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“छोटे किसानों के लिए खेती के अलावा आय का दूसरा स्रोत जरूरी”

Challenges of small scale farmers

Challenges of small scale farmers

किसी देश के विकास में आने वाली समस्याओं में एक प्रमुख समस्या बेरोज़गारी है। भारत जैसे विशाल देश में आज भी कई छोटे-छोटे गांव ऐसे हैं जहां नौजवानों की एक बड़ी आबादी बेरोज़गार है। नौकरी के लिए या तो उनके पास कोई स्रोत नहीं है या फिर उन्हें शहरों के लिए पलायन करनी पड़ रही है। देश की बढ़ती जनसंख्या कारण रोज़गार की मांग में भी दिन-ब-दिन इज़ाफ़ा होता जा रहा है। लोगों को पर्याप्त रोज़गार नहीं मिलने का एक परिणाम यह भी है कि देश में गरीबी का आंकड़ा संतोषजनक रूप से कम नहीं हो रहा है। वर्तमान में, एक तरफ जहां भारत विश्व मानचित्र पर विकसित देश के रूप में उभर रहा है, वहीं दूसरी ओर इसी देश के छोटे छोटे गांवों में लोग आज भी खेती और पशु पालन पर ही निर्भर हैं। अब तो जलवायु परिवर्तन का प्रभाव खेती में भी दिखने लगा है। जहां पहले की अपेक्षा खेती में उत्पादन प्रभावित होने लगा है।

किसानों की खेती की समस्या

इसकी एक मिसाल राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर गांव भी है। पहले से ही गर्मी और सूखे की मार झेल रहे इस गांव के किसानों के खेत पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिलने के कारण सूख रहे हैं। इसके कारण खेती का काम प्रभावित हो रहा है और पूरी मेहनत के बावजूद उन्हें उनकी फसल का लागत भी नहीं मिल पा रहा है। इसका सबसे अधिक प्रभाव आर्थिक रूप से छोटे स्तर के किसानों को हो रहा है जिन्हें खेती के साथ-साथ परिवार का पेट पालने के लिए दिहाड़ी मज़दूर के रूप में भी काम करने को मजबूर हैं। इस गांव में लगभग 130 घर हैं। जिनमें केवल 2-3 घर ही ऐसे हैं जिनके सदस्य सरकारी नौकरी में हैं। शेष सभी या तो खेती का काम करते हैं अथवा पशुपालन के माध्यम से आय अर्जित करते हैं। 

छोटे किसानों की बदहाली

गांव वालों के अनुसार साल में केवल एक बार जुलाई से अक्टूबर माह के दौरान वह खेती से जुड़े काम करते हैं और अक्टूबर में फसल कटाई के बाद बेरोज़गारी की समस्या से जूझते हैं। लेकिन इसमें भी एक मुख्य समस्या यह है कि साल में एक बार हो रही खेती पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर करती है। यदि समय पर बारिश न हुई तो फसल पूरी तरह से तबाह होने के कगार पर पहुंच जाती है। आर्थिक रूप से संपन्न कुछ किसान तो इस दौरान खेतों में पानी पहुंचाने की व्यवस्था कर लेते हैं, लेकिन छोटे स्तर के किसान को आर्थिक नुकसान के अलावा कुछ नहीं मिलता है और न ही उनके पास रोज़गार के ऐसे दूसरे साधन होते हैं जिससे वह अपने आर्थिक नुकसान की भरपाई कर सकें।

इस संबंध में गांव के एक 45 वर्षीय किसान प्रेमनाथ कहते हैं, “उनके पास रोज़गार और आय के स्रोत के नाम पर ज़मीन के केवल कुछ टुकड़ा है, जिससे साल भर की आमदनी भी नहीं हो पाती है। लेकिन इसके बावजूद वह केवल इसलिए खेती करते हैं क्योंकि उनके पास स्थाई रूप से रोज़गार का कोई अन्य साधन नहीं है।” वह आगे कहते हैं कि इस वर्ष समय से वर्षा नहीं होने के कारण उन्हें खेती में नुकसान हो रहा है। ऐसे में उन्हें घर चलाना, बच्चों की शिक्षा, घर के बुज़ुर्गों की दवाई और अन्य खर्च निकालना कठिन हो जाएगा। प्रेमनाथ के अनुसार अब उनके पास दिहाड़ी मज़दूर बनने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। एक अन्य किसान 42 वर्षीय गोपाल कहते हैं, “हम जैसे छोटे स्तर के किसानों के लिए कृषि कार्य मुश्किल होता जा रहा है। हालांकि सरकार की ओर से बच्चों की मुफ्त शिक्षा, बीमारों के लिए सरकारी अस्पताल से मुफ्त दवाई, और खाद सब्सिडी भी मिलती है। लेकिन जब समय पर वर्षा नहीं होने के कारण फसल प्रभावित हो जाती है तो हमें आर्थिक संकट से गुज़रना पड़ता है। यदि सरकार गांव में रोज़गार के अन्य साधन उपलब्ध करवा दे तो ऐसी परिस्थिती में भी हमें आर्थिक संकट से नहीं गुज़रना पड़ेगा।”

