चंडीगढ़ महापौर चुनाव में हुई धांधली के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा “लोकतंत्र के साथ मज़ाक हुआ” और मुझे भी लग रहा है लोकतंत्र इस मज़ाक के बाद पेट पकड़ के हंस रहा होगा। चंडीगढ़ हाई कोर्ट को कम से कम इसे “शरारत” तो कहना ही चाहिए था। हालांकि, ऐसे मज़ाक पहली बार नहीं हुए है लोकतंत्र के साथ, ऐसे कई मज़ाक इतिहास के पन्नों में दफ़न हैं।
लोकतंत्र को बचाने की बात की जा रही है और जनता तब भी विश्वास नहीं कर पा रही है कि लोकतंत्र खतरे में है। इमरजेंसी के दौरान जनता खड़ी हुई थी लोकतंत्र को बचाने के लिए क्योंकि उस वक़्त उनके प्रतिनिधि व्यापारी नहीं हुआ करते थे, गरीब, गाँव से आए हुए सांसद विधायक भी हुआ करते थे, तो जनता को लोकतंत्र से सरोकार रहता था।
आज जिस लोकतंत्र को खतरा है, उस लोकतंत्र में 88% सांसद और 82 % विधायक करोड़पति हैं, और चुनाव जीतने के बाद उनके अदृश्य व्यापार से इनकी आमदनी बेहिसाब बढ़ती जा रही है। सबसे बड़ा मज़ाक ये है कि राजकोष घाटे में चल रहा है और चुने हुए प्रतिनिधि मुनाफ़े में। जिस लोकतंत्र में चुनाव महंगे हो गए हो, सांसद विधायक करोड़पति को ही बनना हो तो उस लोकतंत्र से आम जनता को क्यों सरोकार होगा।
आम जनता के पास कोई डर नहीं है क्योंकि ईडी, इनकम टैक्स के लोग उनके यहाँ नहीं आएंगे, फिर उन्हें किस बात का खतरा और उनका लोकतंत्र तो संसद में है ही नहीं, वोट पहले भी देते थे, आज भी देंगे, बाकी लोकतंत्र में जब भागीदारी ही नहीं तो वो अमीरों के लोकतंत्र से जनता का क्या वास्ता। आम लोगों का लोकतंत्र आज भी बिना सुनवाई, बिना उचित विधिक सहायता के जैलों में बंद है, उनके लिए रोजगार ही लोकतंत्र है।
धर्मनिरपेक्षता पर भी कोई खतरा नहीं है, हाल ही में एक धर्मनिरपेक्ष अपराध का मामला आया, एक बजरंग दल के नेता ने अपने मुसलमान मित्र के दुश्मन जो कि मुस्लिम ही था, उसे फँसाने के लिए गाय की हत्या कर दी। कहाँ है हिंदू-मुस्लिम भाईचारे में कमी? व्यापार और अपराध आज तक साम्प्रदायिक नहीं हुआ, सब अपने फायदे के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं।
अंबानी, अदानी, टाटा आदि उद्योगपति खुल के व्यापार कर रहे हैं, लेकिन हमारे नेता कौनसा व्यापार कर रहे हैं कि आमदनी बढ़ती जाती है और नेतागिरी भी चमकती जाती है।
अब किस लोकतंत्र को बचाना है, ये तो साफ़ है लेकिन यदि सच में लोकतंत्र को बचाने की बात की जा रही है तो पहले राजनीतिक दलों को अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा करने पड़ेगा। नैतिकता के बिना कितनी अच्छी बातें कर लो पर सत्य ये है कि जिन पार्टियों में खुद लोकतंत्र को मार दिया गया हो, वो देश के लोकतंत्र को बचाने की बात कर रहे हैं। चुनाव यदि करोड़पतियों को लड़ना है और वोट आम जनता को देना है तो यहाँ दो लोकतंत्र हुए, एक चुनाव लड़ने वाला और एक वोट देने वाला।
फिलहाल जनता का वोट देने वाला लोकतंत्र सुरक्षित है।