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तेरे रुसवाईं से डरते हम !!

ऐसा नहीं की मैं जमाने को बताना नहीं चाहती 

अपने हिस्से की कहानी ,वो सारी बाते जो तुमने मुझसे कहीं थी 

कैसे मुझे देखे बिना ही तुमने पत्र के जरिये अपना बनाया था 

जो एक पल तेरे संग मैं जी ली थी और जो एक पल तू मेरे संग जिया था 

हाँ थोड़े दिन कम थे पर जो भी थे आसमान से कम ना थे,

पर सच मानो किसी से नहीं किया दर्द ए दिल ये बयां

क्यूंकी  तेरे रुसवाईं से डरते हैं हम!

आज भी उसी जगह जाती हूँ जहां मकान बने थे हमारे 

जो दो पल सुख के बिताए थे हमने 

तुम चाय की प्याली लिए खड़े मेरे किताबों से नज़र हटने का इंतज़ार करते थे 

और मेरे चेहरे से बालों को सवांरकर मुझे मेरे होने का एहसास दिलाते थे 

एक छोटे से कमरे में दुनिया से परे हम अपनी दुनिया में  ही खोएँ 

ना देश की चिंता , ना जीडीपी के बढ़ने की खुशी 

ना  ही बेरोजगारी की बाते करते थे हम 

बस अपनी ही बाते और बस प्यार में  खोये रहते थे  हम 

फिर भी आज अकेले बैठे जब अखबारों में मशरुफ़ रहती 

तो मेरे होंठो पर अक्सर तुम्हारे बेवफ़ाई के तराने रहते 

बेशक गालियां भी निकलती , पर किसी से ना कहते हम

क्यूंकी तेरे रुसवाईं से डरते हैं हम 

अब तो तेरे शहर से भी नहीं गुजरती , ना ही उन राहों के के फूलों से मिलते हम 

वो गलियाँ भी हमे अकेला देख तेरे बारें मैं ना पुंछ ले तेरी खैरियत 

और  मेरे मुख से तेरा नाम ना  निकल जाए इसलिए अब चुप रहा करते हम 

क्यूंकी तेरे  रुसवाईं से डरते हम !!

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