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तुमने बच्चे पेट में नहीं रखे, पर युद्धों में उनके बच्चों को झोंका खुब।

इससे पहले की विश्व युद्धों से समाप्त वो जाए, हमें स्त्रीण गुणों को समझना होगा. – के विश्वा‌

पत्नी दासी नहीं होती है. पति स्वामी नहीं होता है. औरत होना किसी की गुलाम होना नहीं है. समानता के बिना किसी औरत को गुलाम बनाया जा सकता है, पर उसके ह्रदय में स्थान नहीं पाया जा सकता. आर्थिक और शारीरिक कमजोरी के कारण दासता भले स्वीकार कर ले पर स्त्री अपना ह्रदय कभी नहीं सौंपती.

और इसिलिए पुरुष कहते हैं कि स्त्री को कोई समझ नहीं पाया. क्योंकि तुमने कभी उसे बराबर की जगह नहीं दी. सम्मान दिया, स्थान दिया , सुख और संपत्ति सब दी. पर तुमने एहसास करा कर दिया. तुमने यह बता कर दिया कि लो ये मैं दे रहा हूँ. तुमने उसे स्वाभिमान, स्वतंत्रता और स्व का मौका नहीं दिया.

इस समाज में नफरत और हैवानियत पुरुषों ने फैलाई है.

पुरुष का झुठा दंभ उसे ईर्ष्या, नफरत और गुस्सा सिखाता है. एक स्त्री प्रेम और धैर्य सिखाती है.

सुनो अगर तुम्हारे अंदर स्त्रीण गुण नहीं है, तो तुम्हारी जीवन में शांति और आनन्द की कोई गुंजाइश नहीं.

तुम लाख अपनी छाती चौड़ी कर के घुमो, अपना पुरुषत्व लेकर झूठी दंभ भरो की तुम ताकतवर हो. पर तुम्हें पता है कि तुम कमजोर और बहुत कमजोर हो.

कमजोर लोगों की पहचान होती है कि अपने से कमजोर पर हमला करते हैं. इसलिए कमजोर से कमजोर वर्ग चाहे समाज में वो कितना ही शोषित क्यों ना हो वो घर में स्त्रियों पर अपना दंभ दिखाते हैं.

अगर किसी स्त्री के आजादी से, उसके बुद्धि से और उसके बराबर खड़े होने से तुम्हारी मर्दानगी को धक्का लगता है, तो तुम दया के पात्र हो.

नफरत, ईष्या और गुस्सा तुम पुरुषों का गुण नहीं, ये तुम्हारी पशुता की शेष हैं.जैसे तुम नखुनों को काट कर अपनी पशुता को छुपाते हो वैसे ही तुम्हें अपने गुस्से, नफरत, ईष्या और छीछली मर्दाना दंभ को भी कम कर के इंसान बनने की प्रयास करना होगा.

तुम्हें सब कुछ मिलेगा स्त्री से, पर ह्रदय में स्थान उसकी स्वतंत्रता से मिलेगा. स्वतंत्रता मनुष्य का वह भाव है जिससे वो कभी समझौता नहीं करना चाहता. और सत्य और नैतिकता भी स्वतंत्रता की भाव से ही पैदा हो सकता है.

अपराधी सिर्फ गुलाम ही बन सकते हैं. वैचारिक गुलाम, धार्मिक गुलाम, आर्थिक गुलाम, राजनीतिक गुलाम या किसी सड़े गले परंपराओं का गुलाम. स्वतंत्र इंसान कभी किसी की गुलामी नहीं चाहता और जबतक आप किसी की गुलामी ना चाहो तबतक अपराध का जन्म नहीं होता.

सत्य शुरू से सत्य है.आप डरा कर, धमका कर या किसी को बदनाम कर या उसकी ही हत्या कर बस उसे सत्य बोलने से रोक सकते हैं.पर सत्य रह जाता है हमेशा. और यह सत्य है कि इस समाज में जितनी भी अमानवीय कार्य हैं उसे पुरुषों ने खड़ा किया.

तीन हजार साल में साढ़े चौदह हजार युद्ध पुरुषों की झूठी दंभ ने विश्व को दिया. स्त्रियों ने उन युद्धों में बलात्कार, शोषण और बच्चों को पालने की जिम्मेदारी उठायी. कभी तुम पुरुषों ने ख्याल किया. जिन पुरुषों ने अपने दंभ में अपने को झोंका क्या हुआ उसके बाद उनकी स्त्रियों का. उनका हुआ वस्तुओं की तरह इस्तेमाल. फलों की तरह छांट कर, वस्तुओं की तरह बांट कर उनका भोग किया.

एक स्त्री कभी क्रुर और अपराधी नहीं होती . क्योंकि अपराध पुरुषों की कुंठा की उपज है. अगर कोई स्त्री कभी कोई अपराध करती भी है यह बस प्रभाव है पुरुषवादी समाज का.

तुम महिलाओं को इसलिए दबाते हो क्योंकि तुम्हें पता है कि तुम सिर्फ शारिरिक रुप से मजबूत हो जिसका कोई खास मोल नहीं. आज के दौर में तो और बिल्कुल नहीं.क्योकिं आज समान ढ़ोने के लिए मशीन है. तुमने कभी किसी बच्चे को पेट में नहीं रखा, पर तुमने उन स्त्रियों के पेट से निकले असंख्य जीवों को नष्ट किया है. उनसे बिना पुछे तुमने युद्ध सजायी और उसमें बलि उनकी बच्चों की चढ़ाई.

दबा लो.उन्हें गुलाम बना लो. क्योंकि बर्दाश्त करने की इतनी क्षमता भी सिर्फ स्त्रियों में ही है. एक तुम्हारी शक्ति छीन होगी पर भय इस बात की है कि कहीं तुम्हारी शोषण , ईष्या, अपराध, गुस्सा और अत्याचार ये स्त्रियाँ ना सिख लें तुमसे.

कहीं उनका प्रेम, धैर्य , प्रतिक्षा और भावनाओं का दमन ना कर दें वो. इससे पहले कि सब उल्टा हो जाए तुम उनसे प्रेम और धैर्य सिख लो. क्योंकि मात्रित्व तो उनकी ही कुंजी रहेगी हमेशा।

( ये‌ लेखक‌ के अपने विचार हैं। )

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