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हिन्दी कविता: शायद मुझे भी कदर मिले!

Save girl child

न कभी कदर थी मेरी

ना कभी होगी शायद

ना कभी कोई गलती थी मेरी

ना कोई गुनाह था मेरा

फिर भी चुप रहती रही

हर दुःख सहती रही

ना कभी मैंने जाना सीखा

ना मैंने मरना जाना

भाई की गलती पर भी

डांट मुझे ही पड़ती है

जो सच बताना भी चाहूं

तो मार मुझे ही पड़ती है

मैं कुछ बोलना भी चाहूं

तो कौन सुनेगा मेरी?

मुझे लाज लिहाज़ में रहना है

पराए घर जाना है

बस यही सीख मिलती है

मैं लड़की हूं,

बस यही मेरी गलती है

यह कविता वज्यूला, उत्तराखंड से योगिता आर्या ने चरखा फीचर के लिए लिखा है. योगिता वर्तमान में राजकीय इंटर कॉलेज में 11वीं की छात्रा है

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