बिहार जो कभी अतीत में शिक्षा को लेकर पूरे विश्व में श्रेष्ठ था। बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय में पूरी दुनिया से छात्र पढ़ने आते थे। आज बिहार के शिक्षा व्यवस्था का नाम आते ही जो दिमाग में तस्वीर उभरती है वो है बदहाल और पिछड़ते हुए बिहार का। इसके वज़ह से बिहार के छात्र हिंदुस्तान के दूसरे राज्य में और दूसरे मुल्क में पढ़ने जाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बिहार शिक्षा के मामले में सबसे पिछड़ा राज्य है। लेकिन जून 2023 में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक के बनाए जाने के बाद एक उम्मीद सी जगी है बिहार के शिक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर, जो पदभार संभालने के साथ ही लगातार बेहतर फ़ैसले ले रहे हैं। इनके वज़ह से बिहार के शिक्षा व्यवस्था को लेकर पूरे देश में बातें छिड़ी हुई है ।
बिहार में शिक्षा व्यवस्था सुधार की कोशिश
के के पाठक बिहार की शिक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर खुद मैदान में उतर गए हैं। स्कूलों में उपस्थिति से लेकर शिक्षकों के अनुशासन तक की सख्ती जैसे कि स्कूल में छात्रों की हाजरी 75% पर्सेंटेज को होना, तीन दिन तक नहीं आने पर नोटिस जारी करना, लगातार 15 दिन तक छात्रों को स्कूल नहीं आने पर नामांकन रद्द कर देना, 9:00 बजे से 4:00 बजे तक कोचिंग संस्थान को बंद रखना तथा अन्य नियम भी शामिल हैं। बिहार शिक्षा विभाग में सख्ती को देखकर अब छात्र और उनके अभिभावक भी खुश नजर आ रहे हैं।
तीन दिन से अधिक लगातार अनुपस्थित रहने पर कार्रवाई
बिहार में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के. के. पाठक के निर्देश के बाद अब तक प्रदेश के सरकारी स्कूलों में 3.32 लाख विद्यार्थियों के नाम काटे जा चुके हैं। तीन दिन से अधिक अनुपस्थित रहने वाले ये विद्यार्थी हैं जिनका नाम अब विद्यालय से निरस्त कर दिया गया है। शिक्षा विभाग की आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक सर्वाधिक 46 हजार से अधिक नाम कक्षा चार के बच्चों के काटे गये हैं। कक्षा पांच के 44 हजार से अधिक, कक्षा तीन के 40 हजार से अधिक, कक्षा छह के 39 हजार से अधिक, कक्षा सात के 38 हजार से अधिक बच्चों के नाम काटे गये हैं। कक्षा दो के 31 हजार और कक्षा एक के 20 हजार से अधिक बच्चों के नाम काटे गये हैं। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक यह वे बच्चे हैं जो लगातार तीन दिन से अधिक समय से अनुपस्थित रहे हैं। हालांकि विभाग ने अधिकारियों को बता रखा है कि इन बच्चों का नाम किस तरह फिर से स्कूल में लिखाया जा सकता है। वहीं सैकड़ों शिक्षकों पर भी गाज गिरी है. कई निलंबित किए जा चुके हैं तो कई शिक्षकों के निलंबन को लेकर अनुशंसा की गयी है.
स्कूलों का इंफ्रास्ट्रक्चर कब सही होगा
सवाल यह है कि नियम सख्त हो गया हैं और बच्चे एवं शिक्षक समय पर आ रहे हैं। स्कूल भी समय से खुल जा रही है। जो स्कूल नहीं आ रहे हैं, उनके नामांकन भी रद्द किए जा रहे हैं लेकिन विद्यालयों का इंफ्रास्ट्रक्चर कब तक सही होगी? हाल ही में मुंगेर के सिलाव प्रखंड स्थित श्री गांधी प्लस टू उच्च विद्यालय सिलाव में चल रही जांच परीक्षा में सोमवार को देखा गया कि परीक्षार्थियों को जमीन पर बिठाकर परीक्षा ली जा रही है। सोमवार को 9th से 12th तक के 1479 छात्र- छात्राएं परीक्षा देने पहुंचे। इनके बैठने के लिए विद्यालय का भवन व बेंच कम पड़ गया। विद्यालय प्रबंधन के द्वारा परीक्षार्थियों को बरामदे में जमीन पर झुंड में बिठाकर परीक्षा ली गई। इससे परीक्षा कदाचार मुक्त कतिपय नहीं हो सकता है। और न ही शिक्षा के स्तर में सुधार की कोई गुंजाइश नजर आती है।
बिहार के स्कूलों के हालत
यह स्थिति एक विद्यालय की नहीं है, बल्कि पूरे बिहार की यहीं स्थिति यही है। केके पाठक के इन सभी कामों से तो जनता इन पर एक नई बदलाव की उम्मीद लगा ली है लेकिन बिहार के शिक्षा मंत्री और प्रमुख मुख्य सचिव के के पाठक में नराजगी चल रही है। खबरों के मुताबिक के के पाठक अचानक 4 दिनों के लिए 25 तारीख से 28 तारीख तक छुट्टी पर थे। लेकिन पिछले दो दिनों से विभागीय कार्यालय नहीं जा रहे है तो ऐसे में बिहार के शिक्षा व्यवस्था कैसे सुधरेगा?