अभी हाल ही में, पिछले साल मैं अपने चाचा की लड़की की शादी में बिहार गई थी। वहां लोगों से मुझे पता चला कि लड़केवालों को दहेज में 11 लाख रुपये नगद और एक मोटरसाइकिल दी गई है, क्योंकि लड़के के पास सरकारी नौकरी है जो उसे उसके पिता के देहांत के बाद अनुकम्पा पर मिली है। इस शादी में शामिल होने आयी तीन बेटियों की माँ (मेरी माँ) जो दहेज की रकम सुनने के बाद से ही चुप रहने लगी थी। शादी की चहल-पहल में, जब मुझे उनकी चुप्पी का कारण पता चला, तब बड़ी बेटी होने के नाते मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें धीरज दिलाया। समाज से जुड़े होने के कारण हम सभी की हर एक क्रिया हर दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करती है। इस शादी में लगभग 10 से ज्यादा गांवों के लोग आए होंगे और अब दहेज की खबर शादी में आए हुए लोगों के साथ जाएगी और ऐसे हर बेटे के पिता की अपेक्षा को और बढ़ावा देगी।
देखा जाये तो केवल सामाजिक तौर पर ही नहीं बल्कि पारिवारिक तौर पर भी कई तरह से लड़कियों का अपमान किया जाता है। उनका मान घर में कम होना, कभी-कभी मजाक में या जान बुझकर घर के सदस्य का उनसे ये कहना “मर जा हमारे दहेज के पैसे बच जायेंगे।” यू.पी, बिहार के छोटे-छोटे बच्चों को इसके बारे में अच्छे से पता होता है। और उनको अपने दहेज में क्या चाहिए पूछने पर वे यह भी बताते हैं। यह एक ऐसी कुप्रथा है समाज में जिसे अकेले सरकार के द्वारा लाए गए किसी अधिनियम से जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता।
एक समय था जब दहेज स्वेच्छा से दिया जाता था, लेकिन वर्तमान में धन का महत्त्व इतना बढ़ गया है कि यह अब सामाजिक प्रतिष्ठा चुकी है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश और बिहार ये दो ऐसे मुख्य राज्य हैं जहाँ दहेज व्यवस्था एक ऐसी प्रथा का रूप ले चुकी है, जिससे युवती के माता-पिता और परिवारवालों का सम्मान दहेज में दिए गए धन-दौलत पर ही निर्भर करता है। वर-पक्ष भी सरेआम अपने बेटे का सौदा करते है। यहाँ लैंगिक भेदभाव और अशिक्षा दहेज़ प्रथा का प्रमुख कारण है। 2021 में, भारत के उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश में दहेज हत्या की सबसे अधिक मामले दर्ज की गई थी।
यहाँ बेटी के जन्म से ही उसके दहेज के लिए माता-पिता पाई-पाई जोड़ने में लग जाते हैं। अच्छी खासी पढ़ी-लिखी लड़की के पिता भी आज दहेज देने के लिए मजबूर हैं। आखिरकार, सवाल उनकी बेटी के अच्छे भविष्य का जो है। यहाँ लड़की की शादी की शुरुआत होती है एक अच्छे घर और अच्छे वर की तलाश से और बात पक्की होती है लेन-देन के हिसाब-किताब से।
जीवन भर मोलभाव एक औरत किया करती है। लेकिन, जहाँ असली मोलभाव की जरुरत है, वहां वह आज भी चुक रही है, “दहेज”।
क्यों दूं मैं दहेज तुम्हें ?
लड़की हूँ सिर्फ इसलिए ?
जिसने इस जगत को बनाया, उसने तुम्हें और मुझे भी बनाया है !
फिर क्यों दूं मैं दहेज तुम्हें ?
देखा है मैंने अपने माँ-पापा को पाई-पाई जमा करते हुए ,
अपनी इच्छाओं को हमारे लिए दफन करते हुए !
इसके बावजूद भी, क्यों दूं मैं दहेज तुम्हें ?
तुम रोकोगे ये प्रथा तो शायद यह यही रुक जायेगा…
फिर कोई बेटी का बाप अपने कलेजे का टुकड़ा दान करने के बाद भी कर्जदार न कहलायेगा !
अपनी बेटी को बोझ समझने की बजाय उसे आत्मविश्वासी और स्वतंत्र बनने में मदद करें। उसकी शिक्षा में निवेश करें, उसकी शादी में नहीं। दहेज के खिलाफ अपने समुदाय में जागरूकता पैदा करें।