भारत सरकार ने बड़े कानूनी बदलाव किये है जिनको लेकर वाद-विवाद, सहमति-असहमति जारी हैं। इंडियन पीनल कोड (IPC) की जगह अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) आ गया है। कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षित संहिता (BNSS) आ गया है। इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह अब भारतीय साक्ष्य एक्ट (BSA) आ गया है। तीनों बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी की सहमति मिल गई है।
इनमें से कुछ बदलाव विवाद और हल्ला का विषय बने हुए हैं। उनमें से एक है BNS का क्लॉज़ 69 जोकि शादी के झूठा वादे से जुड़ा है। जहाँ अधिकतर वकील इस पर पुरुषों के नज़रिए से बात रख रहे हैं (हमारे भारतीय न्याय तंत्र में 85% पुरुष वकील और 89% पुरुष जज हैं, ज़ाहिर सी बात है पुरुषों के पास अपनी बात रखने के माध्यम और जानकारी ज्यादा है) , वहीं इस लेख में आपको लड़कियों के नज़रिए की बात मिलेगी और इस कानून के पीछे के पितृसत्तात्मक पहलुओं पर जानकारी मिलेगी।
पुराने कानून व नए कानून में फर्क –
IPC 375 की धारा के हिसाब से बिना सहमति शारीरिक सम्बन्ध बनाना बलात्कार की श्रेणी में है और IPC 90 की धारा के हिसाब से “झूठ/धोखे से ली गई सहमति” को सहमति नहीं माना जाता। अर्थात इन दोनों धाराओं को मिलाकर समझें तो शादी का झूठा वादा करके महिला से शारीरिक सम्बन्ध बनाना मतलब बलात्कार।
अब नए कानून, भारतीय न्याय संहिता (BNS) के क्लॉज़ 69, के अनुसार अगर लड़का लड़की से शादी का वादा करता है पर उसे पूरा करने की कोई इच्छा नहीं रखता है और उसके बावजूद भी लड़की से शारीरिक सम्बन्ध बनाता है तो ये अपराध माना जायेगा।
यानि कि जो अपराध अब तक बलात्कार की श्रेणी में आता था अब वो एक अलग कानून बना दिया गया। हालांकि, पुराने और नए, दोनों कानूनों का अर्थ और सज़ा बराबर ही है लेकिन इस श्रेणी के अपराध पर अलग कानून बनाने से इसकी महत्वता और बढ़ गई है।
क्या है इस कानून का मतलब –
ध्यान देने वाली बात है कि मुद्दा ये नहीं कि आप शादी का वादा करके मुकर गए। मुद्दा ये है कि आपने शादी का झूठा वादा किया और आप उस वादे को पूरा करने की इच्छा नहीं रखते है। शादी का वादा पूरा ना कर पाना (किसी कारणवश या मजबूरी में) और शादी का झूठा वादा करना दोनों अलग अलग हैं।
यहाँ जाँच का विषय यह होगा कि क्या लड़के ने जानभुझ कर लड़की से शादी का वादा किया जबकि वो उस वादे को पूरा करने की मंशा नहीं रखता है। और इस तरह झूठ के आधार पर बनाये गए शारीरिक सम्बन्धो को सहमति नहीं कह सकते है।
वही कानून लड़कियों पर लागु क्यों नहीं?
किसी भी कानून को समझने के लिए हमें उस समाज के ताने बाने को समझना बेहद ज़रूरी है। उसी से हमें उस कानून का आधार और तर्क समझ आ सकता है। लड़के द्वारा शादी/उम्र भर का साथ निभाने का वादा करके लड़की को शारीरिक सम्बन्धो के लिए राज़ी करना पारम्परिक समाजों की सच्चाई है।
जहाँ शादी की पहली रात लड़की को खून आया या नहीं आया (virginity test), ये लड़के /लड़के वालों के लिए एक जाँच का विषय हो, जहाँ शादी से पहले शारीरिक संबंध (pre marital sex) की लड़कियों के लिऐ सख्त मनाही हो, जहाँ इस पवित्रता के डर से लड़कियों को शादी से पहले hymen लगवाने का ऑपरेशन तक करवाना पड़ता हो, जहाँ लड़की के बारे में ज़रा सी अफवाह से लड़की के पूरे परिवार की इज़्ज़त – मर्यादा खतरे में पड़ जाती हो, जहाँ लड़की को बचपन से ये सिखाया जाता हो कि शादी और पति ही तुम्हारा सब कुछ होगा। वहाँ प्रेम, शारीरिक सम्बन्ध और शादी का वादा एक दूसरे से जुड़े होते है।
(शारीरिक पवित्रता (virginity) किस तरह अपने आप में एक अवैज्ञानिक और निराधार सोच है इस पर अलग लेख लिखा जा सकता है।)
वहीं लड़को पर ये सब सिद्धांत समाज ने कभी लागु नहीं किए। और हाँ, अपने पिछले प्रेम प्रसंगो की वजह से लड़को के लिए शादी के विकल्प कभी कम नहीं होते। वहीं लड़कियों के बारे में ज़रा सी अफवाह उनके लिए रिश्तों के विक्लपों को कम कर देती है। ऐसे समाजों में लड़कियों में यौन सम्बन्धो के प्रति हिजक व डर और वहीं लड़को में लड़कियों को झूठ बोलकर यौन सम्बन्धो के लिए राज़ी करने की प्रवत्ति भी मिलती है। किसी समस्या पर कानून तब बनता है जब वो घटना/अपराध बार बार घटित हो रही हो और जब वो एक सामाजिक समस्या के रूप में उभर कर आ रही हो। इस कानून का भी यही आधार है।
आज के समय के हिसाब से क्या कानून गैर ज़रूरी है?
2022 में राजस्थान की भीलवाड़ा की खाप ने एक लड़की के परिवार पर 10 लाख की सज़ा थोप दी थी क्यूंकि शादी की पहली रात को लड़की को खून नहीं आया। राजस्थान में प्रचलित इस प्रथा को कुकड़ी प्रथा कहते हैं जहाँ ससुराल वालों द्वारा लड़की की तथाकथित पवित्रता की जाँच की जा जाती है और फेल होने पर लड़की और उसके परिवार को सज़ा दी जाती है।
दिल्ली, मुंबई, बंगलोर जैसे महानगरों में भले ही समाज का एक हिस्सा कुछ हद तक स्त्री की शारीरिक पवित्रता के भ्रम और शादी से पहले सैक्स की हाय तौबा से ऊपर उठ गया हो पर भारत की अधिकतर आबादी आज भी पारम्परिक पितृसत्तात्मक मूल्यों में विश्वास रखती है। हालाँकि आप कह सकते है कि भारत अब प्रगतिशीलता की ओर बढ़ रहा है पर बहुत धीमी गति से।
लड़कियों के लिए प्रेम संबंधों में आने या बने रहने के लिए आज भी ‘शादी का वादा’ एक बड़ी वजह होती है। पारम्परिक मूल्यों के डर और बोझ से ये समाज लड़कियाँ को आज भी आज़ाद नहीं कर पाया है। तो हम कैसे कह दें कि ये कानून निरर्थक है?
होना तो ये चाहिए कि ना ही लड़कियाँ समाज द्वारा शारीरिक पवित्रता, प्री मैरिटल सैक्स, इज़्ज़त या शादी के महिमामंडन जैसे भ्रमों से बाध्य हो और ना ही लड़के इस तरह से कानूनों से बाध्य हो। पर जब तलक समाज लड़कियों के लिए नहीं बदल जाता तब तक इन कानूनों की ज़रूरत को नकारा नहीं जा सकता।