हमने नारी शिक्षा व नारी उत्थान में रूकावट की बात बहुत बार की है , हमनें पुरजोर तरीके से शायद कहा ही नही कि जिन रास्तों पर हम चलते हैं वो सुरक्षित होने चाहिए।
वर्तमान की बात करूं तो मैं इस समय राजस्थान की सांगानेर विधानसभा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही हूं। चुनाव के प्रचार के लिए कुछ ही दिन मिलते हैं। आज तीसरा दिन है जब नगर निगम के सड़कों पर रहने वाले कुत्तों ने हमें घेरा व हमें चुनाव प्रचार अच्छे से नहीं करने दिया।
इन कुत्तों की जिंदगी पर मैंने कुछ सालों से नजर रखी है । ये आवारा होकर भी आवारा नहीं है। बाकायदा कुछ लोग होते हैं जो नियमित इन्हें खिलाते पिलाते हैं व अपने साथ कहीं भी ले जाते हैं। अभी भी यही हो रहा है कोई लगातार जहां हम जाते हैं , वहां 8-10 कुत्तों को छोड़ देते हैं , ये कुत्ते हमारे पीछे दौड़ते हैं और भौंकते रहते हैं हमारी आवाज लोगों तक पहुंचने नहीं देते। बहुत से बेगपाइपर है जो इन्हें कहीं भी ले जाते हैं किसी को भी नुक़सान पहुंचाने के लिए।
ये हमारे विकास में ही बाधक नहीं है। ये शिक्षा में भी बाधक है। असमय लड़कियों को मैंने पढ़ाई छोड़ते देखा है । पूछने पर जवाब मिलता था कि रास्ते में डर लगता है हमें। रास्ते कितने खतरनाक है ये पिछले तीन सालों में मैंने बहुत बेहतर तरीके से जाना है। मैं बलात्कार पीड़िता हूं। केस कोर्ट में है FIR 378/2019 शिप्रा पर थाना मानसरोवर जयपुर Sec 376 IPC
सड़कों पर लोग मेरे पीछे धारदार चाकू के साथ खड़े हुए हैं जिन्हें मैंने समय रहते देखा और अपनी जान बचायी है।
हलवाई की दुकान पर गर्म तेल की कड़ाही सड़क के किनारे पर हैं, मुझे निशाना बना लेते 15 अगस्त को। मेरे आगे बाइक इस तरह लगा दी कि मैं गर्म तेल की कड़ाही के बिल्कुल नजदीक चली गयी। दिमाग काम कर गया कचरा पात्र को धक्का देकर मैं तुरन्त बाहर निकली। क्यों हलवाई की कड़ाही सड़क तक आ गयी है।
चाकू, जंजीर, हथोड़े बेचने वाले का सामान क्यों सड़क पर फैला है । दो दांत निकला हथोड़ा मेरे बहुत नजदीक तक आया है सड़क पर । नगर निगम का कन्ट्रोल क्यों नहीं है इन पर ।
चुन्नी, साड़ी, क्यों सड़क तक आ रही है और लटकी है हर जगह। हमारी नाबालिग बेटियों को डराने के साधन है ये। बाजारों में फलों व सब्जियों के ठेलो पर बड़े बड़े चाकू सुबह सवेरे है और जो सब जगह फैले हैं । बीच रास्ते पर हर कुछ दूरी पर चाकू रखा है।
हम महिलाओं को मांग करनी होगी कि रास्तों पर यूं हर जगह गरीबी व रोजगार के नाम पर ये नुकीली व मारक चीजों के साथ नहीं बैठ सकते।
नियम बने व सीमा रेखा खींची जाये, इससे आगे जो आया वो रोजगार करने का भी अधिकार नहीं रखेगा। बाजार जो दुकानों के लिए बना है वो दुकानें 80% खाली पड़ी है मानसरोवर वरूण पर बाजार की और ये घरों में, जो रहने की जगह है वहां दुकानें खोल महिलाओं को असुरक्षित करने का काम कर रहे हैं। कम आय वर्ग इलाका तो पूरी तरह असुरक्षित हो चुका है महिलाओं के लिए। बाजार की दुकानें खाली और घरों में दुकानें खुली है। घर से नीचे उतरो तो ठेलो पर रस्सी व डन्डे रखें होते हैं। आजकल चार पहिया वाहन का उपयोग करते हैं ये लोग- जब तब टूल बाक्स खोलकर बैठ जाते हैं जिसमें हथोड़ी व अन्य मारक समान होता है।
बात बिगड़ चुकी है। हमें इस मुद्दे पर चर्चा का दौर शुरू कर देना चाहिए । सड़कों तक निकल आते संस्थाओं के गेट भी नारी सुरक्षा के लिए खतरा है ,चलते हुए कब, कौन आपको इन दरवाजों से अन्दर खींच लेगा ,पता भी नहीं चलेगा। नगर निगम को अपना काम करना ही होगा दुकानें ,व्यापार के लिए बनाये बाजारों में ही खुले। ठेले जगह जगह न खड़े हो, एक निश्चित स्थान पर निश्चित समय में खड़े हो । रहने के लिए बनाये घरों में दुकानें खोलने का अधिकार न मिले। हलवाई की गर्म तेल की कड़ाही सड़क पर न हो। कुत्तों की जनसंख्या पर कंट्रोल होना जरूरी है और निश्चित समय पर ही घूमे, बाकी समय उन्हें उनके लिए बनायी जगह पर रखा जाये।
सड़कों पर आदमी भी औरतों को परेशान कर रहे हैं। हम अपने पालतू कुत्ते के साथ जा रहे थे। कुत्ता सड़क पर सो रहा था। तीन पुरुष खड़े थे । 35-40 उम्र के। हम जैसे ही सोये कुत्ते के नजदीक आये, एक ने कुत्ते को लात मारी जोर से। कुत्ता गुस्से में उठा, हम सामने थे। एक कार रूकी लाल रंग की, वो तीन उसमें बैठकर चले गये।
कुत्ता हमारी कालोनी का था। हमको जानता था , उसे पता था हम ऐसी हरकत नहीं कर सकते, तो वो हमारी शक्ल पहचान कर चला गया। सोचिए इन्सान से ज्यादा समझदार कुत्ता निकला। ऐसे आदमी सड़कों पर हमारी बेटियों को भी डराते हैं इन पर पुलिस की नजर होनी बहुत जरूरी है कि आ कहा से रहे हैं औरतों को असुरक्षित करने।
रास्ते कैसे सुरक्षित हो – राष्ट्रीय स्तर पर बहस जरूरी है व युद्ध स्तर पर कदम उठाने जरूरी है।