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हिन्दी कविता: कृष्ण में अभिव्यक्ति है

Lord Krishna

Lord Krishna

कृष्ण में अभिव्यक्ति है शक्ति की भक्ति की,

कर्म से आसक्ति तो फल से भी विरक्ति की।

राधा के कान्हा तो शकुनि के छलिया हैं,

काल दुर्योधन के मुरली के रसिया हैं।

कल्मष विकर्म आदि पातक प्रतिकूल वो,

धर्म कर्म मर्म आदि जिनके अनुकूल हो।

सृष्टि की क्रिया प्रतिक्रिया के चक्र हैं,

सृष्टि के कर्ता भी कारक पर अक्र हैं।

साम,दाम,दंड, भेद ,विषदंत आवेग आदि,

लोभ का संवेग ना हीं मोह संवेग व्याधि।

युद्ध हो समक्ष गर जो शस्त्रों में दक्ष हैं,

पक्ष ना विपक्ष में ना कोई समकक्ष है।

आगत जो काल भी है , काल जो व्यतीत भी,

चल रहा जो आज भी है , गुजरा अतीत भी।

मन की चंचलता में, चित्त के अवधारण में,

सृष्टि की सृजना संरक्षण संहारण में।

रूप रंग देह धारी दृश्य दृष्टित भिन्न वो,

सृष्टि की भिन्नता से भिन्न अवच्छिन्न वो।

कृष्ण सर्व सत्व आदि तत्व अनेकार्थ हैं,

काम,क्रोध,भोग आदि मोक्ष भी परमार्थ है।

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