेख के माध्यम से हम कॉपीराइट विभाग की एक ऐसी स्थिति पर आप सबका ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं जो न केवल कॉपीराइट अधिनियम १९५७ बल्कि कॉपीराइट नियमावली २०१३ के विपरीत है। वर्तमान में कॉपीराइट विभाग में साहित्यिक और नाटकीय कृतियों को एक ही वर्ग या श्रेणी में रखकर कॉपीराइट प्रदान किया जाता है जबकि ये दोनों श्रेणियां कॉपीराइट अधिनियम १९५७ के अंतर्गत अलग अलग हैं। यदि कॉपीराइट अधिनियम १९५७ की धारा १३ का हम अवलोकन करें तो यह मौलिक साहित्यिक, नाटकीय, संगीत और कलात्मक कृतियों की श्रेणी के अतिरिक्त सिनेमेटोग्राफ फिल्म और साउंड रिकॉर्डिंग की श्रेणी का वर्णन करती है। कॉपीराइट अधिनियम की धारा २ (एच) आगे नाटकीय कार्य को परिभाषित करते हुए यह कहती है कि “नाटकीय कार्य” में सुपठन के लिए रचना का कोई अंश, कोरियोग्राफिक कार्य या मूक प्रदर्शन द्वारा मनोरंजन भी शामिल है जिसका दृश्य विन्यास या अभिनय का रूप लिखित रूप में या अन्यथा शामिल है, लेकिन इसमें सिनेमैटोग्राफ फिल्म शामिल नहीं है। ” आगे कॉपीराइट अधिनियम की धारा २ (ओ) ” सहित्यिक ” शब्द को पारिभाषित करते हुए कहती है कि ” सहित्यिक कृति ” के अंतर्गत कंप्यूटर प्रोग्राम, सारणियाँ और संकलन हैं जिसके अंतर्गत कंप्यूटर डेटाबेस सम्मिलित हैं।

यदि उपरोक्त स्थिति का अवलोकन करें तो हम यह कह सकते हैं कि वे नाटकीय कृति जिसके अंतर्गत नाटक, स्क्रीनप्ले, कोरेओग्राफिक कार्य आदि आते हैं, वाजिब श्रेणी में रजिस्टर नहीं हो पाते। वाजिब श्रेणी में रजिस्टर नहीं हो पाने के कारण न तो उनके बारे में कोई सोचता, न ही कोई रिकॉर्ड मिल पाता। फिर कैसे स्क्रीनप्ले को नाटकीय कार्य के लिए कॉपीराइट की सोसाइटी के रूप में मान्यता दी जाएगी जिसकी कोई श्रेणी कॉपीराइट विभाग मानता ही नहीं। अतः कॉपीराइट विभाग को कॉपीराइट अधिनियम ,१९५७ में मौजूद इस श्रेणी को लागू करे और जैसे साहित्यिक श्रेणी के लिए (L)दर्शाती है वैसे ही नाटकीय कृतियों के लिए (D) के रूप में श्रेणी दर्शाये जो कॉपीराइट अधिनियम, १९५७ की मूल भावना है।

इसी प्रकार हमें विदेशी कार्यों के बारे में जो भारत के कॉपीराइट विभाग में रजिस्टर हो रहे हैं, उनके बारे में भी ये कहना है कि विदेशी कार्यों की कोई फ्लैगशिप न होने के कारण ये जानकारी कॉपीराइट विभाग नहीं उपलब्ध करा पाता कि अब तक कितने विदेशी कार्य भारत में रजिस्टर हो चुके हैं ? तकरीबन हर साल अन्तर्राष्ट्रीय संगठन इस बारे में रिकॉर्ड मांगती है पर कॉपीराइट विभाग केवल इस बात को स्वीकार करता तो होगा कि विदेशी कार्य यहाँ कॉपीराइट होते हैं पर रिकॉर्ड पर वे मौन साध लेते होंगे। हम बड़े गर्व के साथ ये तो कहते हैं कि हमारा कॉपीराइट अधिनियम ट्रिप्स प्लस कंप्लायंस अधिनियम है पर किसी व्यक्ति या संगठन के द्वारा कॉपीराइट के विशिष्ठ रिकार्ड्स की जानकारी मांगने पर सभी चुप्पी साध लेते हैं और फिर उलटे – सीधे बयान देते फिरते हैं।

