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बनारस एक सांस्कृतिक राजधानी

” बनारस  ” नाम सुनते ही भले आपको फेयरी टेल की कल्पना ना हो , पर आपको तुरंत गंगा मां याद आती हैं , शहर और भी बहुत हैं पर इसको जिंदा शहर कहा जाता है , लोग कहते है यहा सुकून है , पर क्या आपने सोचा है ? क्यों कहते है बनारस को जिंदा शहर? यहां मोक्ष कैसे मिलता है ? इस सवाल का हल है यहां की संस्कृति के पास हैं ! आइए जानते है यहा के वो अनसुने किस्से जो सिर्फ़ सकरी गलियों में लोगो के छत से सटे छत और बुजुर्गों तक रह गईं !
 
आज हम चर्चा करेंगे अनसुने किस्से और संस्कृति की जो बनारस के ठेठ ज़ुबान या अध्यात्म की क़िताब की बंद पड़ी है !
 
 
बनारस कई चीजों के लिए प्रसिद्ध हैं , चाट, घाट , गंगा , साड़ी , मंदिर , गलियां और आराम के लिए , पर आपने यहा की संरचना के बारे में कभी सोचा है , नही ना , पता था , यह यूं ही नहीं जिंदा शहर है , बनारस (काशी) की संरचना एक आम मनुष्य के तरह ही की गई थीं, यहां पर 72000 मंदिर हुआ करते थे , बनारस को तीन बार नष्ट करने की कोशिश की गई, जिसमे आज सिर्फ 3000 मंदिर ही बचे हैं, यह 72 हज़ार कोई आम संख्या नही है , यह मानव शरीर में नाड़ियों की होती है जो एक धागे की तरह होती है , इनमे से 2 मुख्य नाड़ियां है इड़ा और पिंगल जिसका जिक्र योग शास्त्र में मिलता हैं,काशी में 54 शिव के और 54 शक्ति के मन्दिर है , अगर हम दोनो को जोड़ दे तो 108 की संख्या मिलती है , जो की एक मानव शरीर में 108 मर्म चक्र की संख्या होती है,बुद्ध धर्म के अनुसार मावन के अंदर 108 प्रकार की भावनाए जन्म लेती है , भरतनाट्यम और भगवान शिव जब तांडव करते है तो दोनो में 108 मुद्राएं होती है , हिंदू धर्म में 108 पुराण और 108 उपनिषद् है, संस्कृत वर्णमाला में 54 अक्षर है , हर एक अक्षर शिव और शक्ति को समर्पित है,धरती का डाइऐमिटर 12742 किमी. है इसको 108 से गुणा करे तो यह सूर्य के डाइऐमिटर 13, 92,000 किलो मीटर आता है , अगर सूर्य के डाइऐमिटर को 13,92,000 को 108 से गुणा करे तो , 14,96,00000 किमी. आता है , यह वही संख्या है जिससे पृथ्वी से सूर्य की दूरी का पता चलता है, चांद के डाइऐमिटर 3474 किमी. को 108 से गुणा करे तो यह पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी 3,84,400 किमी. के बराबर आता है , काशी की रचना समन्या रचना नही है , काशी को तीन खण्ड में बाटा गया है , यहां पर 84 घाट है अगर आप ध्यान दे तो काशी में गंगा का स्वरूप अर्ध चंद्राकार जैसा है !!
 
आइए जानते है यहाँ की साधना संस्कृति के बारे में , जो बनारस गए है उन्होंने इस साधना हो देखा है जो नही गए है उन्होंने इसके बारे में सुना है , हम बात कर रहे है गंगा आरती की, गंगा आरती सिर्फ आरती नही यह एक प्रक्रिया है जो एक साथ एक समय पे पांच तत्वों की साधना करते है आपने देखा होगा की गंगा आरती के समय जल, अग्नी , वायु, आकाश और पृथ्वी की एक साथ अनोखे तरीके से साधना करते हैं, इसीलिए यह इतनी अद्भुत होती है !! एक कथा के अनुसार स्वर्ग की 64 अप्सराओं को काशी इतनी अच्छी लगी की वह स्वर्ग को छिड़ कर यही रहने लगी, शिव के 2 गण भी काशी आए और वो यहां के द्वारपाल बन गए !!
 
मोक्ष और भैरवी यातना
 
अब हम बात करने वाले है एक ऐसी संस्कृति की जिसके लिए दूर दूर के लोग मरने से पहले या मरने के बाद उनकी राख के साथ जुड़ी है मोक्ष की संस्कृति की …..
आपने बचपन के सुना होगा कि काशी में मरने पाने के बाद मोक्ष मिलता है , 
पर यह पूरा सच नही नही , यह एक प्रोसेस के अंतर्गत होता है इसके लिए आपको काशी में ही प्राण त्याग करना होगा, काशी विश्वनाथ शांत और सुन्दर रूप है और कल भैरव एक विकराल रूप है , आपको मृत्यु के दौरान भयानक यांतना (दर्द) के गुजरना होगा , जहां आपको इतना दर्द होगा जो असहनीय होता है , आपको पूरे जीवन का दुःख दर्द एक साथ हो जायेगा 1 पल में , आपने जिनते पाप पुण्य किए है सब आपको एक साथ मिल जायेगा , ऐसी यातना नर्क में दी जाती है , पर काल भैरव आपको यही दे देते है , फिर आपको मोक्ष मिल जाता है , पर यह उन्ही को मिलता है जो यहां देह त्याग करते है !!
 
 
यहां की साधु संस्कृति बहुत चमत्कारी है , यहां पे कई आचार्य , स्वामी आए पर तुलसी , कबीर , तैलंग स्वामी, और शंकराचार्य जैसे आत्मा ने बनारस की जमीन को पारस कर दीया , अस्सी के बगल में तुसली घाट पे चंदन घिसते घिसते तुलसीदास को श्री राम के दर्शन हो गए फिर उन्होंने रामचरितमानस लिखा , तैलंग स्वामी लोगो का कहना था कि वो एक विशाल शिवलिंग को अपने बाजुओं में दबा कर गंगा के इस पार से उस पार जाया करते थे , आज भी वह शिवलिंग पंचगंगा घाट के पास माधव वाली गली में तैलंग स्वामी मठ में स्थापित है , यह शिवलिंग जितना जमीन के उपर है उतना ही जमीन के निचे है , कबीर दास जी ने एक से एक साखे लिखो यही के घाटों में बैठ कर, कर्नाटक के शंकराचार्य जिन्होंने 32 साल की उम्र में 2 बार भारत का चक्कर लगाया था , उनको यहां के विश्वनाथ मंदिर में एक शुद्र में शिव के दर्शन मिल गए और वो वहीं उसके चरणों में गिर गए !
 
 
ऐसी ही कई अनेक अनसुने किस्से बनारस की गलियों गूंजते है , बस जरूरत है उन कानों की जो इसे सुन सके और उन हाथों की जो इसे लिख सके ! 
 
धन्यवाद!
 
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