एडिटोरीयल नोट: यह आर्टिकल प्रोजेक्ट सेकंड चांस के सदस्य और एक पूर्व क़ैदी द्वारा लिखी उनकी अपनी कहानी है। इन आर्टिकल्स की मदद से यूथ की आवाज़ और प्रोजेक्ट सेकंड चांस का मक़सद देश की जेलों में बदलाव और क़ैदियों के सुधार के माध्यमों की माँग करना है।
मेरा नाम गौरव तोमर है और मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ | मैंने 9th क्लास तक पढ़ाई की है| मैं दिल्ली 2002 में परिवार के साथ आया था | 2014 में मुझे एक केस में जेल हुई और मैं तिहाड़ जेल पहुँचा। जेल के हिंसक माहौल को मैंने कैसे सहा और कैसे जेल की कठिनाइयों के बीच अपनी ज़िंदगी को एक पॉजिटिव दिशा में मोड़ा, ये आज मैं आपको बताना चाहता हूँ।
तिहाड़ जेल पहुंचते ही मुझे पता चल गया था कि ये कैसे बाहर की दुनिया से अलग और बेहद अजीब है। अपने आस-पास लोगों को गाली-गलौज देते और मार-पीट करते देखा और मैंने उसी वक्त ठान लिया कि चाहे जो हो मैं ऐसे वातावरण का हिस्सा नहीं बनूँगा और जेल में अपने समय को इस से बेहतर तरीक़े से बिताऊँगा।
जब मैंने देखा कि जेल में लाइब्रेरी भी है, तो मेरे मन में वहाँ जाने और पढ़ने की इच्छा हुई। बचपन से मेरी पढ़ाई में दिलचस्पी तो थी, लेकिन मैं कभी सही ढंग से पढ़ नहीं पाया था। मुझे लगा यही सही मौक़ा है अपनी बचपन की हसरत पूरी करने और जेल का अपना वक्त किसी सही काम में बिताने का। मैंने जेल में दुसरे साथियों से पूछा कि यहाँ लाइब्रेरी जॉइन करने का तरीका क्या होता है तो मुझे पता चला की एक अर्जी के जरिए आपको A.S के सामने पेश होना होता है और फिर आपकी लाइब्रेरी में जॉब लग जाएगी | मैंने यही तरीक़ा अपनाया और लाइब्रेरी से जुड़ा। यहाँ किताबों को पढ़कर मैंने जीवन में एक नई दिशा पाई, जिससे मेरा व्यवहार में सुधार हुआ।
मेरे इस तजुर्बे से मुझे समझ आया कि जेल में किसी ने मेरी मदद की, मुझे रास्ता दिखाया तो मुझे यहाँ भी बहुत कुछ सीखने का मौक़ा मिला और मैं इस हिंसा भरे माहौल में भी अपने आप को बेहतर कर पाया | इसके बाद मैंने ठाना कि जैसे मुझे ये मदद मिली और मेरी समझ बनी अपने आपको बेहतर करने में, वैसे ही मैं खुद जेल के अपने बाकी साथियों की मदद करूँगा।
मैंने तिहाड़ में वहां के कैदियों और अपने साथियों को पुस्तकें बांटना शुरू किया और उन्हें यह भी बताया कि कैसे ये किताबें उनके मनोबल को बढ़ा सकती है साथ ही उनके व्यवहार में एक सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं। मैंने जेल प्रशासन से भी मिलकर बातचीत की। इसका नतीजा ये हुआ कि जेल की लाइब्रेरी में सभी कैदियों को जाने की अनुमति मिली और उनकी पढ़ाई के लिए ख़ास समय रखा गया।
मैंने अपनी समझ से जेल के कैदियों और साथियों को पढ़ाई में योगदान करने के लिए प्रेरित किया और उन्हें शिक्षित बनने के लिए प्रेरित किया। मैं हर वार्ड में गया, वहाँ कैदी भाइयों से मिलकर उनकी समस्याओं को सुना और उन्हें लाइब्रेरी आने के लिए प्रेरित किया। मैंने उन्हें समझाया कि पढ़ाई से मानसिक शांति तो मिलती ही है लेकिन साथ ही यह उन्हें गलत कामों से भी दूर रख सकता है। इससे न केवल मेरी ज़िंदगी में बदलाव हुआ, बल्कि वहां के कई कैदी भाइयों की ज़िंदगी में भी सकारात्मक परिवर्तन हुआ और मेरा सभी साथियों के साथ दोस्ती भी अच्छी हो गई ।
जेल की लाइब्रेरी मेरे लिए मेरे खुद के विकास और अपनी ज़िंदगी की दिशा मोड़ने का साधन बनी। यहाँ आके मैंने अपनी ज़िंदगी में सकारात्मक बदलाव लाने का संकल्प लिया। मेरा ये सफर और भी सार्थक तब बना जब इससे ना सिर्फ़ मेरी ज़िंदगी बदली बल्कि मेरे जैसे और क़ैदियों की मदद हो पाई और उनको एक सही दिशा मिल पाई।