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हिन्दी कविता: पहाड़ों वाला प्यार!

Incomplete love of life

Incomplete love of life

तुम रहते थे पहाड़ों पर, मैं सागर के किनारे 

तुमसे छूकर गुजरा नदी का पानी 

आखिर कौन रोक पाता उसको 

क्योंकि मिलना था उसको उसी सागर से जहां मैं रहती थी 

मानो तुम्हारे हिस्से का सारा प्यार मुझे लाकर दिया हो!

कहते हैं पहाड़ों और मैदान का कोई मिलन नहीं,

शायद हमें मिलना ही था इस जन्म में 

इसलिए पहाड़ों की ठंडी हवाएँ, मुझे छूकर गुजरती हैं रोज़ 

जैसे तुमने अपना सारा प्यार भेजा हो लिफाफों में।

कौन कहता हैं नहीं मिलते पहाड़ और मैदान कभी। 

आज हम इसके साक्षी हैं। 

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