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नन्ही आंखों से संसार देखा (कविता)

नन्ही आंखों से संसार देखा,

दूसरों की खुशी में खुद को देखा

रसोई में बनी वो पहली रोटी

अपनी नहीं भाई की थाली में देखा,

सरकारी स्कूल में मेरी पढ़ाई,

खर्चो में बचत होते देखा,

प्राइवेट स्कूल में भाई की पढ़ाई,

कम खर्च में भी होते देखा,

शादी मेरी हो क्या गई,

पति से अपनी बात न कहूं,

बच्चे न हुए तो पति ज़िम्मेदार नही,

फिर मैं ही क्यों जवाबदेह बनूं?

कम उम्र में सुहाग जो छिन गया,

जीवन भर का कलंक मुझे दे गया,

रंग बिरंगी मेरी दुनिया अब,

तानों का पिटारा बन गया,

रंगों का वो होली का त्यौहार,

मेरे लिए एलर्जी की बहाना बन गया।।

यह कविता उत्तराखंड के गरुड़ से दिशा सखी पूजा गोस्वामी ने चरखा फीचर के लिए लिखा है

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