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क्या महिलाओं को मासिक दर्द  होना  एक श्राप हैं

महिलाओं को कैसे हर जगह दबाया जाता है चाहे वो उनका खुद का घर ही क्यों न हो, हर जगह किसी न किसी तरह उनके अधिकारों के साथ अन्याय होता रहता है। कई बार समाज उसे स्वीकार करने में देरी लगा देता है। अंत में परिणाम बहुत बुरा देखा जा सकता है। जब कोई नया कानून या कोई अभियान शुरु किया जाता है, जिससे महिलाओं को कुछ फायदा हो, उसे स्वीकारने के बजाए उसका बहुत मज़बूती के साथ  विरोध किया जाता है और उसकी  अध्यक्षता एक पुरुष  को  सौंपी जाती है। इसका विरोध जताकर ऐसे किसी क़ानून या अभियान को सही नहीं समझा जाता है उसके सही कारणों के तर्क देखने के बजाए  गलत कारणों के चलते इसे अस्वीकार कर दिया जाता है। ये एक ऐसे देश, जहां फिल्मों में तो महिलाओं के अधिकारों की बात और उनकी आजादी की बात की जाती है लेकिन असल ज़िंदगी में इसका  विपरीत होता हेै। महिलाओं  के अधिकारों की बड़ी-बड़ी बातें केवल फिल्मों तक सीमित है। समाज में रुढ़िवादी सोच बहुत सरलता  से देख सकते हैं। ना केवल पुरुषों बल्कि महिलाओं में भी क्योंकि आज भी गाँव के लोग पीरियड्स होने पर महिलाओं को स्वच्छ नहीं मानते हैं। वह एक श्राप के समान देखा जाता है। कुछ क्षेत्रों में महिलाएं अभी कपड़े का इस्तेमाल करती है । फिल्मों  में इस समस्या को बहुत ही गहराई से दिखाया जाता है , क्या वह सिर्फ मनोरंजन के लिए ही दिखाया जाता है या फिर इससे लोग जागरूक भी होते है  । 

जब एक सक्सेसफुल महिला पीरियड के अवकाश माँगे तो क्यों उसे बेबुनियादी  व गलत ठहरा दिया जाता है  और महिलाओं को प्रोत्साहित करने के बजाए उनका मनोबल तोड़ दिया जाता है । हाल ही में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद  में खुद एक महिला होकर भी इसका विरोध करना क्या सही समझा। एक महिला के लिए  पीरियड लीव्स बेहद आवश्यक है। इसका विरोध करना क्या महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं है? मासिक धर्म के दर्द के कारण छुट्टी के अलग-अलग आयाम हैं, और यह भी कि जबकि मासिक धर्म एक जैविक प्रक्रिया है, ऐसी छुट्टी नियोक्ताओं के लिए महिला कर्मचारियों को नियुक्त करने से “हतोत्साहित” के रूप में कार्य कर सकती है  और हर महिला को समाज अपनी आजादी मिलनी चाहिए 

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