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“संवादहीनता भारत के लिए घातक साबित होगी”

संवाद से ही जीवन सुचारु रूप से गतिशील बना हुआ है. इस गतिशीलता को बनाए रखने के लिए मत-मतांतर होते हुए भी संवाद ज़रूरी होता है. भारत में संवादहीनता से अब एक बड़ा संकट दस्तक दे चुका है. यदि इसको समझकर भी नासमझ बनने या समझकर भी इसे अनदेखा करने की कोशिश हो रही है तो यह और बड़े संकट की आहट है.

भारत में प्रत्येक व्यक्ति कनेक्ट होना चाहता है. जुड़ना चाहता है. इसके लिए संबंधों का अच्छा होना आवश्यक है. संबंध यदि अच्छे रहेंगे तो जुडाव की रेशे से जो छुअन है, वह बनी रहेगी. इसे बनाए रखना कठिन इसलिए हो गया है क्योंकि मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि वह अपने उस बारीक सी छुअन को समझ नहीं प् रहा है जिससे रिश्ते मजबूत होते हैं. मनुष्यों की इस भीड़ में जो तंत्र विकसित हुए हैं, उनमें भी वही बारीक सी छुअन काम करती है. अब तंत्र का चाहे जो भी संरचना हो. जो भी उसके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक आधार हों. राज्य की मर्यादाओं में भी वही रिश्ते हैं जो एक व्यक्ति में सन्निहित है. व्यक्ति से समष्टि में यह संबंध तरलता से प्रवाहित होते हैं. इस प्रवाह की जो धारा है वह भले हमें न समझ आती हो. उसकी पकड़ को हम न अलग करके देख पाते हों लेकिन वे एक अद्भुत से लगाव के बीच प्रवाहित होती हैं. संवाद की भी अपनी पकड़ इसी से हमें समझना होगा. व्यक्ति ही समष्टि की अभिव्यंजना करता है. सृष्टि में उस पकड़ के सहारे सारी अभिव्यंजनाएं अभिव्यक्त हो रही हैं. संवाद उसी की एक कड़ी है. उन्हीं अभिव्यंजनाओं में अभिव्यंजित स्वर हैं. संवाद की गतिशीलता में जो रुकावट है वह हमारे लिए अप्रत्याशित कारणों के साथ ज़रूर मिलेंगे लेकिन गतिशीलता को समाप्त करने के लिए वे काफी हैं. भारत में ऐसे अनेकों कारण हैं जो आज हमें कनेक्ट होने से रोक रहे हैं. जुड़ाव से रोक रहे हैं.

एक समय था जब लोग मौन हो जाते थे. संवादहीनता होती थी. लेकिन उसके अलग मायने होते थे. उसके अपने निहितार्थ होते थे. आधुनिक विकास के जंजाल ने मनुष्य को खोखला बना दिया. अब संवाद की सामग्री व संसाधन से भरापुरा मनुष्य की सामाजिकी ही संवादहीनता की ओर बढ़ चली है. सोचिये इस समाज का क्या होगा? मोबाइल व दूसरे कम्युनिकेशन के माध्यमों ने घर में ही अपनों के बीच संवादहीनता की ओर धकेल दिया. सोशल मिडिया पर मनुष्य पागलों की भांति हंस रहा है और परिवार के किसी व्यक्ति के साथ बातचीत करते हुए गुस्सा हो रहा है. क्रोध में पागल हो जा रहा है. अपने ही परिजनों पर अपनी सहनशीलता को त्यागकर अपने ब्लड-प्रेसर को बढ़ा ले रहा है. एआई से आने वाले समय में बहुत बुरा हाल होने वाला है. लोग किस कदर अपने ही पर्याप्त विकास के माध्यम से पर्याप्त पागलपन की ओर बढ़ेंगे, इसका हमें आज अंदाज़ा भी नहीं है. मौन मोबाइल के साथ भी लोग हैं लेकिन यह मौन दूरियां बढ़ा रही हैं.

इस संवादहीनता की व्यक्ति से तंत्र की ओर बढ़ने असीम ताकत है. इसके कारण हमारी पृथ्वी पर अनेक संसय, युद्ध, षड्यंत्र, हिंसा, जघन्य कृत्य व अवसाद बढ़े हैं. युक्रेन व रूस का उदहारण लें. युद्ध के अनेक उदाहरणों का अध्ययन करें. सब समझ आ जाएगा कि संवादहीनता ने क्या तांडव मचा रखा है. भारत में अशांति के मूल में ही संवादहीनता है. असंवेदनशीलता है. हर क्रूरता की जड़ें संवादहीनता से होकर निकलती हैं. करोड़ों शरणार्थी इसलिए गरीबी, भुखमरी, अनागारिकता और मानवाधिकारों से वंचित हैं क्योंकि वहां कहीं न कहीं संवादहीनता है. भारत में भी जितने प्रकार के स्ट्रेस हैं वे संवादहीनता की वजहों से हैं.

