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‘चप्पल निर्माण उद्योग, बनाएगा महिलाओं को स्वावलंबी’

“अब तक हम घर पर चप्पल से मार खाते आए हैं, लेकिन अब उसी चप्पल को बनाकर-बेंचकर अपना घर चलाएंगे” … जब वो ग्रामीण महिला ये बात बोलती हैं तो वक्त के मार की स्पष्ट छाप लिए उनका झुर्रियों भरा चेहरा आत्मविश्वास से चमक उठता है. और उनकी बातें हमारे कानों में पिघले शीशे की तरह उतर कर सुन्न कर देती है. मन में न जाने कितनी सदियों से आधी आबादी पर हो रहे, जुल्म ओ सितम और उनसे संघर्ष की दांस्तानें गुंज उठती हैं. सोचता हूं- हम मर्दों ने महिलाओं की ज़िंदगी कितनी मुश्किल बनाकर रख दी है. अभी मैं इससे उबरा भी नहीं हूं कि एक दूसरी नौजवान महिला अपनी काबिलियत को लेकर उठते सवालों को ये बोलकर ख़ामोश कर दिया कि, “जब हम घर चला सकते हैं तो ये बिजनेस चलाना कौन सी बड़ी बात है. बड़ी बात सिर्फ ये है कि, अब तक ये साधन हमारे पास नहीं था… मगर अब है… और हम करके दिखाएंगे”.

हरियाणा के यमुनानगर की ये इन महिलाओं की आपसी बातचीत के दौरान निकले उदगार हैं. वे आज जिले के प्रताप नगर ब्लॉक में ‘इंपॉवर पिपुल’ के स्थानीय ऑफिस में इक्टठा हुईं हैं, ‘चप्पल निर्माण उद्योग’ के लांचिंग के मौके पर. ये पुरा उद्योग उन्हीं के व्दारा संचालित होना है. इस बारे में बात करते हुए इंपॉवर पिपुल संस्था के फाउंडर शफिक ऊर रहमान खान बताते हैं कि, “ये उद्योग पुरी तरह से ही महिलाओं का ही है. वे ही इसकी मालिक हैं और वे ही मजदूर भी हैं. हमारा काम बस इतना था कि हम इन्हें इकट्ठा करें, मशीनें और रॉ मैटिरीयल उपलब्ध कराएं और बेसिक ट्रेनिंग देकर आज़ाद छोड़ दें उड़ने के लिए… और हमने यही किया है”. वहां मौजूद महिलाएं उनसे सहमत नज़र आती हैं. इन महिलाओं को घरों से निकालकर संस्था के ऑफिस तक लाना कितना बड़ा चैलेंज था ये इससे पता चलता है कि जब शफिक ऊर रहमान खान कहते हैं कि, इस प्रोसेज में पुरे दो साल का समय लगा है. एक लंबा सफ़र है जिससे गुजरने के बाद आज ये स्टेज आया है जहां ये महिलाएं खुद का बिजनेस संभालने को अब तैयार हैं.

महिलाएं बातचीत में सील प्रोजेक्ट के तहत हुए इन दो सालों में सकारात्मक बदलावों के बारे में बताती हैं कि, पहले हम सब पर घरों में किसी भी तरह का अत्याचार होता था तो हम बस चुप्पी ओढ़ने को मजबूर थे. हमारे साथ कोई नहीं था लेकिन अब ऐसा नहीं है… हम 200 महिलाएं एक दुसरे के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं. अगर किसी महिला पर उसके घर में कोई हिंसा होती है तो बस उसके समर्थन में जाकर उसकी ग्रुप की महिलाएं खड़ी हो जाती हैं बगैर कुछ कहे, भला-बुरा कहे बगैर बस चुप होकर खड़े हो जाते हैं… और उसका घरवाला हमें देखकर अब चुपके से निकल लेता है. और अब तो हिंसा करने से भी काफी लोगों ने तौबा कर लिया है.

