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इंसानों से ज्यादा क्या सड़क के आवारा कुत्ते महत्वपूर्ण हैं?

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शहर से लेकर गांव तक आवारा कुत्ते आए दिन लोगों को अपना शिकार बन रहे हैं। ऐसे में नगर निगम की लापरवाही भी साफ तौर पर देखी जा सकती है। न कुत्तों के रजिस्ट्रेशन और न ही उनकी जनगणना कराई जाती है। पुलिस भी अनजान दिखाते हुए जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा रहे है। कुत्ते आए दिन जानलेवा हमला करते हाल ही में दो बच्चों को गली के कुत्तों बुरी तरह से घायल कर दिया जिससे लोग पर घर के बाहर निकलने से कतराते है और लोगों के अंदर डर सा बन गया है।

कुत्तों की आबादी कालोनी में बढ़ रही है। कई बार नगर निगम से आवारा कुत्तों को पकड़कर नसबंदी व टीकाकरण का सुझाव दिया गया और इस समस्या को गहनता से नहीं समझ रहा है। अधिकारियों की इन्हीं लापरवाही से लोगों की जान खतर में पड़ी रही है। क्या इंसानों की जान इतनी सस्ती बन गई है कि इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लापरवाही दिखाई दे रही है और चुनाव के समय तो बहुत वादे किये जाते है। इन समस्याओं का समाधान किससे मांगे लाचार आम जनता? उन्होंने कुछ उम्मीद से अपने अधिकारियों को चुना था। अब इन अधिकारियों ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। 

नगर निगम की एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर को 2022 में शुरू किया गया था लेकिन अब तक सस्ते बस्ते में पड़ा हुआ है। आठ महीनों में 11 हजार आवारा कुत्तों की नसबंदी व एंटी रेबीज टीकाकरण ही हो सका है जो कि बहुत ही कम है क्योंकि शहर में 95 हजार से अधिकार आवारा कुत्तों रहते हैं और टीकाकरण की संख्या बहुत ही कम न के बराबर ही मान लीजिए। टीकाकरण की संख्या बढ़ानी होगी बढ़ते कुत्तों के शिकार को देखते हुए।

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