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हिन्दी कविता: स्वीकारोक्ति, एक राजपूत की!

life and life lessons

life and life lessons

निज जाति गुणगान ये सारा, क्योंकर मैंने ना स्वीकारा।

राजपूत हूँ बात सही है, पर मुझमें वो बात नहीं है।

क्या वीर थे वो सेनानी, क्षत्रियों की अमिट कहानी।

महाराणा प्रताप कुंवर सिंह क्या थे योद्धा स्वाभिमानी।

प्रभु राम जीवन अध्याय, प्राण जाए पर वचन न जाए।

आज समय की मांग नहीं है, सत्यनिष्ठ कोई बन पाए।

शोणित में अंगार नहीं है सीने में हुंकार नहीं है।

राजपूत के वचनों में जो होता था वो धार नहीं है।

नियति का जो कालचक्र है सर्वप्रथम अब हुआ अर्थ है।

वर्तमान की चाह अलग कि शौर्य पराक्रम वृथा व्यर्थ है।

निज वाणी पर टिक रह जाना आज समय की मांग नहीं है।

वादे पर ही मर मिट जाना, आज समय की मांग नहीं है।

आज वक्त कहता ये मुझसे, शत्रु-मित्र की बात नहीं है।

एक आचरण श्रेयकर अब तो, अर्थ संचयन बात सही है।

अर्थ संचयन करता रहता, निज वादे पर टिके न रहता।

राजपूत जो धारण करते ओज तेज ना रहा हमारा।

निज जाति सम्मान था प्यारा, पर इस कारण ना स्वीकारा।

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