Site icon Youth Ki Awaaz

जब देश के पहले राष्ट्रपति के कहने पर बनी थी पहली भोजपुरी फ़िल्म

भोजपुरी सिनेमा और भोजपुरी भाषा का नाम सुनते ही लोगो में मतभेद देखने को मिलता हैं, कोई भाषा के पक्ष में हैं पर सिनेमा के खिलाफ़, कोई दोनो के ही खिलाफ़ हैं| भोजपुरी लिखने, पढ़ने, बोलने और सुनने वालों को हीन दृष्टि से देखते हैं | 

असल भोजपुरी साहित्य और लोक गीत के मंच तक सिमट कर रह गया वही सिनेमा अश्लीलता की भेंट चढ़ गया |

भोजपुरी भाषा का इतिहास काफी मधुर रहा हैं, मगही, मैथली के गलियारे से होते भोजपुरी बोली की पृष्ठभूमी लोगो को मोहित करती आयी हैं, भोजपुरी आयी कहाँ से? भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत कब हुई? बहुत कम लोग को पता है! 

भोजपुरी का इतिहास 

उज्जैन के भोजवंशी राजा जब बिहार कि तरफ आये तो एक क्षेत्र को अपनी राजधानी बना लिया जिसका नाम अपने पूर्वज “राजा भोज” के नाम पर “भोजपुर” रखा, इसके आस पास के बोले जाने वाली बोली को भोजपुरी कहा जाने लगा। छठी शताब्दी के अंत से ही भोजपुरी भाषा बोली जाती हैं | पहले इसे कैथी लिपि में लिखा जाता था , अब इसे देवनागरी लिपि में लिखते हैं|
 
भोजपुरी का दायर बड़ा हैं :- उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, नेपाल के अलावा भारत के बाहर फिजी, गयाना, उत्तर अमेरिका, मॉरीशस में बोली जाती हैं। मॉरीशस में भोजपुरी को संवैधानिक भाषा का दर्जा मिला हैं। शुद्ध भोजपुरी गाज़ीपुर से भोजपुर तक ही बोली जाती है। उत्तर प्रदेश में अवधी, खड़ी और भोजपुरी की मिश्रित बोली है! 
 

पहली भोजपुरी फ़िल्म और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद 

 
भोजपुरी सिनेमा इन दिनों अपने अश्लीलता के लिए प्रचलित हैं, पर 61 वर्ष पूर्व इसकी शुरुआत एक आग्रह और ज़िद से हुई थी, आरंभ में भोजपुरी फ़िल्मों को सामाजिक मुद्दों पर बनाया जाता था | आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति “राजेंद्र प्रसाद”  भोजपुरी बोलने के शौकीन थे। अपने खाली वक़्त में वह भोजपुरी में बात चीत करते थे। एक दिन किसी मीटिंग के दौरान उस समय के जाने–माने बॉलीवुड कलाकार नज़ीर हुसैन से मिले | प्रसाद जी ने अपनी इक्छा प्रकट करते हुए कहा :- आप भोजपुरी में कोई सिनेमा बनाइए। इत्तेफ़ाकन हुसैन साहब के मन में भी यह बात थी और उन्होंने पहले ही पटकथा तैयार रखी थी| अपनी पटकथा लेकर वो विमल रॉय के पास गए। उन्हें कहानी पसंद आयी लेकिन वह फिल्म हिन्दी में बनाना चाहते थे , हुसैन साहब ने तुरंत मना कर दिया कहा फिल्म बनेंगी तो भोजपुरी में ही, फिर पटकथा लेकर वे विश्वानाथ शाहपुरी के पास गए उन्हे पटकथा पसंद आयी और फ़ौरन मान गए |
 

“गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो”, भोजपुरी सिनेमा की पहली फिल्म की नींव 7 फरवरी 1962 को रखी गई। इस फिल्म का विषय विधवा पुनर्विवाह था, इसका उद्देश्य सामाजिक कुरीतियों को मिटाना था | फिल्म के मुख्य किरदार बनारस से कुसुम और असीम थे। हिन्दी सिनेमा के पद्मा खन्ना, लीला मिश्र, हेलेन, टुनटुन जैसे लोकप्रिय अदाकारा शामिल थी | फिल्म का शीर्षक गीत (title song) “गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो” को लता मंगेशकर, ” सोनवा के पिंजरा मे बंद भईल हाय राम चिरई के जियरा ” को मोहम्मद रफ़ी ने स्वर दिया था | फिल्म बनाने के लिए डेढ़ लाख की धनराशि निर्धारित थी परंतु यह बढ़कर पाँच लाख तक पहुँच गया | 1962 में इसकी पहली स्क्रीनिंग हुई | 

 

22 फरवरी 1963 में पटना के वाणी सिनेमा हॉल में ये फ़िल्म रिलीज़ हुई। फिल्म देखने के लिए लोग बैलगाड़ी से आये थे। फिल्म के टिकट का दाम ₹5 रुपये रखा गया। “गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो” ने तब के जमाने में 80 लाख कमाये थे|

1970 से 1990 तक फिल्मो में लोकगीतो का प्रचलन था “ऐसान बसुरिया बजाओ” “नाही बिसरी सुरतिया”, ” छलक गईल गगरी “, (फिल्म बिदेसिया :- ” लागी नहीं छूटे रामा “) 1985 में दंगल फिल्म के गाने ( जुग जुग जिया ललनवा) आज भी चाव से गाया एवं सुना जाता हैं| अचानक भोजपुरी सिनेमा का स्तर नीचे जाने लगा | 

2000 में फिल्मो में मीठी बोली की जगह गाली गलौच का खट्टापन आया अश्लीलता का तड़का लगा | ” ससुरा बड़का पैसा वाला ” फिल्म की कमाई में उछाल देखा, फिल्म में अश्लीलता दिखाने से निर्माता का मुनाफा चौथे आसमाँ था | फिल्मो में कहानी, लोकगीत, मिठास को हटा कर अंगप्रदर्शन, गाली, को भर दिया| सामाजिक हित से हट कर भोजपुरी सिनेमा के स्वर्णिम यात्रा पे अश्लीलता का कलंक लग गया |

समाज को ढालने के लिए फ़िल्म बनाई जाती थी अब समाज से ढलकर फिल्मे बनती हैं |

 
 
Exit mobile version