सम्पन्न किसानों की अलग कहानी

हालांकि आर्थिक रूप से संपन्न किसानों को ऐसी परिस्थिती से नहीं गुज़रना पड़ता है। गांव के एक युवा किसान 33 वर्षीय प्रभुराम शर्मा कहते हैं, “उनके पास बीस बीघा से अधिक पुश्तैनी ज़मीन है। जिससे इतनी फसल हो जाती है कि पूरे वर्ष गुज़ारा हो जाता है। इसके अतिरिक्त उनके पास 2 गायें भी हैं।” वह कहते हैं कि उनके खेतों से इतनी फसल हो जाती है कि केवल उनके परिवार ही नहीं, बल्कि गायों के लिए भी साल भर के चारे का इंतज़ाम हो जाता है। हालांकि प्रभुराम शर्मा इस बात को स्वीकार करते हैं कि गांव के छोटे किसानों के लिए कृषि का काम दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है। उनकी खेती पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर करती है। यदि समय पर बारिश नहीं हुई तो छोटे किसानों के लिए आर्थिक संकट खड़ा हो जाता है और उन्हें परिवार का पेट पालने के लिए मज़दूरी करनी पड़ती है। प्रभुराम शर्मा कहते हैं कि यदि लूणकरणसर में कोई उद्योग स्थापित हो जाए तो छोटे स्तर के किसानों के लिए आय का दूसरा स्रोत खुल सकता है।

महिलाओं और किशोरियों के जीवन पर असर

कृषि से कम आमदनी और रोज़गार की कमी का प्रभाव गांव की महिलाओं और किशोरियों के जीवन पर भी पड़ रहा है। कई महिलाएं और किशोरियां घर की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए सिलाई का काम करती हैं। गांव की 26 वर्षीय गीता कहती है कि उसके पिता कृषि का काम करते हैं, लेकिन खेती से इतनी आमदनी नहीं हो पाती है कि साल भर घर का खर्च निकल सके। ऐसे में उसे अपनी पढ़ाई छोड़कर सिलाई का काम शुरू करना पड़ा। वह गांव की महिलाओं के कपड़े सिलकर महीने में दो हज़ार रूपए तक कमा लेती है और घर की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने में मदद करती है। वह कहती है कि गांव की आबादी छोटी होने के कारण उसे सिलाई में भी बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पाता है। अलबत्ता शादी विवाह और तीज त्यौहार के मौसम में उसे कपड़े सिलकर आठ हज़ार रूपए तक की अच्छी आमदनी हो जाती है। घर के आर्थिक स्थिती को बेहतर बनाने के लिए गीता का भाई भी शहर में नौकरी करता है।

क्या चुनाव में किसान बना पाएंगे जगह

बहरहाल, राजस्थान के किसानों की समस्या का हल ज़रूरी है क्योंकि एक तरफ जहां इससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी वहीं गांव भी सशक्त बनेगा। ऐसे में ज़रूरी है कि उनकी समस्याओं का स्थाई हल निकाला जाए। बारिश की कमी को पूरा करने के लिए अन्य विकल्पों पर ध्यान दिया जाए ताकि किसानों को कृषि छोड़कर मज़दूरी न करनी पड़े। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार किसानों की समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान देगी और इसके हल के लिए किसी सकारात्मक नतीजे पर पहुंचेगी। बहुत जल्द राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में राजनीतिक दलों के बीच यह मुद्दा प्रमुखता से उठ सकता है।

यह आलेख राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर से मनीषा और मोनिका ने संयुक्त रूप से चरखा फीचर के लिए लिखा है।

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