एक तरह हिंदी सिनेमा तेजी से उभर रहा हैं वही दूसरी तरफ हमें बॉलीवुड के कुछ सितारें दिख रहे है जो हॉलीवुड में अपनी जगह बनाते हुए दिखे जा हैं । शरद केलकर का नाता हालीवुड से तब जुड़ा , जब उन्होंने वहां की कुछ फिल्मों की हिंदी में डबिंग की थी जैसे कि गार्डियन ऑफ़ द ग्लैक्सी, कैप्शन मर्वल, फूरियस 7 आदि. हॉलीवुड में दो चार जगह फिल्मों के आडिशन भी दिए है लेकिन उन्हें सिलेक्ट नहीं किया गया है , लेकिन वह इससे दुखी होने के बजाएं कुछ तर्क दिए गए जैसे की अगर किसी ने अच्छा किया हो उसे लेने के सिर्फ 75 प्रतिशत होते और आउटसाइडर होने की भी वजह मानी जा सकती है ।
बॉलीवुड के जो बढ़े – बढ़े सितारें है जैसे की प्रियंका चोपड़ा , दीपिका पादुकोण , आलिया भट्ट इरफान खान आदि इन सबकी अच्छी खासी जान – पहचान है और छोटे अभिनेताओं के लिए मुश्किल हो जाता है अपनी जगह बना पाना ,आपको बता दें की कुछ लोगों के करीबि है जिससे मेकर्स हर बार उनको ही मौका देते है । शरद केलकर इससे निराश होने के बजाए कहते हैं की मुझे वहां से सीखने को मिलता है जब भी कोई ऑडिशन देने जाता हूं निराश होकर नहीं कुछ सिख के आता हूं और मेरी अंग्रेजी भी सही हो जाती है आपको बता दें शरद को किसी ने कहा उनकी आवाज़ बहुत ही खूबसूरत है लेकिन ऐसे कई बार देखा गया की कलाकार को अपनी आवाज से प्यार हो जाता है फिर वह अपनी परफॉर्मेंस पर ध्यान देने छोड़ देते है और वह ओवरकानफिडनट हो जाते है ।
ये बॉलीवुड में ही नहीं हिंदी सिनेमा में भी देखा जा सकता है । आम जनता की तारीफ को अपनाएं खुद की न करें जिससे आप और बेहतर कर सकें खुद की तारीफ करके आप विकास की ओर आगे नहीं बढ़ पाएंगे वही रुक जाएंगे और फिर ये नहीं पता चल पाएगा की आप और बेहतर भी कर सकते है । शरद केलकर अपनी हर एक फिल्म को देखते है फिर उसकी बुराई करते है हर एक सीन को गहराई से देखते है समझते और उन गलतियों को अपनी दूसरी फिल्मों नहीं दौराते है और ये ही एकमात्र नुस्खा होता है हर एक कलाकार के लिए इंडस्ट्री से जुड़े रहना जिससे काम मिलता रहें