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अडानी हसदेव वन केस में फिर से तेज हुई कार्यवाही

अडानी ग्रुप द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य के हसदेव अरण्य वन में किए जाने वाले कोयला खनन से जुड़ी गतिविधियाँ पुनः तेजी से शुरू हो चुकी है। क्षेत्र में होने वाली माइनिंग एक्टिविटी के कारण अडानी हसदेव वन मामला भी एक बार फिर से देश की बड़ी खबरों में है। हसदेव अरण्य वन में माइनिंग एक्टिविटी की शुरुआत 2010 में की गई थी लेकिन पर्यावरण संरक्षण को लेकर आदिवासी और ग्रामीण लोग इस पहल से सहमत नहीं थे। हालांकि अडानी ग्रुप द्वारा की जा रही प्रत्येक कार्यवाही सरकारी नियमों के अनुसार है और पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति के बाद ही और उनकी निगरानी में ही हर काम हो रहा है।

पर्यावरण मंत्रालय के नियमों का पालन कर रहा अडानी ग्रुप

छत्तीसगढ़ राज्य के प्रसिद्ध हसदेव अरण्य वन में की जाने वाली कोल माइनिंग के लिए अडानी ग्रुप हर तरह से प्रशासन और सरकार के नियमों का पालन कर रहा है। स्थानीय लोगों की सोच का सम्मान करते हुए और अडानी हसदेव मामले को बेबुनियाद सिद्ध करते हुए अडानी ग्रुप पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है।

अडानी ग्रुप भी हसदेव वन की जैव विविधता के लिए चिंतित है और उसी के अनरूप काम कर रहा है। हसदेव वन अनेकों प्रकार के लुप्त होते वन्य जीवों का घर है जिसमें कई प्रकार के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और सैकड़ों प्रकार की पेड़ पौधे शामिल है जो हसदेव वन को खास बनाते हैं। हसदेव वन क्षेत्र यहाँ मौजूद हाथियों की बड़ी तादाद के लिए भी प्रसिद्ध है। हसदेव वन 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला हुआ है जहाँ गोंड, लोहार, पहाड़ी कोरवा और ओरांव जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार से अधिक लोग रहते है। अपनी जैव विविधता और मुख्यतः हाथियों की बड़ी आबादी के लिए भी हसदेव वन राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से यहाँ PESA (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरियाज) Act 1996 यानि पंचायत का अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार का अधिनियम पूर्व में लागू किया गया था, जिसके चलते स्थानीय पंचायत की सहमति के बगैर इस वन क्षेत्र में इंडस्ट्रियल एवं माइनिंग एक्टिविटी निषेध थी। PESA एक्ट के कारण हसदेव वन क्षेत्र को नो गो क्षेत्र घोषित किया गया था और सभी प्रकार की कोयला खनन गतिविधियाँ यहाँ वर्जित थी।

स्थानीय आदिवासियों की पर्यावरण को लेकर चिंता को अडानी ग्रुप और सरकार ने समझा और उसके बाद क्षेत्र और आसपास के विकास को देखते हुए नियमों में उचित बदलाव करते हुए हसदेव वन में खनन की अनुमति प्रदान की गई। इस मामले में सरकार और सम्बन्धित अधिकारीयों द्वारा स्थानीय लोगों को वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के नए नियमों से अवगत करवाया गया। अनुमति देने वाले अधिकारियों ने हसदेव वन से जुड़ी पंचायत को यह विश्वास दिलाया कि खनन के दौरान पर्यावरण को बचाने के लिए हर प्रकार से कदम उठाए जाएंगे और उसकी पूरी निगरानी संबंधित कार्यालय द्वारा होगी। उसके बाद ही प्रशासन और स्थानीय पंचायत के आपसी सहयोग से अडानी ग्रुप द्वारा अब कोयला खनन का काम हो रहा है जिसका उपयोग बिजली निर्माण हेतु किया जाएगा जिससे देश की बिजली आपूर्ति हो सके। हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को कोयला खदान का आवंटन किया गया था जिसके बाद राजस्थान सरकार ने खदान की माइनिंग डेवलपमेंट ऑपरेटिंग(MDO) यानी खदान को डेवलप करना और माइनिंग करने की सभी जिम्मेदारी अडानी ग्रुप के हवाले की थी जिसके अंतर्गत ही अडानी ग्रुप द्वारा खनन कार्य किया जा रहा है।

अडानी हसदेव वन मामले को लेकर अडानी ग्रुप पर लगाए गए आरोप हर बार गलत साबित हुए हैं। अडानी ग्रुप संबंधित मंत्रालय के नियमों का पूर्णतः पालन करता आया है और आज भी कर रहा है। अब पुनः अडानी ग्रुप तेजी से इस कार्य में जुट गया है जिससे देश के विकास कार्यों को गति मिल सके। अनुमति देने वाले अधिकारियों ने भी इस बात को साफ़ किया है कि अडानी ग्रुप द्वारा हो रहा खनन हर प्रकार से सरकारी की अनुमति और नियमों के अनुरूप हो रहा है। अडानी ग्रुप ने भी यह स्पष्ट किया है कि वे स्थानीय लोगों की बात का पूरा पूरा सम्मान करते हैं और खनन के दौरान हसदेव वन की जैव विविधता को सुरक्षित रखने के लिए हम सभी नियमों का पालन करेंगे और अन्य ज़रूरी निर्णय भी लेंगे ताकि प्रकृति को कोई हानि न हो। अडानी ग्रुप ने यह भी कहा कि अडानी हसदेव वन मामले को लेकर देश में जो अफवाह फैली है हम उसे भी दूर करने के लिए प्रयास करेंगे और देश को यह विश्वास दिलाएंगे कि अडानी ग्रुप ने कभी देश की सम्पदा को नुकसान नहीं पहुँचाया है न ही आगे ऐसा होगा। सुप्रीम कोर्ट में भी अडानी हसदेव मामले में अब तक हुई जाँच में अडानी ग्रुप पर कोई आरोप साबित नहीं हुआ है। हर रूप में यही बात सामने आई है कि हसदेव वन में अडानी ग्रुप द्वारा किए जा रहे खनन कार्य में हर नियम का पालन किया जा रहा है और हसदेव वन क्षेत्र के पर्यावरण संरक्षण के लिए भी कई रूप में काम हो रहा है।

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