हमारे देश में जब जातिगत जनगणना हुई थी, तब ये हुआ कि हमारे देश को बाँट दिया गया। पहले ऐसा नहीं था ये नहीं बोल सकते। पहले भी हमारे कामों को जात के तहत बाँट दिया गया था। आपका धर्म ये हैं, तो आप ये कार्ये करेंगे। आप वो कार्ये करेंगे। ऐसे नियम आज भी मौजूद हैं। हालांकि महात्मा गांधी और आंबेडकर के बीच जो समझौता हुआ था उसमें हमारे दलित भाइयों और बहनों को अधिकार दिया गया था कि हम सब एक ही कुआं का पानी पियेंगे। पर क्याँ ये सही मायने पर संभव हो सका? अभी भी ‘जात पूछकर भात देने’ का सिलसिला है हमारे देश में।आपके घर पर कोई आता है, कर्मचारी चाहे वो कोई भी समान पहुंचाने वाला हो, जब वो एक गिलास पानी अगर मांग ले, तो सच बताइएगा ये मन में नहीं आता कौन से जात का होगा?
क्या जात-पात पर ही चलेगा समाज
तो समाज कहाँ एक हुआ है? अगर जाति जनगणना से हमें आरक्षण या हमारे हित में काम होगा तो क्या नालों में काम करने जो एक दलित जाते हैं वो काम कोई और करेगा? या इसका बोझ और दलितों के ही हिस्से में आएगा ये कोई बताएगा ? मेरा बार-बार दलित का प्रयोग करना बुरा लगता हैं पर मांफ कीजिये बिना इसके मैं समझा भी नहीं सकती।
ऊंची जाति और मेरा मुंबई में अनुभव
एक ऊंची जात में जन्म लेने पर, सच मानो तो मुझे कभी किसी बात का सामना नहीं करना पड़ा। पर हाँ, जब स्कूल के बाद महाविद्यालयों में पहली बार दाखिला लेने के लिए दूसरे जाति के बच्चों को ये फ़ीस में जो छूट मिला, तो मुझे थोड़ा अच्छा नहीं लगा। मुंबई जैसे शहर में रहकर कभी ये सब नहीं सीखा था। तब पता चला आरक्षण नाम की भी कोई चीज़ है जो हम सब साथियों को बाँट दिया। खैर उतना फर्क नहीं पड़ा। पर यहाँ से शुरू हुआ कि तुम्हें क्या मिलता है और हमें क्या मिलता है? सच मानो तो ऊंची जाति या General वालों के लिए कुछ नहीं यहाँ पर। हम सब चुप हैं और हमें रहना भी चाहिए क्योंकि गरीबी होने के बावजूद भी हम जिस स्कूल में पढ़ते हमारे लिए कुछ अलग न होता है। पर अगर वही उसी स्कूल में एक छोटे जात का गरीब बच्चा पढ़ता है, तो उनके साथ भेदभाव होता है। इसका उदाहरण हाल ही में आया था की एक दलित के बच्चे को मार मार कर एक शिक्षक ने अर्धमरा कर दिया था क्यूंकी उसने फ़िल्टर से पानी पी लिया था ।
आरक्षण के बावजूद भेदभाव और असमानता
सही मायनों में हम सबको जो आरक्षण मिला है, उसमें भी कई लोग को फायदा होता है। कुछ लोग फ़ायदा उठा लेते हैं। जैसे जिनको अच्छी शिक्षा मिली वो आगे बढ़ गया पर जिनको नहीं मिली वो आज भी पीछे ही रह गया। बहुत से ऐसे समुदाए हैं जो आरक्षण पाकर बहुत आगे बढ़ गए। जैसे हमारे भाई मराठा लोग या जाटों के भाई लोग क्योंकि उनको अच्छी शिक्षा भी मिली और शिक्षा मिलने के बाद जो उन्हें नौकरी में आरक्षण मिला, बखूबी उनको पाया और आगे बढ़ते गए। परंतु वही जो दलित हैं, उनको आरक्षण तो मिला पर वही बात हो जाती है कि एक कुआं से पानी पीना सिर्फ किताबों में है। आज भी उसे कायम नहीं किया गया तो इसी बात को रखते हुए स्कूल में भी जहां सभी जाति के बच्चों को दाखिला किया जाता है, वहाँ कुछ दलित बच्चों को स्कूल में प्रवेश नहीं किया जाता। इसके कारण वो पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं । फिर वही बात उनके साथ के उम्र के लोग आगे बढ़ते जाते हैं। वही कुछ समुदाए पीछे। ये सिलसिला चलते रहता है और आरक्षण के नाम पर किसी को कुछ नहीं मिलता। अगर देखा जाए तो हर साल जितनी बहालियाँ निकाली जाती है। तो क्या सच में इतने सीट भर दिए जाते हैं? अगर हाँ, तो ये देश अभी भी पीछे क्यों है? किसी विशेष समुदाए को आगे बढ़ाने में असक्षम क्यों है?
अच्छी शिक्षा की जरूरत
इसी कारण हमारे देश में पहले अच्छी शिक्षा देने पर काम करना चाहिए। बिना शिक्षा ना आरक्षण पाने वालों को फायदा होगा और ना आरक्षण ना पाने वालों को। जब तक शिक्षा पद्धति ठीक नहीं की जाएगी, तबतक हम अब पीछे ही रह जाएंगे । शिक्षा के कारण हम सब जातिगत भेदभाव करना शायद बंद कर देंगे जोकि आज़ादी के 75 साल बाद भी नहीं हुआ। जब मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों से हजारों ऐसी घटनाएं सामने आती हैं कि दलितों के साथ दुर्व्यवहार या हिंसा की गई, तो क्या देश के हर एक कोने में नहीं होता होगा? क्या अगर हमारी सरकार इतना अच्छा काम हम सब के लिए करती तो क्या दलित इतना सहमा-सहमा सा रहता अपनों के बीच?
आरक्षण के नाम पर राजनीति और शोषण
गांधी और आंबेडकर ने जो नियम बनाए या आदर्श स्थापित किए, क्या लोगों ने उसपर काम किया? जो जयराम जी ने किया क्या आज का कोई नेता कर पाया? जो काशीराम जी ने किया, क्या कोई कर पाया? नहीं। इसका कारण है कि कोई भी सरकार हमारे शिक्षा प्रणाली को ठीक नहीं कर पाई और ना करेंगे। जिस दिन हम सब शिक्षित हो जाएंगे शायद इनको वोट देना बंद कर दें। और हम सब लोगों को कंट्रोल ना कर पाए। इसलिए कभी शिक्षा सही नहीं होगी और आरक्षण के नाम पर हमारा शोषण होगा।
सोचने की जरूरत
मैंने कुछ समुदाए के लोगों के बारे में लिखा। शायद वो बुरा लगेगा पर मेरा किसी भी बात से किसी को ठेस पहुंचाना नहीं। बस एक सच जो रखना था वो रखा। पर आप सोचना। मेरे लेख पढ़ने वाले किसी एक समुदाए के लिए नहीं, पर सब मेरे भाई-बहन होंगे। जो मेरी सोच से शायद सहमत होंगे पर सही मायनों में हम कभी आगे नहीं बढ़ेंगे जब तक हम खुद नहीं बदलेंगे। हमारा बदलना शायद बहुत समय लगेगा क्योंकि हम सब बांटे जा रहे अपनों के बीच में ही और हमें पता नहीं चल रहा है।