शफिक जी इस दौरान एक सवाल करते हैं महिलाओं से कि, अच्छा बताओ कि आपके घरवाले हमें किस नज़रिये से देखते हैं..? तो पहले वो महिलाएं एक-दुसरे को कंखियों से देखकर मुस्कुराती हैं और फिर बोलती हैं कि, बहुत अच्छा तो नहीं ही मानते हैं क्योंकि पहले वे कुछ भी घरों में हमारे साथ करने को आज़ाद थे. अब उन्हें अपनी हरकतों पर लगाम लगाना पड़ रहा है तो आपको अच्छा क्यों मानेंगे..? लेकिन संस्था और इस प्रोजेक्ट की वजह से हमारी और बच्चों की ज़िंदगी बहुत बेहतर हुई है. और हमारे मर्द भी अब पहले से थोड़ा बेहतर हुए हैं आपसी व्यवहार के मामले में. पहले घरों से निकलना ही हमारे लिए मुश्किल था लेकिन अब उन्हें भरोसा है कि इंपॉवर पिपुल के ऑफिस जा रही हैं तो कोई दिक्कत की बात नहीं है.

खैर अब हम आते हैं आयोजन पर… इंपॉवर पिपुल संस्था ने इन ग्रमीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए किंग्डम ऑफ नीदरलैण्ड एम्बेसी के सहयोग से सील प्रोजेक्ट के तहत ‘महिला उद्यम’ के शुभारम्भ का ये मौका है. जो कि 20 फरवरी को हुआ. संस्था की अध्यक्ष डॉ. सावित्री सुब्रह्मण्यम ने रिबन कटिंग करके महिलाओं के लिए ‘चप्पल निर्माण उद्योग’ का उदघाटन किया. तक़रीबन 200 महिलाओं के 10 ग्रुप में 10 स्लीपर मेकिंग मशीन रॉ-मैटेरियल के साथ वितरित करने के साथ ही प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया. प्रोजेक्ट सील कॉर्डिनेटर दिलदार हुसैन ने मेहमानों और महिलाओं का स्वागत किया. समारोह में स्थानीय महिला थाना की सब-इन्स्पेक्टर नीलम देवी चीफ़ गेस्ट के रूप में सम्मलित हुईं. नीलम देवी ने अपने सम्बोधन में कहा कि, ‘संस्था ने ये एक बेहतरीन कदम उठाया है, हमारी ग्रामीण महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से स्वायत्त बनाने का मार्ग प्रदान किया है”. वहीं डॉ. सावित्री सुब्रह्मण्यम ने अपने संबोधन में कहा कि, ‘ये एक नए वेंचर कि शुरुआत है. हम दूसरे से सीखेंगे और आगे बढ़ेंगे. आज इन मशीनों को आप सभी महिलाओं को सौंपते हुए मैं आशांवित हूँ कि जिस तरह आप अपना घर किसी भी हाल में संभाल लेती हैं इसे भी संभालेंगी और आगे बढ़ाएंगी. यह पहल न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएगी बल्कि उनके अधिकारों को भी प्रोत्साहित करती है’.

वहीं इस मौके पर इम्पॉवर पीपुल फाउंडर शफीक उर रहमान ख़ान ने कहा कि, ‘इस पहल का उद्देश्य महिलाओं को काम मांगने के बजाय काम देने वाले के रूप में पहचान बनाने के लिए हुई है. अभी ये एक नया-नया अंकुरित पौधा है. इन्हें आपको सौंपा जा रहा है एक बड़ा बट वृक्ष बनाने के लिए. हमें उम्मीद है, आप ये काम बख़ूबी करेंगी’. दिलदार हुसैन बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट को इस मुकाम तक लाने में संस्था की प्रोग्राम कॉर्डिनेटर मिशल रिज़वी, सनाया सिंह, जितेंद्र ठाकुर के साथ ही इंपॉवर पिपुल टीम के सभी साथियों ने अहम योगदान दिए हैं.

समारोह में ग्रामीण महिलाओं ने मौके पर ही चप्पलें बनाई साथ ही खुशी जाहिर करने के साथ ही बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा कि वे इस बिज़नेस को अच्छे से संभालने के साथ चला सकती हैं. इस तरह की पहल महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में मजबूत कदम साबित होगा और उन्हें स्वतंत्र और स्वावलंबी बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा, ये उम्मीद मेरे अंदर तब जगती है जब वहां उपस्थित महिलाओं के चेहरों पर कुछ कर गुज़रने की चमक देखता हूं.

– अंजुले श्याम मौर्य

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