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मेरे सपने (कविता)

उड़ने दो मुझे क्यों रोकते हो?

मैं भी तो उड़ना चाहती हूं

अपनी पहचान बनाना चाहती हूं

नई-नई बुलंदियों को छूना चाहती हूं

क्यों मुझे सपने देखने नहीं देते हो?

देखने से पहले ही उसको तोड़ देते हो?

हमेशा मैं ही क्यों रुकूँ?

सबके सामने क्यों झुकूं?

क्यों बिना गलती के ताने मैं सुनूं?

क्यों समाज के डर से हमेशा जियूं?

कभी तो कोई मेरी भी सुनता,

कभी तो कोई यह भी कहता,

क्या है तेरे मन में?

काश ! कभी ऐसा भी होता

मेरे भी होते सपने पूरे,

न चुकानी पड़ती कोई कीमत इसकी,

मेरे इन सपनों और उड़ान की

यह कविता बिहार के मुजफ्फरपुर से सिमरन सहनी ने चरखा फीचर के लिए लिखा है. सिमरन चरखा से जुड़ने के बाद से लगातार आलेख और कविताओं के माध्यम से किशोरियों के मुद्दे पर लिखती रहती हैं

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