समय रहते हम संवाद कायम कब करेंगे? समय रहते हम किसी समस्या को कब छोटी बनाएंगे? समय रहते हम कब मिल-बैठकर बात करेंगे? संवादहीनता की मौन अभिव्यंजना हमसे चुनौतीपूर्ण सवाल कर रही है. हमसे पूछ रही है कि हमारी मूल चेतना सनावादों से बाख क्यों रही है? हमारे देश की सनातन परंपरा में तो संवाद की लंबी विरासत है. हम पेड़ों से बात करते थे. चिड़ियों की भाषा समझते थे. हे खग-हे मृग मधुकर श्रेणी, तुम देखी…यह हमारे देश के शास्त्रों में वर्णित है. इसका मतलब हमारे संवाद की क्षमता अद्भुत थी. हम सब समझते थे. हमें पशु-पक्षी-पेड़-पौधे-पहाड़ सब समझते थे. नदियाँ समझती थीं. झरने समझते थे. मौसम हमें समझते थे. हम मौसम को समझते थे. यह सब किस कारण से घटित हो रहा था, इस पर कभी विचार करके देखिये. हम उसी देश के वासी हैं और आज हम संवाद से कटते जा रहे हैं.

आज हमारे देश में पूरब से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक संवादहीनता ने अपना पांव पसार लिया है. मणिपुर, केरल, पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों में संवादहीनता की जो तस्वीर सामने आ रही है वह ठीक नहीं है. किसान, गरीब, वंचित अपनी आवाज़ के साथ मुखर हो रहे हैं लेकिन सावधानी से उनकी अपनी ही संवेदनशील अभिव्यक्तियाँ उनका साथ नहीं दे रही हैं क्योंकि वे यह सोच रहे हैं कि जो वे सोच रहे हैं वे सही सोच रहे हैं. इसके लिए उनके भीतर एक चीज की कमी है संवाद कायम करने की कमी. उनकी अपेक्षा सरकार से है. सरकार भी संवादहीनता के वेदी पर चढ़ गयी है तो संवाद होगा कैसे? यह पेड़ों से बात करने वाला देश संवाद के अभाव में विका की ओर नहीं अपितु विनाश की ओर बढ़ने के लिए तत्पर है. सोचिये, इस देश का क्या होगा?

इस सबके पीछे कोई न कोई है. इसको भी आज समझना आवश्यक है. इसके पीछे की उन बारीकियों को नहीं समझकर संवाद बनाया गया तो हमारे देश में कभी भी विकास और सततता की अविरल स्थितियां डगमगा सकती हैं. अभी बहुत स्थिति काबू में है. अभी हम आसपास हैं. संवाद के आसपास हैं. अभी हम एक दूसरे को सुनकर, उसे गुनकर एक नई डगर की ओर बढ़ सकते हैं. किन्तु जब घाव बड़े हो जाएंगे तो हमारी संवादहीनता का नासूर स्वरूप हमारे देश के लिए बड़ी पीड़ा व अवसाद का कारन बन जाएगा.

पृथक्करण के लिए पर्याप्त संभावनाओं पर तभी हम अंकुश लगा सकेंगे जब हमारे मनोभाव जुड़ाव की ओर उन्मुख होंगे. हमारे संवाद भी तभी कायम हो सकेंगे जब मैत्री, करुणा और प्रेम के बीज हमारे भीतर पनपेगा और उसे हम पनपने देंगे. देश केवल राजनीति से नहीं चलता. भारत भावना-प्रधान देश है. बिना मतलब के भी बहुतेरे लोगों को संवादहीनता की वजह से हॉस्पिटल तक नहीं पहुँचने देने से उनकी मृत्यु की जिम्मेदारी कोई नहीं लेगा लेकिन संवाद हों आपस में तो बीमार लोग सही समय पर अस्पताल जा सकेंगे. उनका ईलाज जो जाएगा. वे बच जाएंगे. किसी के जीवन से खेलती यह संवादहीनता हमारे देश को बहुत बुरी तरह फंसाने जा रही है. इसलिए इसकी वजहों को समझना आज आवश्यक है. पृथक्करण के लिए कोशिश करने वाली ताकतों को हराना भी तो है. वे तो चाहती हैं कि मनुष्य कैसे कमजोर होगा? व्यवस्था कैसे कमजोर होगी. वे तो चाहती हैं कि एक ऐसी कोई नब्ज़ हमारे पास हो जिससे हम देश को कमजोर कर सकें. आज की तारीख स्मरण रखें. जो आज सबके सामूहिक कोशिश व संवाद से चीजें बिखरने लगी हैं, उसको कभी बचने के लिए बेचैन होकर एक नई कोशिश करनी पड़ेगी. फिर चीजों को बिखरने ही हम क्यों दें. हमारे बीच कोई न कोई चीजें हैं जिसकी वजह से हम अपने ही लोगों के बीच एक-दूसरे को अनदेखा कर रहे हैं. तंत्र को बनाए रखने के लिए समाधान ही हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. तंत्र है भी किसके लिए इसे भी समझना होगा. जब समाधान की ओर बढ़ना है तो व्यक्ति, समाज, सरकार और हमारे बनाए तंत्र सबके बीच संवाद आवश्यक होगा. हम यदि एक को भी छोड़कर आगे बढ़ने की जिद्द करेंगे तो एक बात निश्चित है हम एक आक्रोशित समाज को जन्म देंगे. हमें अपनी थाती को बचने के लिए, अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए संवाद की की कड़ी को इसलिए आज पुनर्जागृत, पुनर्स्थापित व पुनर्प्राप्ति के लिए संवेदनशील होने की आवश्यकता है वरना बहुत घटक साबित होगी संवादहीनता. अतः आज संवादहीनता गतिशील सभ्यता के लिए बाधा है, इसे समझना ही होगा.

लेखक भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी रह चुके हैं। आप केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब में चेयर प्रोफेसर, अहिंसा आयोग व अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं।

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