अब हम कॉपीराइट नियमावली २०१३ सहित उसके संशोधन पर भी चर्चा कर लें। भारत में, कॉपीराइट व्यवस्था कॉपीराइट अधिनियम, 1957 द्वारा शासित होती है और कॉपीराइट नियम, 2013 द्वारा विनियमित होती है। मानव संसाधन और विकास मंत्रालय ने 14 मार्च 2013 को कॉपीराइट नियम, 2013 को अधिसूचित किया था जब कॉपीराइट का विषय उसके पास था । 2019 में एक मसौदा संशोधन के लिए सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय के उद्योग संवर्धन एवं आतंरिक व्यापार विभाग (DPIIT) द्वारा जारी किया गया और 30 मार्च 2021 को, भारत सरकार ने गजट अधिसूचना के माध्यम से कॉपीराइट (संशोधन) नियम, 2021 को अधिसूचित किया । इस संशोधन से पहले, कॉपीराइट नियम, 2013 को आखिरी बार 2016 में संशोधित किया गया था। कॉपीराइट नियमावली २०१३ की धारा ६९ में कहा गया है कि कॉपीराइट का रजिस्टर भौतिक या इलेक्ट्रॉनिक रूप में ६ भागों में रखा जायेगा :

पार्ट १ : साहित्यिक कृति जो कंप्यूटर प्रोग्राम्स, सारणियों, और संकलनों से भिन्न हैं जिसमें कंप्यूटर प्रोग्राम्स सम्मिलित हैं और नाटकीय कृति ।

पार्ट २ : संगीतात्मक कृति

पार्ट ३ : कलात्मक कृति

पार्ट ४ : सिनेमेटोग्राफ फिल्म्स

पार्ट ५ : साउंड रिकॉर्डिंग्स

पार्ट ६ : कंप्यूटर प्रोग्राम्स, कंप्यूटर डेटाबेस जिसके अंतर्गत सारणी और संकलन आते हैं।

कोई भी व्यक्ति अगर ध्यान से पढ़े तो यह निष्कर्ष निकालने में उसे जरा भी परेशानी नहीं होगी कि कॉपीराइट रूल्स, २०१३ [ २०१६ और २०२१ में संशोधित ] के उपरोक्त ६ भागों में नाटकीय कृति को साहित्यिक में रखकर भारी भूल की गयी है और कॉपीराइट अधिनियम, १९५७ की अनुशंसा की अवहेलना की गयी है।

आगे,कॉपीराइट नियमावली २०१३ की धारा ७२ में कहा गया है कॉपीराइट कार्यालय में निम्नलिखित इंडेक्स भौतिक या इलेक्ट्रॉनिक दोनों रूप में कॉपीराइट रजिस्टर के प्रत्येक भाग के लिए रखे जायेंगे :

