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काम को महज़ चंद घंटों में ना बाँधे

आज का युवा भारत में कैसा है? यही तो आने वाला कल है ना? यही युवा हमारे आने वाले भविष्य की नींव को निर्धारित करेगें। एक तरह से देखा जाये तो भारत के युवा आज सोशल मीडिया और तकनीकी की भयंकर चपेट में हैं। उदाहरण के तौर पर आप किसी से भी कोई साधारण सा सवाल करें तो वो तुरंत गूगल करने लगते हैं। अपने हाथ में रहने वाली अपनी तीसरी हथेली यानि थर्ड पाम का उपयोग करते है, जी हाँ इसे तीसरी हथेली ही कहा जाये तो सही होगा क्योंकि अधिकतर हमारी दो हथेलियाँ भी इस तीसरी हथेली का ही काम करने में व्यस्त रहती है। आज जब आस-पास के दूसरे देशों पर नज़र दौड़ाए तो क्या है ऐसा जो भारत में नहीं ? मसला है यहाँ का युवा बस मुद्दे उठाना जानता है। खुद क्या कर रहा है ? जिस भी जॉब या नौकरी में है क्या पूरी ईमानदारी से उस काम को उतना वक़्त दिया है ? क्या जिस भी संस्था के लिए काम कर रहे हो क्या हर दिन कुछ न कुछ अपनी तरफ से बेहतरीन करके दिया है? यहाँ साबित होती है आपकी क़ाबिलियत, एक क़ाबिल इंसान वो है जो अपने काम को पूरी परिपूर्णता से कर के दे। उसके काम को ही वो ईमानदारी से कर जाये तो इतना वक़्त ही नहीं होगा के हम दूसरी बार उस काम को दोबारा करने की सोचें भी।

आइए अपने इर्द-गिर्द के देशों की बात करते है। क्यों आज चीन के लोग हमसे आगे है क्योंकि वहां की कई कम्पनियाँ है जो 996 कार्य प्रणाली पर काम करती हैं। क्या है ये 996 कार्य प्रणाली? इसका मतलब है सुबह 9 से रात 9 तक 6 दिन काम। यानी सप्ताह में 6 दिन, 72 घंटे काम। चीन में कई कंपनियाँ हैं जो इस पद्धति पर काम करती है हालाकिं कई जगह इसका विरोध भी किया गया है लेकिन क्या है ये 996 पद्धति और क्या असर है इसका देश की कार्यप्रणाली पर? ज़ाहिर सी बात है इससे देश की तरक्की ही होगी क्योंकि हमने कार्य करने के घंटों को बढ़ा लिया। शायद कुछ लोग समर्थ ना भी हों क्योकि कई बार इससे काम करने वालों के स्वास्थ पर भी इसका असर पड़ता है। लेकिन अगर यही बात मैं वैज्ञानिक तौर पर कहूं तो शरीर एक मशीन हैं जिसे निरंतर काम में लगाए रखना चाहिए। व्यायाम से लोग फिट रहने की दौड़ में आगे आये हैं, सेहतमंद होना चाहते हैं वहीं अगर आप अपने काम के घंटो को बढ़ा लेंगे तो ज़ाहिर सी बात हैं आप थोड़ा और कमा लेंगे, थोड़े और आर्थिक रूप से मजबूत खुद भी बनेगें और अपने से जुड़ी संस्था को भी मजबूत करेंगे और अन्ततः देश को भी मजबूत बनाएंगे।

भारत आज़ाद हुआ था सन् 1947 में लेकिन वहीं चीन सन् 1949 आज़ाद हुआ था। क्या कारण है कि आज भारत की जीडीपी (GDP) रैंकिंग में पांचवें स्थान पर हैं और चीन दूसरे स्थान पर। यहाँ फर्क पड़ता हैं कार्यप्रणाली से, जो निर्धारित करती हैं देश की अर्थव्यवस्था को। चीन ने आज़ाद हो कर छोटे-छोटे उद्योगों से शुरुआत की, वहां की अधिकतर कंपनियां है जो निर्माण करने वाली ही है, सिर्फ निर्मित उत्पाद को आगे बढ़ाने वाली में से नही। एक तरह से देखें तो एक इज़ाद करने वाली कार्य पद्धति पर चलता है चीन। आज भारत में बड़े-बड़े उद्योग, बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ ज़रूर हैं लेकिन निर्मित करने वाली मुश्किल से ही है। हमनें डॉक्टर्स, इंजीनियर्स तो बना लिए हैं उन्हें अच्छे अवसर भी दे दिए लेकिन क्या हमने देश को कुछ नया कर गुज़रने वाले अविष्कारक युवा दिए हैं? हम बेहतर उपयोग कर सकते हैं लेकिन क्या हम कुछ नया इज़ाद करने वाली प्रवृत्ति में आगे आये हैं? ये एक गौर करने वाली बात है। आज भारत का नागरिक 6 घंटे की नौकरी के बाद पारिवारिक और सामाजिक होना ज्यादा पसंद करता है। वॉट्स्ऐप, फेसबुक, गूगल का उपयोग भारत में जितनी तेज़ी से बढ़ा शायद ही कहीं और बढ़ा है। क्या आप कभी ये सोचते हैं ये वॉट्स्ऐप कैसे बना? फेसबुक कैसे बना? तो कहने का मतलब ये है कि क्या आप इज़ाद करने वाली प्रवृत्ति में आये हैं? जो पहले से बना हुआ है उसे इस्तेमाल कोई भी कर लेगा लेकिन क्या हम कोई नयी ऐप या कोई नया प्लेटफार्म इज़ाद कर पाए हैं। क्या भारत में लोग ये 996 की कार्य प्रणाली लागू करने का सोच सकते हैं? सुनी होगी ना आपने भी वो दुष्यंत कुमार जी की मशहूर पंक्ति “कौन कहता है आसमाँ में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों” तो मुमकिन कुछ भी है बस कर गुजरने की चाह होनी चाहिए। आज जब आप पूरी तरीके से, सही तरीके से काम करेंगे तो मुमकिन है कि आपको क़ामयाबी भी मिलेगी, आप कुशल भी बनेगें और साथ ही आपसे जुड़ा आपका परिवार भी आपसे खुश रहेगा। और इस तरह यहां आप अपना पारिवारिक वाला हिस्सा भी बखूबी निभा सकेंगे। 

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