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बदलते बदलते (कविता)

दिन से रात बदलते देर नही लगती,

चांद से सूरज बदलते देर नही लगती,

कब घने बादलो से सूरज की किरणें आ जाए,

जिंदगी में बदलते बदलते क्या नही बदला,

लोग बदले, समाज बदला, जज्बात बदले,

जो अपने थे वो पराए लगे, पराए तो पराए रहे,

पर अपने भी रंग बदलने लगे,

हमें पिछे रखा, खुद आगे बढ़ते गए,

बदलते लोग, बदलते जज़्बात, सब बदलते चले गए।।

यह कविता उत्तराखंड के गरुड़ से दिशा सखी हर्षिता दानू ने चरखा फीचर के लिए लिखा है

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