(क) साधारण लेखक इंडेक्स

(ख) साधारण शीर्षक इंडेक्स

(ग) प्रत्येक भाषा में कार्यों का एक लेखक इंडेक्स, और

(घ) प्रत्येक भाषा में कार्यों का एक शीर्षक इंडेक्स

इसके साथ कॉपीराइट नियमावली की धारा ७३ और ७४ भी उल्लेखनीय है जिसमें कॉपीराइट रजिस्टर और इंडेक्स का निरीक्षण करने और कॉपीराइट रजिस्टर और इंडेक्स की प्रतियों को विनिर्दिष्ट फीस जमा करके प्राप्त करने का हक़दार होगा । ये सारी व्यवस्थाएं कॉपीराइट अधिनियम, १९५७ की धारा ४६ और ४७ को ध्यान में रखकर बनायीं गयी हैं जिसमें क्रमशः कॉपीराइट ऑफिस में इंडेक्स रखने और कॉपीराइट रजिस्टर और इंडेक्स को निरीक्षण के लिए उपलब्ध रखने और फीस देने के साथ उसकी कॉपी प्राप्त करने के बारे में वर्णित है। पर कॉपीराइट नियमावली, २०१३ [ २०१६ और २०२१ में संशोधित ] के अनुसूची ॥ में स्पष्ट रूप से कोई फीस का प्रावधान नहीं है। अगर देखा जाये तो केवल किसी अन्य लोक दस्तावेज़, जो रजिस्ट्रार कॉपीराइट की अभिरक्षा में हैं, उसकी प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने के लिए रुपया ५०० प्रति कॉपी का प्रावधान है। कॉपीराइट रजिस्टर या इंडेक्स के निरीक्षण के लिए कोई प्रावधान नहीं है कि कितने साल के कॉपीराइट रजिस्टर के निरीक्षण के लिए क्या फीस निर्धारित है।

फिर आगे देखिये, कॉपीराइट प्राप्त करने के पूर्व कॉपीराइट के लिए आवेदन करना होता है। कॉपीराइट के आवेदन (फॉर्म १४) के कॉलम संख्या ४ में कार्य की प्रकृति और विवरण पूछा जाता है जिसमें विवरण को ऑनलाइन में डिसएबल कर दिया गया है। यदि यहाँ विवरण लिखे जाने की छूट मिलती तो आवेदनकर्ता विवरण में कार्य की प्रकृति के बारे में लिख सकता था कि वो कार्य उपन्यास है या कविता या पम्फ्लेट या अनुवाद या अन्य कुछ। इस विवरण के अभाव में कॉपीराइट विभाग के पास इस बात का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है कि कितने उपन्यास, कवितायेँ, पम्फ्लेट यात्रा संस्मरण, जीवनी इत्यादि कॉपीराइट अलग -अलग रजिस्टर हुए। साहित्यिक का जब ये हाल है तो फिर नाटकीय कृतियों का विवरण कैसे प्राप्त हो पायेगा जहाँ सभी कुछ साहित्यिक की श्रेणी में रखा गया है। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर को, जो साहित्यिक की श्रेणी में आता है, उसकी एक अलग श्रेणी कॉपीराइट विभाग ने बनाई है परन्तु नाटकीय कृतियों के लिए ऐसी कोई श्रेणी नहीं बनाई जो उनकी अनभिज्ञता को दर्शाता है।

हमारा भारत सरकार को सुझाव है कि न केवल वो कॉपीराइट की श्रेणियों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बढ़ाये जैसे एप्प्स की श्रेणी, मल्टी मीडिया की श्रेणी और कलात्मक कृतियों का संकलन की श्रेणी इत्यादि बल्कि कॉपीराइट अधिनियम, १९५७ में पहले से मौजूद नाटकीय कृति की श्रेणी को लागू करे और व्यवहार में लाये और जैसे साहित्यिक श्रेणी के लिए (L) दर्शाती है वैसे ही नाटकीय कृतियों के लिए (D) के रूप में श्रेणी दर्शाये जो कॉपीराइट अधिनियम, १९५७ की मूल भावना है। साथ ही अपनी अनभिज्ञता को भी दूर करे। इसके अतिरिक्त, कॉपीराइट नियमावली, २०१३ में कॉपीराइट रजिस्टर और इंडेक्स के निरीक्षण के फीस के लिए जो अस्पष्टता है उसे दूर करते हुए अनुसूची ॥ में उचित व्यवस्था करे।

* पूर्व कॉपीराइट सूचना अधिकारी एवं उप रजिस्ट्रार (कॉपीराइट), कॉपीराइट विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली- ११०००१

** रिसर्च स्कॉलर, मैनेजमेंट विभाग, निम्स यूनिवर्सिटी, जयपुर (राजस्थान )

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