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“ जुबान संभाल के “

“ जुबान संभाल के “

डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”

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नब्बे के दशक में सिनेमा और टीवी को बोलवाला था ! नये यंत्रों से अधिकाशतः लोग अनभिज्ञ थे ! इसकी चर्चाएं भी नहीं थी ! उनदिनों टीवी में एक हास्य सीरीअल “ जुबान संभाल के “ आता था ! हास्य में भी कई संदेश छुपे रहते थे ! विभिन्य धर्मों ,विभिन्य भाषा ,देश -परदेश और विभिन्य वेष -भूषा के पात्रों का समावेश था ! फिर भी उनका उद्देश था हिन्दी भाषा को सीखना और आपस में एकता बना कर रखना ! अद्भुत प्रस्तुति थी !

आज कहने को हमने विशाल दोस्तों की कौरव सेना का निर्माण कर दिया पर हम इसके अंग नहीं बन सके ! आपसी तालमेल के अभाव ,सहयोग से विरक्ति और विचारों का ना मिलना हमें पराजय की ओर ले जाती है !

मित्रता के बंधन में जुड़के वर्षों तक अनजान बने रहते हैं ! कोई आदर -सत्कार से दो प्यार के बोल बोलता है तो हम उसे नजरअंदाज कर देते हैं ! हम श्रेष्ट हैं ,हम सम्मानित व्यक्ति हैं ,हम विद्वान हैं ,हमारा उच्च कुल है ,हम पंडित हैं ,हमारे बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता है तो फिर हम उनकी टिप्पणियों ,समालोचना और सकारात्मक अभिव्यक्ति का जवाब क्यों देंगे ?

जवाब हम देंगे नहीं ,आपको कुछ लिखेंगे नहीं और हरेक गतिविधियों को नजरअंदाज करेंगे तो फिर दोस्त क्यों बने ? बात पूर्णतः स्पष्ट है कि हम सभी मित्रों से गुफ़्तगू तो नहीं कर सकते हैं पर जो हमें कुछ लिखता है उसे कम से कम ढाढ़स तो बंधा दें ! और इस बात पर भी गौर करना है कि उचित शब्दों और सकारात्मक प्रतिक्रियाओं का ही चयन हो ! आप नहीं लिखते हैं इस दर्द को प्रायः -प्रायः सब झेल लेते हैं पर आपके अनुपयुक्त शब्दों का प्रयोग और नकारात्मक अभिव्यक्ति एक विचित्र नश्तर चुभोने लगता है ! कालांतर में यह कैंसर का रूप धारण कर लेता है !

बड़ों को सम्मान देना और वो भी प्रणाम और अभिवादन के साथ ! आभार व्यक्त करना किसी को ना भूलें ! समतुल्य को नमस्कार और जयहिंद कहें ! कनिष्ठ को आशीष और प्यार दें ! और “ जुबान संभाल के “ बातों को सदा याद रखें ! सबों का आदर और सम्मान हो अन्यथा हमारी सेना हमारा साथ छोड़ चली जाएगी !

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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”

साउंड हेल्थ क्लिनिक

एस ० पी ० कॉलेज

दुमका

झारखण्ड

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